1984 सिख दंगों के वक्त क्या कर रहे थे रघुराम राजन
और हां, कॉलेज के दिनों में राजन कविताएं लिखते थे और लड़कियों से घिरे रहते थे...
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फोटो - thelallantop
"मुश्किल वक्त में भी रघु निडर रहता था. मेरे पति सिख दंगों के दौरान इंग्लैंड में पोस्टेड थे. मैं भी उनके साथ वहीं थी. दिल्ली में रघु अपने छोटे भाई के साथ रह रहा था. जैसे ही हमने दिल्ली में इंदिरा गांधी की मौत और सिखों पर हो रहे हमले के बारे में सुना. मैंने अपनी छोटी बहन से बात की. उससे कहा कि दोनों के पास दिल्ली चली आओ. पर जब वो रास्ते में थीं तो उनकी ट्रेन पर किसी ने अटैक कर दिया, क्योंकि उस ट्रेन में एक सिख बैठा था. रघु ही था जो आया और अपनी मौसी को बचाकर घर ले गया. फिर तुरंत रघु IIT निकल गया. जहां वो और उसके दोस्त सिखों को बचाने में जुटे थे. जितने सिखों को वो बचा सकते थे, उन्होंने बचाया. क्योंकि IIT हॉस्टल ऐसे कामों के लिए सबसे सेफ जगह थी.''मैथिली कहती हैं, ''राजन ने खुद ये सारी बातें हमें नहीं बताईं. ये सब मैंने उसके भाइयों-बहनों और दूसरे लोगों से सुनी हैं. रघु IIT स्टूडेंट यूनियन का जनरल सेक्रेटरी था. उसे अपनी ड्यूटी बखूबी पता है.'' लड़कियों से घिरे रहते थे रघुराम राजन गोविन्दराजन इस बात पर मुस्कुरा कर कहते हैं, उसकी इन्हीं सब आदतों की वजह से मैथिली ने तय किया कि वो सेंट स्टीफेंस की बजाय IIT में पढ़ेगा. वरना राजन स्टीफेंस में इकोनॉमिक्स पढ़ना चाहते थे. मैथिली मुस्कुराते हुए कहती हैं, 'राजन बहुत पढ़ता था, कविताएं लिखता था और हमेशा लड़कियों से घिरा रहता था. हमने अगर उसे सेंट स्टीफेंस भेज दिया होता तो पक्का वो पॉलिटिक्स में चला गया होता और छात्रनेता बन गया होता जैसे आज कल JNU में होते हैं.' पहले नौकरी बाद में परिवार मैथिली का कहना है कि रघुराम के पापा गोविंदराजन हमेशा देशसेवा को फैमिली से ऊपर रखते हैं. गोविंदराजन इसपर उन्हें रोकते हैं. पर वो कहती जाती हैं, "जिन्दगी हमारे लिए आसान नहीं थी. मेरे पति ने मुझे और बच्चों को हमेशा जॉब के बाद रखा. उनके काम की वजह से मुझे बच्चों को अकेले पालना पड़ा." पापा के करियर का अंत भी कंट्रोवर्शियल था गोविंदराजन के करियर का अंत भी कंट्रोवर्शियल ही था. उन्होंने उस वक्त प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के साथ बोफोर्स केस में नाम आने के बाद रॉ प्रमुख के तौर पर प्रमोशन लेने से मना कर दिया था. पर अब वो इस बारे में बात नहीं करते हैं. एक रिटायर अफसर जो गोविंदराजन के साथ काम कर चुका था, उसने बताया, "20 सालों तक देश की सेवा करने के बाद गोविंदराजन को 4 महीने घर बैठना पड़ा था. बहुत सी जांच और बेइज्जती के बाद उनको जॉइंट इंटेलिजेंस कमेटी का चेयरमैन बनाया गया. वो भी उनकी रिटायरमेंट से जस्ट पहले." मंदिर नहीं जाते हैं रघुराम मैथिली का कहना है, "जब से रघु RBI का गवर्नर बना है, मुश्किल से 4-5 बार घर आया होगा. उसके पास खुद के लिए बिल्कुल वक़्त नहीं है. उसके पास घर आने का वक़्त भी होता है, तो वो हमारे साथ रह नहीं सकता. वो होटल में रहता है. जहां उसके साथ ढेर सारे सिक्योरिटी वाले रहते हैं. अगर मिलना हो तो तमाम फॉर्मेलिटीज करनी पड़ती हैं. "मेरे पति के पिछले जन्मदिन पर रघु ने उन्हें कोडिकनल ले जाने का वादा किया था. रास्ते में मैंने उससे मीनाक्षी मंदिर ले जाने को कहा, जिसके लिए वो बड़ी मुश्किल से वक़्त निकाल पाया. राजन बहुत कम मंदिर जाता है. वैसे भी इतने अच्छे आदमी को मंदिर जाने की कोई जरूरत नहीं है. मैं जानती हूं हमारे अंदर ही भगवान है." दुखी तो है पर हर्ट नहीं होता रघु जब मैथिली से सवाल पूछा गया, "जिस तरह राजन RBI के गवर्नर का पद छोड़ रहे हैं. क्या उन्हें दुख हो रहा होगा?" मैथिली ने जवाब दिया, "राजन कभी दुख को शो नहीं करता. वो ऐसा होने पर बात करना बंद कर देता है. सरकार के सही समय पर सपोर्ट न करने से उसे दुख तो हुआ होगा पर ये बात उसे किसी भी तरह से हर्ट नहीं करेगी."
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