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बाढ़ के चलते अस्पताल नहीं पहुंच पाई, नाव में पैदा हुई बच्ची

लेकिन बच्ची को गोद में लिए ये मां खुश नहीं है. ख़ुशी भोगने से ज्यादा ट्रॉमा झेला है उसने.

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फोटो - thelallantop
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प्रतीक्षा पीपी
1 अगस्त 2016 (Updated: 1 अगस्त 2016, 01:07 PM IST) कॉमेंट्स
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इधर ज्योति के बेडरूम में पानी घुसता आ रहा था. उधर उसका लेबर पेन बढ़ता जा रहा था. ज्योति को अस्पताल की जरूरत थी. लेकिन बारिश ने उसे बाढ़ के पानी के बीच फंसा रखा था. काजीरंगा पार्क के पास रहती हैं ज्योति. उम्र है 24 साल. बारिश की वजह से ब्रह्मपुत्र और धनसिरी नदी में बाढ़ आ गई है. पानी की ऊंची-ऊंची लहरें लोगों के घरों में घुस रही हैं. वह बताती हैं,
'जैसे ही पानी घर में घुसने लगा, लेबर पेन शुरू हो गया. इतना दर्द हो रहा था. मुझे बर्दाश्त ही नहीं हो रहा था. मुझे एक नाव में बैठा कर पास के अस्पताल में ले जाने लगे. लेकिन दर्द इतना बढ़ गया कि नाव में ही मेरी डिलीवरी हो गई. तबसे मैं रिलीफ कैंप में हूं. और मेरी बिटिया भी. मैं उसके पैदा होने की ख़ुशी भी नहीं मना पा रही हूं. हम इस घटना से डिस्टर्ब हो गए हैं.'
ज्योति के पति जमुना याद करते हैं. कैसे दर्द से तड़पती अपनी प्रेगनेंट पत्नी, एक 5 साल के बच्चे और बूढ़े मां-बाप को बैठाकर वो पूरी ताकत से नाव खे रहे थे. जिससे वो पड़ोस के गांव तक जल्द से जल्द पहुंच सकें. जहां बाढ़ का पानी उनके घर में न घुसे. लेकिन बच्ची की डिलीवरी के बाद से ये परिवार रिलीफ कैंप में रह रहा है. बच्ची ने तो पैदा होने के बाद से घर की शक्ल ही नहीं देखी है. न उसे पूजा के लिए पुजारी के पास ले जाया गया है. न ही उसका नामकरण हो पाया है. जो कि पैदाइश के छठे दिन किया जाता है. 7 दिन की बच्ची को गोद में लिए ज्योति खुश नहीं हैं. बच्ची के होने पर जो ट्रॉमा उसने झेला है, उसने उनकी ख़ुशी को धुंधला कर दिया है. जमुना दिहाड़ी मजदूर हैं. जिस दिन काम करते हैं, 200 रुपये तक कमा लेते हैं. लेकिन जबसे बाढ़ आई है, वो काम पर नहीं जा पा रहे हैं. परिवार में आए नए बच्चे के बाद पैसों की ज़रूरत बढ़ने लगी है. और जमुना को गरीबी उनकी आंखों में घूरने लगी है. बाढ़ के पानी में सांप और दूसरे जहरीले जानवरों के होने का खतरा रहता है. जिससे बच्ची की हर पल रक्षा करनी पड़ती है. घर में बाढ़ का पानी आ जाने से सारे फर्नीचर और बिस्तर ख़राब हो गए हैं. ये सिर्फ एक घर की कहानी नहीं. काजीरंगा के आस-पास रिलीफ कैंपों में ऐसे 300 परिवार रह रहे हैं. उसी रिलीफ कैंप में रहने वाले लक्ष्मण कहते हैं:
'मेरा पूरा गांव बाढ़ में डूब गया है. घर की दीवारों में दरारें आ गई हैं. भेड़-बकरियां खो गई हैं. फसल बर्बाद हो गई है. हफ्ते भर से काम नहीं मिला है. कैसे कमाएं? और खाएं क्या?'
एक और निवासी कहते हैं:
'सड़कें नहीं हैं. हमें तैर के जाना पड़ता है. एक इंसान को 3 दिन के लिए एक किलो चावल मिलता है. जो किसी को पूरा नहीं पड़ता. खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं है. यहां कोई नर्स या दवाइयां नहीं है. लोगों को गंदे पानी से बीमारियां हो रही हैं. पानी में सांप होते हैं. पता नहीं हम कहां जाएंगे.'
ये असम से आई बाढ़ की लेटेस्ट तस्वीरें हैं.flood 4
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flood 1 असम में 622 रिलीफ कैंप बनाए गए हैं. जिनमें 5 लाख लोग रह रहे हैं. लोगों को बचाने के लिए 500 नावों का इंतजाम किया गया है. लोगों के बचाए हुए पैसे, कागजात सब खो गए हैं. आइडेंटिटी के सारे सबूत खो गए हैं. ये बाढ़ लोगों की पहचान तक खा गई है.

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