शरद यादव, कांवड़ियों को बेरोजगार बोल लाखों को हर्ट कर दिए
हमको बहुत शिकायत है, धरम-वरम साइड से नहीं, बेरोजगारों पर पॉलिटिक्स करने के कारण है.
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फोटो - thelallantop
रिश्तेदार जब पूछते हैं न कि और बेटा क्या कर रहे हो आजकल? तो कांवड़ लेके नहीं, पियरिया ओढ़ के हमेशा के लिए लौकी-वाला तुमड़ा लेकर हरिद्वार निकल जाने का जी करता है. बैंक पीओ का एक्जाम दिए हो कभी? अब चले जाओ देने. मुंह जो भांटा जैसा है, सूख के बरबटी जैसा हो जाएगा. छह महीने पढ़ने के बाद 120 नंबर आते हैं. तब भी सलेक्शन नहीं होता.ये बताओ जो स्टूडेंट जिंदगी भर सेकंड डिवीजन पास हुआ हो, कैसे 180 नंबर ले आए. ब्लड रिलेशन में समझ नहीं आता कि फोटो में दिख रही महिला अमित की सास की बुआ है कि मौसी. आदमी को तब भगवान ही याद आता है. जिंदगी में एक बार बैठ के 43वें सवाल में बी और डी में कन्फ्यूज हो जाओ. बेरोजगारी पर मुंह न खोलोगे. हमको बुरा इसलिए नहीं लगता कि कांवड़ ले जाने वालों को बेरोजगार कहे हैं. बेरोजगारों साइड से भी ठीक ही है, अगर सरकार को निशाने पर लेते हो. पर एक्सक्यूज मी. ये बेरोजगारी न बड़ी जेनुइन फीलिंग होती है. बड़ी मुश्किल से साधी जाती है, हैंडल विद केयर होती है. बहुत डीप मसला है. कानपुर में बैठ के बकैती काट दिए कोई बात होती है? और हम तो अभी उनकी बस बात बताए हैं जो सरकारी नौकरी ख़ातिर परिच्छा-वरिच्छा देते हैं. उन महान लोगों को तो कभी समझ ही न पाओगे जिनने बेकारी को अंगीकार कर लिया है. तो सुनिए, सब कीजिए, विवादित बयान दीजिए. इस और उस धर्म पर बोलिए. कांवड़ियों और हज वालों को लपेटे में लीजिए. हुल्लड़ पर बवाल काटिए. सब्सिडी पर खिसिआइए. पर प्लीज बेरोजगार शब्द को पॉलिटिक्स में यूज न कीजिए. भावनाएं आहत होती हैं.