'मुस्लिम महिला' ने मांगा हिंदू अधिनियम के तहत संपत्ति में हिस्सा, CJI चंद्रचूड़ बोले- विचार करेंगे
Kerala की रहने वाली महिला ने 29 अप्रैल को Supreme Court में Indian succession law के तहत बंटवारे की गुहार लगाई. जिसपर कोर्ट विचार करने के लिए तैयार हो गया है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की बेंच में विचार के लिए एक ऐसा केस आया, जिसने सबका ध्यान खींच लिया है. इस्लाम परिवार में पैदा होने वाली लेकिन इस्लाम में आस्था नहीं रखने वाली एक महिला ने पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी मांगी है. ये हिस्सेदारी शरिया के मुताबिक नहीं बल्कि भारतीय उत्तराधिकार कानून ( Indian succession law) के तहत मांगी गई है. इसके लिए केरल की महिला ने 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गुहार लगाई. जिसपर कोर्ट विचार करने के लिए तैयार हो गया है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक केरल की रहने वाली महिला के पुरखों ने इस्लाम कबूल कर लिया था. इस हिसाब से वो मुस्लिम परिवार में जन्मी है. लेकिन उसके पिता की पीढ़ी से उन्होंने इस्लाम धर्म में आस्था छोड़ दी. महिला की अर्जी पर CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने महिला के वकील के तर्कों को सुनने के बाद उस पर विचार-विमर्श किया. इसके बाद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को एमिकस क्यूरी (amicus curiae) यानी न्यायमित्र नियुक्त करने का निर्देश दिया. जो अदालत को कानूनी और तकनीकी पहलुओं से परिचित करा सके.
इस याचिका को दायर करने वाली महिला का नाम सफिया है. जो केरल में पूर्व-मुस्लिमों (जो मुस्लिम परिवार में जन्में लेकिन अब इस्लाम में आस्था नहीं रखते) का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संघ की महासचिव हैं. सफिया ने अपनी जनहित याचिका यानी PIL में कहा कि हालांकि उन्होंने आधिकारिक तौर पर इस्लाम नहीं छोड़ा है. लेकिन वो इसमें विश्वास भी नहीं रखती हैं. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के अपने मौलिक अधिकार का उपयोग भी करना चाहती है.
महिला की तरफ से तर्क दिया गया कि संविधान का अनुच्छेद 25 उसे किसी भी धर्म में आस्था रखने या न रखने की आजादी देता है. साथ ही महिला ने ये भी तर्क दिया कि उसके पिता भी इस्लाम में आस्था नहीं रखते हैं, इसलिए वो भी शरिया कानून के मुताबिक वसीयत नहीं लिखना चाहते हैं. लेकिन इस याचिका में पेंच ये है कि मुस्लिम खानदान में जन्मे व्यक्ति को पैतृक संपदा में बंटवारे में हिस्सा मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक ही मिलता है. उसे धर्मनिरपेक्ष कानून का लाभ नहीं मिलेगा. जबकि महिला भारतीय उत्तराधिकार कानून 1925 के मुताबिक बंटवारा और हिस्सेदारी चाहती है.
सफिया के वकील ने कोर्ट से कहा,
“याचिकाकर्ता का भाई एक अनुवांशिक मानसिक बीमारी डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त है. उनकी एक बेटी भी है. पर्सनल लॉ यानी इस्लामिक उत्तराधिकार कानून के तहत उनके भाई को संपत्ति का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा, जबकि याचिकाकर्ता को सिर्फ एक तिहाई.”
सफिया ने वकील ने अदालत से ये भी अनुरोध किया कि अदालत को ये एलान करना चाहिए कि याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं है. वरना उसके पिता उसे संपत्ति का एक तिहाई से अधिक नहीं दे पाएंगे. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वो इसकी घोषणा कैसे कर सकते हैं? आपके अधिकार या हक आस्तिक या नास्तिक होने से नहीं मिलते, बल्कि ये अधिकार आपको आपके जन्म से मिले हैं. अगर मुसलमान के रूप में पैदा होते हैं, तो आप पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होगा.
इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे हफ्ते में यानी गर्मी की छुट्टियों के बाद निर्धारित है.
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