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रेप-मर्डर केस में नाबालिग आरोपी को पीड़िता की मां ने निर्दोष माना, कोर्ट ने 20 साल की सज़ा दे दी

बच्ची के माता-पिता ने नवंबर में Odisha Assembly के बाहर आत्मदाह करने की कोशिश की. तब जाकर सरकार का ध्यान मामले की तरफ गया.

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odisha minor treated as adult in rape murder case jailed for 20 years
नाबालिग को वयस्क मानकर 20 साल की सज़ा.(प्रतीकात्मक तस्वीर - आजतक)
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7 फ़रवरी 2024
Updated: 7 फ़रवरी 2024 17:11 IST
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ओडिशा (Odisha) में एक विशेष बाल अदालत (children’s court) ने मंगलवार, 6 फ़रवरी को एक नाबालिग को 20 साल की सजा सुनाई है. अतिरिक्त ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश अदालत (बाल न्यायालय) ने आरोपी को ये सज़ा 5 साल की बच्ची से बलात्कार, हत्या और सबूत मिटाने के मामले में सुनाई है. 17 साल के आरोपी को दिसंबर, 2020 में हिरासत में लिया गया था. आरोपी युवक, पीड़िता का पड़ोसी ही था. उस दौरान इस घिनौने अपराध ने राज्य में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और राजनीतिक आक्रोश पैदा कर दिया था.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़, मामला ओडिशा के नयागढ़ ज़िले का है. 14 जुलाई, 2020 को बच्ची अपने घर के बाहर खेलते समय लापता हो गई थी. दस दिन बाद बच्ची का कंकाल उसके घर से 500 मीटर दूर एक तालाब के पास मिला. जब नयागढ़ पुलिस मामले को बहुत समय तक सुलझाने में असफल रही, तो बच्ची के माता-पिता ने नवंबर में ओडिशा विधानसभा (Odisha Assembly) के बाहर आत्मदाह की कोशिश की. इससे सरकार का ध्यान मामले की तरफ गया. सरकार ने ओड़िशा हाई कोर्ट की निगरानी में मामले की जांच के लिए एडीजी (क्राइम) अरुण बोथरा के नेतृत्व में एक एसआईटी (SIT) का गठन किया. एसआईटी के एक अधिकारी ने बताया,

"हमने फ़ॉरेंसिक जांच की मदद ली. हत्या का कारण यौन उत्पीड़न मिला. हमें लड़की के कपड़ों में वीर्य के धब्बे मिले थे."

पब्लिक प्रॉसिक्यूटर चितरंजन कानूनगो के मुताबिक़, मामले में 31 गवाहों से पूछताछ की गई. 135 दस्तावेज और 18 वस्तुओं की जांच की गई. कानूनगो ने बताया कि अगर आरोपी नाबालिग नहीं होता, तो उसे उम्रक़ैद या मौत की सज़ा दी जाती.

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दरअसल निर्भया केस के बाद किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) 2015 में एक प्रावधान जोड़ा गया था. रेप और मर्डर जैसे जघन्य अपराध करने वाले 16 से 18 साल के बच्चों पर वयस्क लोगों के रूप में मुकदमा चलाने का प्रावधान. इसके तहत जघन्य अपराधों के मामले में किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) क्राइम की सुनवाई के लिए मामले को बाल न्यायालय (children’s court) ट्रांसफर कर देगा. बाल न्यायालय, जुविनाइल जस्टिस एक्ट - 2015 की धारा 18 के तहत जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा भेजे गए जघन्य मामलों से निपटती है. ये अदालत मौत या उम्रक़ैद की सज़ा सुना सकती है.

इस मामले में बचाव पक्ष के वकील बिजय मिश्रा ने कहा कि वो इस फ़ैसले को उड़ीसा हाईकोर्ट में चुनौती देंगे. अभियोजन पक्ष के पास उनके क्लाइंट के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है.

इस केस में सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि मृतक बच्ची की मां दोषी को निर्दोष मानती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, मृतिका की मां सीबीआई जांच की मांग कर रही हैं. सुनवाई के दौरान मां ने आरोपियों के पक्ष में अपना बयान दिया. उन्होंने कहा कि वो शुरू से एसआईटी द्वारा निर्दोष को गिरफ़्तार करने की बात दोहरा रही हैं. उनका कहना है कि एसआईटी ने दो असली दोषियों को बचाया है. उन्होंने पहले ही दो आरोपियों के नाम एसआईटी को बताए थे. जिनमें एक प्रभावशाली नेता और उसका सहयोगी है. 

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