The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • one year after jamia violence ...

जामिया हिंसा: दिल्ली पुलिस की जांच में 'अपनी ही पुलिस' को क्लीन चिट

जानिए, ठीक एक साल पहले आखिर उस दिन हुआ क्या था?

Advertisement
Img The Lallantop
जामिया के बाहर हिंसा करने वालों की तलाश में पुलिस कैंपस में घुस गई थी. फाइल फोटो- PTI
pic
Varun Kumar
15 दिसंबर 2020 (Updated: 15 दिसंबर 2020, 05:09 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
15 दिसंबर 2019. दिल्ली पुलिस पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया कैंपस के भीतर घुसकर मारपीट करने के आरोप लगे. इस मामले में पुलिस ने करीब एक साल तक जांच की. करीब 60 चश्मदीदों के बयान लिए. सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से जांच की. इसके बाद वह इस नतीजे पर पहुंची कि कोई पुलिसवाला मारपीट की घटना में शामिल नहीं था. इस घटना को एक साल पूरा हो गया है, लेकिन किसी पुलिसवाले के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है जबकि सामने आए विडियो कुछ और ही कहानी दिखा रहे हैं.
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मामले की जांच साइबर सेल को ट्रांसफर कर दी थी. ये जांच तब शुरू हुई थी, जब कुछ सीसीटीवी वीडियो सामने आए थे. इन वीडियोज़ में पुलिसवाले फर्नीचर और सीसीटीवी तोड़ते हुए, मारपीट करते हुए दिख रहे थे. हालांकि पुलिस ने दलील दी कि वो दंगाईयों की तलाश में कैंपस के भीतर घुसे थे.
क्राइम ब्रांच की विशेष जांच टीम ने उस दिन के ड्यूटी रोस्टर के लिए दक्षिण-पूर्व जिले के थानों के प्रभारी निरीक्षकों से पूछताछ भी की थी. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने एक पुलिस सूत्र के हवाले से लिखा है कि एसआईटी ने पुलिस चीफ से पुलिसवालों के आचरण की जांच के लिए सिफारिश की थी. बाद में साइबर सेल के एडिशनल कमिश्नर को जांच के लिए कहा गया. जांच अभी भी जारी है.
जामिया लाइब्रेरी हिंसा मामले में नया सीसीटीवी फुटेज जारी हुआ है.
जामिया लाइब्रेरी हिंसा मामले का सीसीटीवी फुटेज

पुलिस ने उस दिन के बारे में क्या कहा?
पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 13 दिसंबर 2019 को जामिया रोड पर जो प्रदर्शन हुआ था, उसी से ही दिल्ली दंगों की नींव पड़ी. जामिया मेट्रो स्टेशन के पास करीब 2000 लोग जमा हुए, और संसद व राष्ट्रपति भवन की तरफ जाने लगे. पुलिस ने जब इन लोगों को रोकने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. पुलिस पर पत्थरबाजी भी की.
पुलिस के मुताबिक, इसके बाद 15 दिसंबर को जामिया के छात्रों और कुछ बाहरी तत्वों ने कई बसों में आग लगा दी. जब पुलिस ने उन्हें पीछे धकेलना चाहा तो वो पहले से तैयार योजना के तहत यूनिवर्सिटी के कैंपस में घुस गए. अंदर से पत्थरबाजी करने लगे. इसके बाद पुलिस कैंपस में घुसी, और 52 लोगों को दिल्ली पुलिस एक्ट के तहत कुछ वक्त के लिए हिरासत में ले लिया.
Jamia Library
जामिया लाइब्रेरी में तोड़फोड़ का सीन. (फाइल फोटो- आजतक)

रिपोर्ट में लाइब्रेरी का जिक्र नहीं
पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में जामिया की लाइब्रेरी का कोई जिक्र तक नहीं किया है, जबकि पुलिस पर आरोप है कि वह जामिया की लाइब्रेरी में घुसी, पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स के साथ मारपीट की. फर्नीचर तोड़ा, कैमरा तोड़ा. आदि.
जामिया यूनिवर्सिटी ने भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए इन "अनियंत्रित पुलिसकर्मियों" पर "क्रूर कार्रवाई" के आरोप लगाए थे. यूनिवर्सिटी ने MHRD यानी मानव संसाधन विकास मंत्रालय को 2.66 करोड़ का बिल भी दिया था. ये बिल लाइब्रेरी में हुई तोड़फोड़ की नुकसान की भरपाई के लिए था. साथ ही, यूनिवर्सिटी ने हाई लेवल कमेटी या फिर जुडीशियल कमेटी बनाकर मामले की जांच की मांग की थी. बता दें कि ये दोनों ही मामले आगे नहीं बढ़े हैं.
जामिया की वाइस चांसलर नज़मा अख्तर ने कहा,
"हमने उन्हें इस बारे में लिखा था, हमने इसे आगे भी बढ़ाया लेकिन हम किसी को मजबूर नहीं कर सकते. जब हमारी पुलिस शिकायत को एफआईआर में तब्दील नहीं किया गया, तो हम अदालत में गए. एक साल हो गया है, कोर्ट ने अपना फैसला नहीं दिया है."
वहीं लाइब्रेरियन तारिक अशरफ ने कहा,
"लाइब्रेरी को मार्च में 800 लोगों के बैठने की क्षमता के साथ खोला गया. 150 कंप्यूटर और नई एलईडी लाइटें लगाई गईं. इस सब काम में लगभग दो महीने लग गए."
Jamia Library 2
जामिया में छात्रों के साथ मारपीट करते जवान. फोटो वीडियो से निकाला गया है.

22 लोगों को किया था गिरफ्तार
13 और 15 दिसंबर को भड़की हिंसा के लिए पुलिस ने 22 लोगों को गिरफ्तार किया था. जिन 22 लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनमें शरजील इमाम और आसिफ इकबाल तन्हा भी शामिल हैं. इन पर दंगा, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, आपराधिक साजिश रचने आदि की धाराएं भी लगाई गई हैं. हालांकि लाइब्रेरी वाले मामले में किसी पुलिसवाले को जिम्मेदार नहीं माना गया.
हिन्दुस्तान टाइम्स ने जब इस बारे में दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता ईश सिंघल से बात करना चाही तो उनका जवाब था- ये मामला फिलहाल अदालत में है.
वहीं इस मामले को लेकर यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा,
"इस मामले के एक महीने के भीतर या फिर अधिकतम 90 दिनों के अंदर पुलिस को जांच खत्म कर लेनी चाहिए थी. इस तरह के मामलों में जांच के लिए एक महीने से अधिक नहीं लगना चाहिए. लोगों को सचाई जानने का अधिकार है."
जामिया में हिंसा मामले में रोज नए वीडियो आ रहे हैं.

जामिया में हिंसा मामले में कई वीडियो सामने आए थे.
CAA कानून के विरोध को लेकर शुरु हुआ था प्रदर्शन
सीएए यानी नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के विरोध को लेकर इस प्रदर्शन की शुरुआत हुई थी. ये प्रदर्शन जामिया के आसपास के इलाके में खासा जोर पकड़ा था. जामिया और जेएनयू के छात्रों पर इसमें बढ़-चढ़ कर विरोध प्रदर्शन करने के आरोप लगे. शाहीन बाग इलाके में धरने पर लंबे वक्त तक लोग डटे रहे और प्रदर्शन करते रहे. फरवरी 2020 में दिल्ली में दंगे भी हुए, जिनमें 50 से अधिक लोगों की जान चली गई. करीब एक हजार लोग घायल हो गए.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement