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नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सदन की 'सबसे कम' बैठकें, डिप्टी स्पीकर ही नहीं चुने गए!

चुनाव में वोट डालने से पहले ये तो जान ही लीजिए कि आपके जनप्रतिनिधि संसद में कितने एक्टिव हैं.

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functioning of 17th loksabha
संसद चलाना सरकार का काम है, इस मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन कैसा रहा? (फ़ोटो - PTI)
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सोम शेखर
12 फ़रवरी 2024 (Published: 09:17 PM IST)
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अप्रैल-मई में 2024 के लोकसभा चुनाव होने हैं. मई के आख़िरी हफ़्ते तक नरेंद्र मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल पूरा हो जाएगा और नतीजे आ जाएंगे कि 18वीं लोकसभा में सरकार कौन बना रहा है. इस बीच 17वीं लोकसभा का रिपोर्ट कार्ड आ गया है. संसदीय मामलों पर रिसर्च करने वाली संस्था PRS ने लोकसभा की कार्य-कुशलता की समीक्षा की है, और कुछ तथ्य जारी किए हैं.

कैसी चली 17वीं लोकसभा?

- जून, 2019 से फरवरी, 2024 के बीच संसद ने काम किया. इन पांच सालों में लोकसभा ने अपने निर्धारित समय का 88% काम किया, और राज्यसभा ने 73%.

- वित्त और विनियोग विधेयकों को छोड़ दें, तो पांच सालों में कुल 179 विधेयक पारित किए गए. वित्त और गृह मंत्रालय ने सबसे ज़्यादा विधेयक पेश किए. उनके बाद विधि एवं न्याय मंत्रालय, फिर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का नंबर है.

- पारित किए गए प्रमुख विधेयक:

  • जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019
  • तीन कृषि क़ानून (जिन्हें बाद में निरस्त कर दिया गया)
  • डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक, 2023
  • तीन श्रम संहिता,
  • महिला आरक्षण विधेयक, 2023
  • मुख्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और कार्यालय) विधेयक, 2023.
  • इनके अलावा IPC, CrPC और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन विधेयक भी पारित कर दिए गए हैं.

- 17वीं लोकसभा में कुल 274 बैठकें हुईं. इतनी या इससे कम बैठकें पहले केवल चार लोकसभाओं में हुई थीं, और उन चारों लोकसभाओं ने पांच साल पूरे नहीं किए थे. किन्हीं कारणों से पहले ही भंग कर दिया गया था. सबसे कम बैठकें 2020 में हुई थीं. कोविड-19 महामारी के बीच.

सोर्स - PRS.

- इस लोकसभा के दौरान हुए 15 सत्रों में से 11 को समय से पहले ही स्थगित कर दिया गया. नतीजतन 40 निर्धारित बैठकें हुई ही नहीं.

- हालांकि, इस कार्यकाल के दौरान पेश किए गए ज़्यादातर विधेयक अटके नहीं, पास हो गए. 58% विधेयक पेश होने के दो हफ़्ते के अंदर ही पारित कर दिए गए.

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- विपक्ष अक्सर सरकार की आलोचना करता रहा है कि बिना किसी बहस के शोर-शराबे के बीच विधेयकों को जल्दबाज़ी में पारित कर दिया जाता है. आंकड़े विपक्ष के दावे का समर्थन करते हैं. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक और महिला आरक्षण विधेयक जैसे बड़े विधेयक तो दो दिनों के अंदर ही पारित हो गए. कुल विधेयकों में से 35% ऐसे हैं, जो लोकसभा में एक घंटे से भी कम समय की चर्चा के बाद पास हो गए. राज्यसभा के लिए ये आंकड़ा 34% रहा.

- केवल 16% विधेयकों को ही संसदीय जांच के लिए स्थायी समितियों को भेजा गया. ये पिछली तीन लोकसभाओं के तुलना में सबसे कम है.

- बीते पांच सालों में संसद के दोनों सदनों में 206 मौक़ों पर सांसदों को निलंबित किया गया. 2023 के शीतकालीन सत्र में सदन में गंभीर कदाचार के लिए 146 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था.

सोर्स - PRS

- ज़्यादातर बिल बिना रिकॉर्ड वोटिंग के ही पारित कर दिए गए. वैसे 16वीं और 15वीं लोकसभा के दौरान भी यही पैटर्न देखा गया था.

- संविधान के अनुच्छेद-93 में लिखा है कि लोकसभा ‘जितनी जल्दी हो सके’ एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का चुनाव करे. मगर इस बार - और ये पहली बार है - जब लोकसभा ने पूरे कार्यकाल के लिए उपाध्यक्ष चुना ही नहीं.

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- कम बैठकों का एक और बड़ा नुक़सान निजी विधेयकों (PMB) पर पड़ा. इस लोकसभा में कुल मिलाकर 729 PMB पेश किए गए. हालांकि, उनमें से केवल दो पर ही चर्चा हुई. राज्यसभा में 705 पीएमबी पेश किए गए और 14 पर चर्चा हुई. आज़ाद भारत के विधायी इतिहास में केवल 14 निजी विधेयर पारित किए गए हैं. और, 1970 के बाद से अज तक दोनों सदनों में कोई भी PMB पारित नहीं हुआ है.

- इस लोकसभा के भंग होने के साथ ही चार विधेयक रद्द हो जायेंगे. इनमें अंतर-राज्य नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019; बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021 और बिजली (संशोधन) विधेयक, 2022 हैं.

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