24 जून 2016 (Updated: 24 जून 2016, 01:16 PM IST) कॉमेंट्स
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लो जी सुन लो. बस सुन लो बोलना मत. नहीं तो फतवा जारी हो जाएगा. क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही सवाल पूछने पर फतवा जारी हो चुका है. वो भी पाकिस्तान में. टीवी प्रोग्राम "रमज़ान हमारा ईमान" में एंकर ने मुफ्ती साहब से कुछ सवाल पूछ लिया. सवाल कादियानियों और अहमदियों से रिलेटेड था. बस सवाल पूछना ग़ज़ब हो गया और मुफ्तियों ने एंकर को काफिर करार दे दिया. बात यहीं खत्म नहीं हुई. यहूदियों का एजेंट भी कहा गया. बात प्रोग्राम को बंद करने की हुई. मुफ्ती साहब की जीत हुई. पाकिस्तान की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी यानी पेमरा (PEMRA) ने एक्शन लिया और प्रोग्राम बैन हो गया. ट्विटर पर लोग पेमरा के इस फैसले के खिलाफ जमकर बरसे.
बात एक चैनल के प्रोग्राम तक ही नहीं है. अब 100 मौलवी साहिबान ने फतवा जारी किया है. ये फतवा पाकिस्तान में चल रहे उन प्रोग्राम के खिलाफ है जो रमजान को लेकर बनाये जा रहे हैं. कहा गया- ये प्रोग्राम देखना हराम है. वो इसलिए क्योंकि इनकी मेजबानी हीरो-हीरोइन करते हैं. मौलवियों का कहना है कि ऐसे प्रोग्राम की मेजबानी हीरो-हीरोइन कैसे कर सकते हैं. इस्लामिक मुद्दे पर मौलवियों के अलावा किसी और को बुलाना भी हराम है. वो दीन कैसे सिखा सकते हैं ?
मेरे मन में भी कई सवाल आते हैं. आपके भी आते होंगे. अगर सवाल पूछना ईशनिंदा हो गया तो दम घुट जाएगा. पता है. तर्क क्या दिया गया. पढ़ के माथा मत पीटना. कहा गया- ये प्रोग्राम गैर शरई है और एंकर दीन नहीं सिखा सकते. मियां ! ठीक है वो दीन नहीं सिखा सकते. वो तो बस सवाल कर रहे हैं. आपकी हवा खराब है जवाब देने में. जवाब दीजिये. सवालों का दम न घोटिए. अगर आपको इल्म है तो सवालों के जवाब देकर ग़लतफ़हमियों को दूर कीजिए.
सवाल पूछना गैर शरई है या फिर आपको ये डर सताने लगा है कि कहीं आपकी दुकान के पकवान फीके साबित न हो जाएं. कहीं आपको इस बात का तो दुःख नहीं है कि आपको प्रोग्राम में नहीं बुलाया गया. क्योंकि मैंने कई प्रोग्राम देखे उनमें एक न एक मौलवी बैठे देखा. तो क्या उस मौलवी को देखना भी हराम हो गया ?
माफ़ कीजिएगा ! मुझे आपका ये तर्क बिलकुल बेहूदा लगता है कि हीरो-हीरोइन कैसे दीन के प्रोग्राम की मेजबानी कर सकते हैं. तो मैं आपको बता दूं कैसे कर सकते हैं ? जैसे वो साबुन खरीदने पर मजबूर कर सकते हैं. जैसे चड्डी से लेकर हर वो चीज़ खरीदवा सकते हैं जो आवाम यूज़ करती है. उसके लिए उन्हें सिर्फ एड करना होता है. फॉलोअर्स हाथों हाथ लेते हैं. और हां आपके घर में भी तो फ्रिज, वाशिंग मशीन होगी, जिसका एड हीरो-हीरोइन ने किया होगा. अब आप ही सोचिए जब उन्हें देखना हराम हो गया, तो उनसे जुड़ी चीज हराम हो जानी चाहिए. बिना देर किए जल्दी तौबा कर लीजिए और फ्रिज, वाशिंग मशीन बाहर फेंक दीजिए. अरे हां ! आपने ये टीवी रख ही क्यूं रखा है, जिसपर आए दिन हराम चीजें आती हैं. लगता है मियां छुप-छुप के देखने की आदत है. या सिर्फ हिकारत की नजर से देखते हैं.
इस सारे मसले को देखते हुए मुझे बीबीसी से जुड़े मोहम्मद हनीफ का एक फेसबुक पोस्ट याद आता है. उन्होंने लिखा था-
दूर की बात नहीं माजी (PAST) के कुछ बुजुर्ग उलेमा ने बिजली को बिदअत कहा था. रेडियो को शैतान की आवाज बताया था.ट्रेन जहन्नुम की सवारी थी. टेलीविजन और फिल्म ने तो हमारे दीने मुकम्मल को ऐसा खतरे में डाला था कि आज तक न संभल सका. अब हमारे यही उलेमा हजरात जापानी ट्रेन में सफर करते हैं. कान के साथ कोरिया का मोबाइल फोन लगा होता है और उनके खुतबात (Speech) सुनने के लिए जर्मन टेक्नोलॉजी से बने स्पीकर लगाए जाते हैं.
मेहरबानी करके आप इतना बता दीजिए जब पाकिस्तान में ईश निंदा कानून पहले से है तो आपको फतवे की जरूरत क्यों पड़ गई. कहीं आप फुटेज तो नहीं खा रहे हैं. बस करो यार लोगों को न बरगलाओ. नहीं तो पब्लिक फतवों को आम के अंदर निकलने वाली गुठली समझ लेगी. ये क्या किसी ने छींक भी दिया तो उसी पर फतवा जारी कर दिया. जमाना बदल रहा है. उसके रहने के तौर तरीके बदल रहे हैं. अगर आपने अपना दायरा नहीं बढ़ाया तो पक्का लोग उस दायरे से खुद ब खुद बाहर होने लगेंगे. फिर देते रहना फतवे.