The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Is PV Sindhu's victory Sachin ...

सिंधू-साक्षी शानदार खेलीं, पर सचिन को क्यों कोस रहे हो भाई?

जब हमें नए हीरो मिलते हैं तो पुरानों को कोसकर कुंठा निकालने की कोई वजह नहीं खोजनी चाहिए.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
ऋषभ
20 अगस्त 2016 (Updated: 20 अगस्त 2016, 06:53 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
सिंधू जीतीं. साक्षी जीतीं. दीपा करीब पहुंचीं. उसके पहले हॉकी में आस बंधी थी. इससे पहले के ओलंपिक्स ने बॉक्सिंग, शूटिंग और कुश्ती में आस जगाई थी. कबड्डी में भी उत्साह जगा जीतता देखकर. पर क्या इन सबों की जीत में क्रिकेट की हार है? या इन सब की हार में क्रिकेट की जीत है? या सीधे-सीधे कहें तो सचिन तेंदुलकर ही हर फ्रेम में हैं? हमारे यहां अभी तक तो क्रिकेट का मतलब सचिन ही है. आगे बदल सकता है. पर अभी यही है.
एक खास बात है. सचिन ने उतना जिताया नहीं है, जितना खेला है. सच में. पर क्यों हैं वो सबकी जबान पर? क्यों कोई भी जीतता है तो लोग सबसे पहले क्रिकेट को कोसते हैं, फिर सचिन को?
इसकी वजह है. तगड़ी. जब सचिन ने खेलना शुरू किया तब देश में स्थिति बड़ी ही नाजुक थी. पॉलिटिक्स में देश जूझ रहा था. पैसा था नहीं. दूसरे देशों के सामने हाथ फ़ैलाने की नौबत आ गई थी. प्रधानमंत्री का नाम घोटाले में आ रहा था. फिर दो प्रधानमन्त्री मारे जा चुके थे. पंजाब और कश्मीर आतंकवाद से जूझ रहे थे. मंडल-कमंडल की राजनीति ने समाज में आग लगा दी थी. नौकरियां नहीं थीं. प्राइवेट सेक्टर आना शुरू हुआ था. आशा थी कि ये नौकरियां देंगे. पर डर भी था कि सब लूट लेंगे. ऐसे वक़्त में उस 16 साल के लड़के ने सबको जीना सिखाया था. इस देश को खुश होने का मौका दिया था. लगातार. एक नन्हे बालक को मैदान में बड़े-बड़े दिग्गजों की धज्जियां उड़ाते देख जनता जनार्दन का दिल बाग़-बाग़ हो जाता था. ये गुदगुदी पैदा करने वाला था. क्योंकि यकीन नहीं होता था कि ऐसा भी हो सकता है. कि ऐसा हीरा अपने पास भी है. उसको खेलता देखना रोयें खड़ा कर देता था. उसको खेलता देखना परम आनंद था. ऐसे हीरो हर दौर में, हर जगह होते हैं. इनके बिना समाज चलता नहीं. ना यकीन आये तो श्री लंका का इतिहास पढ़ लो. आतंकवाद से टूटे हुए गरीब देश में सनथ जयसूर्या, अरविन्द डी सिल्वा और संगकारा की क्या अहमियत है? क्यों हैं वो उनकी जबान पर? कोई ऐसे ही नहीं रहता दिमाग में आठों पहर. वजह होती है. ये वजह पाकिस्तान के पास भी है. एक गरीब मुल्क, जो बम के धमाके में सोता है और बम के धमाके में जगता है. वो मजाक के उतने बड़े पात्र नहीं हैं जितने कि लगते हैं. दर्द सहते, निराशा में डूबे लोग रहते हैं वहां. जो सोते हैं लोकतान्त्रिक देश में और जागते हैं मिलिट्री रूल में. इसीलिए वहां अहमियत है इमरान खान और वसीम अकरम की. अपने देश में इसकी एक ऐतिहासिक वजह भी थी. जिन अंग्रेजों के सामने नज़र नहीं उठती थी, उनको दबा के ठोंकना सीने में लावा भर देता था. ये स्वाभाविक है. ये होता है जब आप गुलाम रहे हों. कोई दूसरा रास्ता नहीं होता, इससे निज़ात पाने के लिए. इस लड़के ने लगातार खेलकर मन में विश्वास भर दिया. अनजाने में सही. क्योंकि इसने कभी कुछ बोला नहीं. सिर्फ खेलता रहा. और यही अंदाज़ सबको भा गया. जब हमने फुटबॉल को गले लगाया तो मेस्सी में भी तेंदुलकर को ही देखा. क्योंकि उसका भी वही अंदाज़ था.
जब हमें नए हीरो मिलते हैं तो पुरानों को कोसकर कुंठा निकालने की कोई वजह नहीं खोजनी चाहिए. वक्त-वक़्त की बात है. आनंद भी एक टाइम पर हीरो रहे हैं. जिनको चेस समझ आता, वो देखते थे. आज वक़्त बदला है. जो खेल समझने लगते हैं, देख पाते हैं, अच्छा लगने लगता है. जीतते हैं तो और अच्छा लगता है. लड़कियां जीतती हैं तो और भी अच्छा लगता है. हमारे पास हीरो बहुत कम हैं. जो हैं, उनको गिराना नहीं है.
क्रिकेट को अपने यहां ज़्यादा एक्सपोज़र, ज़्यादा पैसा, ज़्यादा प्यार तो मिला ही है. इसकी बड़ी वजह सचिन हैं और भारत की कामयाबी भी. बाक़ी खेलों के लिए हमारी अनदेखी की एक वजह भी यही है. इसके बावजूद, हम 121 करोड़ लोगों को इस बात के लिए तैयार होने की ज़रूरत है कि हम बिना किसी खेल को गरियाए इन सभी खेलों को समान प्यार दे सकें. इसका सीधा रिश्ता कामयाबी से है, तो कमसकम उन सभी खेलों से इश्क़ कर सकें, जिनमें हम अच्छा कर रहे हैं.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement