पाकिस्तान की इस बुर्के वाली औरत से टकराना मत
उस पार की पहली सुपरहीरो. दो मामूली से 'हथियारों' से कठमुल्लों की टें कर देती है.
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रियल लाइफ में किसी के पापा सुपरहीरो होते हैं तो किसी की मम्मी. कॉमिक्स की बात करें तो अपनी शक्ति तो सबको याद होगी ही. अरे वो राज कॉमिक्स वाली कैरेक्टर. ध्रुव की बहिनिया बे. जो पहले एक नॉर्मल लड़की होती है और बाद में एक सुपरहीरोइन बनती है. क्योंकि उसका पति उसकी बेटियों को मार देता है. अब खोपड़ियां खुजा रहे होगे कि सुपरहीरो की बात क्यों कर रहे हैं हम. आज हम आपको एक कहानी पढ़वा रहे हैं, वो भी सुपरहिरोइन की. बुर्के वाली सुपरहिराइन.
पहले उस पार की ये कहानी सुन लो....
साल 2013 की बात है. पाकिस्तान में हल्वापुर नाम की एक जगह है. जैसे छोटे-छोटे गांव होते हैं वैसे ही हल्वापुर भी था. वहां न तो कोई राजा था और न ही रानी.
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एक प्यारी सी बच्ची अपनी फैमिली के साथ हैपिली रहती थी. उसका नाम था जिया. अचानक एक दिन उसके साथ एक हादसा हो गया. और उसके पेरेंट्स मारे गए. घर-बार सब जल गया. वो अनाथ हो गई. बच्ची वहीं पास में रोना शुरू कर देती है. तभी एक इंसान ने जिया की तरफ हाथ बढ़ाया.
https://www.youtube.com/watch?v=XahbqLdCVhE
फिल्मों में भी तो होता है न बचपन में हीरो के मां-बाप के मरने के बाद पुलिस वाला या फिर विलेन उसे टांग ले जाता है अपने साथ. ठीक वैसे ही जिया को गांव के ही एक अच्छे इंसान ने गोद ले लिया. जानते हो उसका नाम क्या था. उसका नाम था कबड्डी जान.

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बाद में वो बन गए जिया के अब्बा जान. उनका खुद का बच्चा कोई था नहीं. बड़े लाढ-दुलार से पाला-पोषा जिया को. कभी मां-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी. हर वो फर्ज निभाया जो एक पेरेंट्स निभाते हैं. पढ़ाया-लिखाया और जिया को एक अच्छी लाइफ दी.
https://www.youtube.com/watch?v=n23uEkz_CKA
जिया के अब्बा ने उसे सबसे अलग बनाने के लिए एक हुनर सिखाया. वो भी मारने-काटने का. मतलब एक तरह का मार्शल आर्ट. जिसे अपन लोग ठेठ में कराटे कहते हैं. उस मार्शल आर्ट का नाम है तख्त कबड्डी. पता है इसमें न तो गोली-बंदूक होता है और न ही बम-बारूद. न फिल्मों वाले घटिया से दिखावटी मार-धाड़. होता है तो केवल किताबें और कलम.
https://www.youtube.com/watch?v=Aw-sSE4RBc4
दूसरे बच्चे जहां गुड्डे-गुड़िया से खेलकर बड़े होते हैं, वहीं जिया तख्त कबड्डी प्रैक्टिस कर बड़ी हुई. और लड़कियों के स्कूल में पढ़ाने लगी. तारे जमीं पर फिल्म में जैसे आमिर खान थे वइसी ही टीचर थी जिया. बच्चे खूब पसंद करते थे उसे. जाहिर है कहानी बिना विलेन के तो होती नहीं है. इस कहानी में भी विलेन था. वो भी दो-दो. एक का नाम था बाबा बंदूक. उसके पास जादूई शक्ति थी. और दूसरा था वडेरो-पजेरो. बहुते बर्बाद और करप्ट पॉलिटिशियन. उसके अलावा भी कुछ छोटे गुंडे थे. जिनको भाड़े का टट्टू कहते हैं. ये बड़े चमन टाइप लोग थे.

ये ससुरे विलेन पाकिस्तान में जितने लड़कियों के स्कूल थे, उनको बंद कराना चाहते थे. और ये जिया को पसंद नहीं था. आशू, इम्मू और मूली को भी पसंद नहीं था कि कोई उनका स्कूल बंद करे. इसलिए सारे मिलकर बाबा बंदूक और वडेरो-पजेरो की ऐसी-तैसी करने में लगे रहते थे. जिया तख्त कबड्डी का इस्तेमाल करती थी और बच्चे अकल का.

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इस कहानी में जिया के अलावा एक और भी है जो बाबा और पजेरो की नाक में दम किए रहती है. और आशू, इम्मू और मूली को भी बाबा के गुंडो से बचाती है. उसका नाम होता है बुर्का एवेंजर. ये कहानी की सुपरहिरोइन है. जैसे बैटमैन और बाकी के सुपरहीरो मास्क लगा कर विलेन के छक्के छुड़ाते हैं, वैसे ही बुर्का एवेंजर बुर्का पहनकर लड़कियों और उनके हक के लिए लड़ती है.
एक बार बाबा ने अपने चमन टाइप गुंडो को स्कूल बंद करने भेजा. उस दिन स्कूल में कॉन्सर्ट होने वाला था. पर उसके पहले ही गुंडो ने स्कूल में ताला लटका दिया. बच्चे परेशान हो गए. सोचने लगे कि स्कूल बंद हो जाएगा तो कहां पढ़ेंगे. कैसे अपना फ्यूचर संभालेंगे. मूली के पास एक बकरी होती है. उसका नाम गोलू होता है. जब बच्चे कॉन्सर्ट की बात कर रहे होते हैं वो गुंडे गोलू को टपा ले जाते हैं. सारे परेशान हो कर उसको ढ़ूढ़ने लगते हैं. वो वहां पहुंच जाते हैं जहां गुंडो ने गोलू को जप्त कर रखा था.

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बच्चे उसे बचाने की सोच ही रहे होते हैं कि अचानक बुर्का एवेंजर वहां आ जाती है और उन्हें बचा लेती है. इसके बाद वो स्कूल में पहुंचती है जहां बाबा बंदूक अपने राइट और लेफ्ट हैंड के साथ होता है. बुर्का एवेंजर को देखते ही उसे मारने के लिए कहता है. पर वो उन सब की ऐसी-तैसी कर देती है. जब बाबा बंदूक की बज्जी आती है भिड़ने की, तो वो गायब हो जाता है. उसके बाद बुर्का एवेंजर तख्त कबड्डी का इस्तेमाल कर स्कूल का गेट खोल देती है. और फिर सब हैप्पी-हैप्पी हो जाता है.
मजो आयो कहानी सुनके वो भी एक सुपर हीरो और एक मामूली लड़की की. अब तुमको ये पता चले कि ऐसी कोई कहानी है ही नहीं तो क्या करोगे. और न ही पाकिस्तान में कोई हल्वापुर. अब गुस्से से भौहें चढ़ाने और सिर खुजाने का काम न करो. अभी तो बड़े मजे लेकर कहानी पढ़ रहे थे. और सोच भी तो रहे थे कि अपने बच्चों को सुनाओगे. एतना टेंशनियाओ न. माजरा अभी सुलझाते हैं इस जिया और बुर्का एवेंजर का.कौन है बुर्का एवेंजर?
दरअसल बुर्का एवेंजर पाकिस्तान की पहली एनीमेटेड सुपरहीरो है. ठीक हमारी शक्ति जैसी. जो लोगों की ऐसी-तैसी करने के लिए लाइट की स्पीड से चलती है. उसके पास ऐसी शक्तियां हैं, जिससे उसे पता चल जाता है कि कहां लड़कियों पर अत्याचार हो रहा है. बुर्का एवेंजर और कोई नहीं बल्कि जिया है जिसकी स्टोरी अभी-अभी आंखे फाड़-फाड़ कर पढ़ रहे थे. वो दिन में जिया रहती है और रात में बुर्का एवेंजर बन जाती है.

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ये आइडिया किसकी खोपड़िया से आया था?
अवेंजर पाकिस्तानी पॉप स्टार आरोन हारून राशिद के दिमाग की उपज है. प्यार से लोग उसे हारून कहते हैं. हारून के पप्पा एक टीचर थे. बुर्का एवेंजर बनाने के पीछे का कारण था तालिबान. तालिबानी पाकिस्तान में घुसकर लड़कियों के स्कूल को टारगेट कर रहे थे. उनको रोकने के लिए हारून ने एक कार्टून कैरेक्टर बनाया और नाम दिया बुर्का एवेंजर. जिसका मेन फोकस है न्याय, शांति और सभी को शिक्षा.

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ये कैसे काम करती है?
बुर्का अवेंजर तख्त कबड्डी का इस्तेमाल करती है. किताब और कलम उसके फेवरेट हथियार हैं.

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ये एवेंजर बुर्का क्यों पहनती है?
हारून ने तो बुर्का को पहले अत्याचार का एक सिंबल बनाना चाहा. पर फिर ये आइडिया ड्रॉप कर दिया. क्योंकि कई औरतें ऐसी भी हैं जो बुर्का अपने मन से पहनती हैं. फिर इसका लुक और एक निंजा का लुक दोनों सेम टू सेम था. जिया को बुर्का में रखने का मेन मोटो था कि उसकी पहचान छिपी रहे. कोई कट्टरपंथी किसी बुर्का वाली से तो कहेगा नहीं कि अपना बुर्का निकालो और अपनी पहचान बताओ.

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क्या है बुर्का एवेंजर?
ये एक पाकिस्तानी एनीमेटेड कार्टून शो है जिसका टैगलाइन है “Don’t mess with the lady in black”. कहने का मतलब बुर्का पहनने वाली औरत से टकराना मत. इस सीरीज ने कई अवॉर्ड जीते हैं. इसके रचयिता है मशहूर पॉप सिंगर हारून. 2013 में इसकी शुरूआत पाकिस्तान के इस्लामाबाद में हुई थी. इसकी हिरोइन है जिया नाम की लड़की. वो दिन में एक टीचर होती है. मलाला यूसफजई की तरह. और रात में बन जाती है एवेंजर.

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पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान और इंडिया में भी ये बहुत फेमस हुआ है. इसे 10 से भी ज्यादा भाषाओं में डब किया गया है. 2013 में टाइम मैग्जीन ने इसे सबसे प्रभावी कैरेक्टर बताया था. सीरीज में जिया बस अपनी पहचान छिपाने के लिए बुर्का पहनती है. हालांकि ये किरदार विवादों में भी रहा पर कुछ ने इसे सेक्सिस्ट बताया. ये कार्टून शो लोगों को एक संदेश देता है. वो ये कि बंदूक से नहीं शिक्षा से हर मुश्किल को लात मार के गिराओ.

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पहले ये शो सोशल मीडिया पर ही लोग देख सकते थे. मतलब टीवी पर नहीं आता था. सोशल मीडिया के जरिए इसने इत्ते फैन बना लिए कि पूछो न. अब तो ये टीवी पर भी आएगा. निकलोडियन चैनल पर. तो देखना न भूलना. इसके कुल 4 सीजन और 52 एपिसोड हैं. और हां अब मुझे थैंक्यू बोलने की भी जरूरत नहीं है. ये तो दी लल्लनटॉप का फर्ज है.