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'उस पार कब्र में लेटे एधी साहेब आतंकी बुरहान के जनाजे को देख उदास हुए होंगे'

एक दिन. दो मुसलमानों के जनाजे. एक सरहद के इस पार. एक उस पार पाकिस्तान में. दोनों में हजारों की भीड़. पर फर्क जमीन आसमान जितना...

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दाएं अब्दुल सत्तार एधी का जनाजा, बाएं में आतंकी बुरहान वानी का जनाजा
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विकास टिनटिन
10 जुलाई 2016 (Updated: 10 जुलाई 2016, 08:04 AM IST) कॉमेंट्स
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एक दिन. दो मौतें. दो मुसलमान. एक सरहद के इस पार. एक उस पार पाकिस्तान में. शनिवार को दो जनाजे उठे. दोनों में हजारों की भीड़ रही. जनाजों के पीछे कहीं ठहरी औरतें आंखों में आंसू लिए नजर आईं. तमाम आदमियों की भीड़ में जनाजा बढ़ता गया. पर दोनों जनाजों के बीच एक गहरी लकीर रही. न सिर्फ सरहद की. बल्कि आसमां-खाई को पाट देने वाली लकीर.

नेक दिल अब्दुल सत्तार एधी और आतंकी बुरहान वानी.

अब्दुल सत्तार एधी भलाई की सप्लाई करने दूजे जग के लिए रवाना हो गए. सालों पहले कराची में अपने लिए बनवाई कब्र के रास्ते शनिवार को एधी उस पार की मिट्टी में मिल गए. 58 हजार से ज्यादा लावारिस लाशों
को खुद गुस्ल करवाने वाले एधी को गुस्ल करवाने वाले हाथ भी हजारों में रहे. आखिरी सफर पर जुटी हजारों की भीड़ अब्दुल साहेब का कर्ज चुका नहीं पाई. पाकिस्तान के कराची स्टेडियम में अंतिम विदाई के जब उनका शव रखा गया तो शिकायत ये भी रही कि आम लोग एधी को आखिरी अलविदा करीब से नहीं कह पाए. हुक्मरान उधर भी हावी. हुक्मरान इधर भी हावी.
कराची का नेशनल स्टेडियम. एधी साहेब की अंतिम विदाई. फोटो क्रेडिट: Reuters
कराची का नेशनल स्टेडियम. एधी साहेब की अंतिम विदाई. फोटो क्रेडिट: Reuters
कहीं पढ़ा कि अब्दुल साहेब की एधी फाउंडेशन उनकी सांस रुकने के बाद भी चलती रही. एंबुलेंस के लिए फोन आते रहे. अब्दुल साहेब के बच्चे अब्बा के इंतकाल के बावजूद लावारिस लाश उठाने जाते रहे. शायद ये बच्चे इस यकीन से चूर थे कि अब्बा की लाश उठाने वाले हजारों में हैं.
फोटो क्रेडिट: Reuters
फोटो क्रेडिट: Reuters

हजारों पाकिस्तानी, जो उदास हैं. अपने अब्बा के मर जाने से. अब्बा भी ऐसे कि मरने के बाद जब लाश देखो तो आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी. 88 बरस की दो आंखें अब किसी दूसरे के अब्बा को दुनिया देखने के काम आएंगी. क्योंकि अब्दुल अब्बा तो जैसी देख और बना गए दुनिया, वैसी अब शायद ही कोई उस पार बना पाए. या इस पार भी....
आतंकी बुरहान वानी का जनाजा, फोटो क्रेडिट: Reuters
आतंकी बुरहान वानी का जनाजा, फोटो क्रेडिट: Reuters

इस पार भी एक जनाजा उठा. आतंकी बुरहान वानी का. हजारों की भीड़ रही. जनाजे की शक्ल कब्र पहुंचने तक दिखती रही. शक्ल का दिखना तस्वीरों का खिचना जारी रहा. कुछ कह रहे हैं कि वानी बुरहान अगला पोस्टर बॉय है
.
पोस्टर बॉय होना हमारे दौर में स्टेटस सिंबल हो गया है. न सिर्फ पोस्टर बॉय के लिए. बल्कि उसके फैन्स और विरोधियों के लिए.
उस पार के जनाजे में जहां सब चुपचाप रोए जा रहे थे. वहीं इस पार के इस जनाजे में लोग रोने के साथ कुछ काम और भी कर रहे थे. लोगों का पत्थर फेंकना. फिर सुरक्षाबलों का जवाबी कार्रवाई करना. दोनों किसी मुकम्मल लेकिन कड़वी तस्वीर के कैप्शन की तरह क्रमश: लिखा जा रहा था. दाएं से बाएं. सही से गलत.
फोटो क्रेडिट: Reuters
फोटो क्रेडिट: Reuters

बुरहान वानी के 'मरने का अफसोस' और 'खुशी मना रहे' लोगों की झड़प में 16 जिंदगियां खत्म हो गईं. उस पार के जनाजे में लेटा शख्स शायद कहीं से ये देख दुखी हुआ होगा. पर उसकी बचाई जिंदगियां इससे कहीं ज्यादा थीं. कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता. कोई भी नहीं. पर जनाजा बढ़ा चला जा रहा था, उस पार भी. इस पार भी. दोनों में कहीं कहीं पाकिस्तान का झंडा दिखे जा रहा था. ऐसे में एक लाइन जो मन को कचोटती है. ये कौन लोग हैं, जो दोनों जनाजों की भीड़ में फर्क नहीं समझ पा रहे हैं.
ऐसे पोस्टर बॉय या कथित 'कश्मीर के बच्चे' के होने या मरने की क्या अहमियत, अगर जिंदगियां खत्म हुए जा रही हैं. उसके अपने इलाकों अनंतनाग, ट्राल, कोकरनाग और कुलगाम में कर्फ्यू लग गया है. उसके नाम पर मरने के बाद भी 12 से ज्यादा मांएं अपने बच्चे खो चुकी हैं.
बुरहान वानी के जनाजे के पीछे रुकी ठहरी औरतें, फोटो क्रेडिट: Reuters
बुरहान वानी के जनाजे के पीछे रुकी ठहरी औरतें, फोटो क्रेडिट: Reuters

3 पुलिसवाले भी लापता हैं. 200 से ज्यादा लोग घायल हैं. वो आतंकी, जो खुलेआम लोगों को मारने की धमकी देता था. हाथों में बंदूक लिए फिरता था. किसी जेहाद को पूरा करने के दौरान नहीं, महबूब से मिलने के दौरान पकड़ाया गया और मारा गया. हिंसा अब भी हो रही है. रुक रुक कर ही सही.
वो आतंकी जिसके बारे में जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'मेरी बात याद रखना. बुरहान ने सोशल मीडिया के जरिए जितने आतंकी भर्ती किए थे. अब उसकी कब्र से उससे ज्यादा भर्तियां होंगी.' उमर साहेब की बात अगर सही भी साबित होती है तो जनाजे में शामिल या पत्थरबाजी कर रहे लोग ये सवाल खुद से करेंगे कि कब्र का यूं इस्तेमाल क्या कश्मीरी मांओं को उनके बेटों से लंबे वक्त तक करीब रख पाएंगी.
हैदर फिल्म का एक डॉयलॉग है, 'इंतकाम से सिर्फ इंतकाम पैदा होता है.'
उस पार कब्र में लेटा बिन आंखों का वो बूढ़ा शख्स इस पार के जनाजे और उसकी भीड़ को देख पक्का उदास हो रहा होगा. क्योंकि ऐसी दुनिया तो न उसने उस पार की चाही होगी, न इस पार की. जो किसी के मरने के बाद भी जिंदगियां छीनने का काम करे.
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