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भारत की सेना को मिलीं K9 वज्र और M777 होवित्जर तोपों की खास बातें

इसमें भी इंडियन पार्टनर है.

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1980 के दौर में बोफोर्स की खरीद हुई थी. बोफोर्स से जुड़े विवाद का भी असर रहा कि उसके बाद से भारतीय सेना के आर्टिलरी डिविजन के लिए गन्स का कोई बड़ा ऑर्डर नहीं दिया गया. इस लिहाज से K9 वज्र और M777 होवित्जर गन्स की एंट्री काफी लॉन्ग अवेटेड थी.
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स्वाति
9 नवंबर 2018 (Updated: 9 नवंबर 2018, 09:16 AM IST) कॉमेंट्स
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K9 वज्र. M777 होवित्जर. 9 नवंबर को भारतीय सेना में इन दोनों आर्टिलरी गन्स का दाखिला हुआ. महाराष्ट्र के देवलाली आर्टिलरी सेंटर पर हुए एक प्रोग्राम में रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने आधिकारिक तौर पर इन दोनों को सेना में शामिल कर लिया. 2020 तक कुल 100 K9 और 145 M777 सेना में इस्तेमाल के लिए आएंगी. इनकी खासियत क्या है, इंडियन आर्मी को इनसे कैसे फायदा होगा, इस डील की खास बात क्या है, ये सब पॉइंट्स में जान लीजिए. 1. ये दोनों 155 एमएम की गन्स हैं. गन्स में एमएम का मतलब होता है वो इलाका (यानी डायमीटर) जहां से गोली-गोला निकलता है. मतलब गोला निकलने वाली जगह का मुंह कितना बड़ा है. जितना बड़ा मुंह होगा, उतना ही बड़ा होगा उससे निकलने वाला गोला. टेक्निकल भाषा में इसको कहते हैं बैरल का बोर साइज. 2. K9 वज्र को मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में इस्तेमाल किया जाएगा. भारत इन्हें पाकिस्तान से सटी अपनी पश्चिमी सीमा पर तैनात करेगा. M777 होवित्जर पहाड़ी इलाकों के लिए ज्यादा मुफीद है. ये काफी हल्के वजन की गन्स हैं. 3. नवंबर 2016 में भारत का अमेरिका के साथ करार हुआ था. इसमें तय हुआ कि भारतीय सेना के लिए 145 M777 बनाए जाएंगे. इनकी कुल लागत होगी 5,070 करोड़ रुपये. 4. M777 गन्स को बनाती है ब्रिटेन की एयरोस्पेस कंपनी BAE सिस्टम्स. इसने मई 2017 में भारत को शुरुआती दो M777 दिया था. इंडियन आर्मी ने इसे पोखरण भेजा था. ताकि इनकी रेंज और इससे जुड़ी बाकी चीजों का डेटा तैयार किया जा सके. सितंबर 2017 में इन दोनों में से एक गन में दिक्कत आ गई. एक ऐक्सिडेंट में इसका बैरल खराब हो गया. इसकी जांच हुई. इसके बाद तीन और M777 की डिलिवरी हुई भारत को. इसी तरह 20 और गन्स की डिलिवरी होगी. इसके बाद 120 गन्स को भारत में बनाया जाएगा. इसमें पार्टनर होगा महिंद्रा. 5. M777 का इस्तेमाल इराक और अफगानिस्तान युद्ध में हो चुका है. मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों के अलावा इन्हें ऊंचे पहाड़ी इलाकों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. ऊंचाई के इलाकों में ले जाने के लिए हेलिकॉप्टर की जरूरत पड़ेगी. 6. K9 वज्र की डील तकरीबन 4,300 करोड़ रुपये की है. इसे साउथ कोरिया की सेना भी इस्तेमाल करती है. भारत ने इसके लिए साउथ कोरिया के की हथियार निर्माता कंपनी 'हानवा टेकविन' के साथ हाथ मिलाया है. भारत में इसका पार्टनर होगा लार्सन ऐंड टर्बो. 7. K9 के वार करने की मैक्सिमम रेंज है 28 से 38 किलोमीटर. K9 वज्र में तीन तरह के फायरिंग मोड हैं. पहला बर्स्ट मोड, जिसमें 30 सेकेंड के अंदर तीन राउंड फायर हो सकेगा. दूसरा मोड है इन्टेंस मोड, जिसमें ताबड़तोड़ फायरिंग होगी. तीन मिनट के भीतर-भीतर 15 राउंड तक की फायरिंग. तीसरे मोड का नाम है सस्टेन्ड. इसमें एक घंटे के अंदर 60 राउंड फायरिंग हो पाएगी. यानी, एक मिनट में एक राउंड. 8. भारत को कुल 100 K9 मिलनी हैं. हानवा टेकविन साउथ कोरिया का बड़ा डिफेंस सप्लायर है. इस डील के साथ ही उसकी भारतीय मार्केट में एंट्री हुई है. जो 100 गन्स भारतीय सेना को मिलेंगी, उनमें से 90 को भारत में ही असेंबल किया जाना है. ये जो 10 गन्स की शुरुआती खेप नवंबर 2018 में आ रही है, ये साउथ कोरिया में बनाई गई हैं. इन्हें महाराष्ट्र के पुणे के पास तालेगांव स्थित L&T के स्ट्रैटजिक सिस्टम्स कॉम्प्लैक्स में इनकी फाइनल असेंबलिंग होगी. 9. M777 के वार करने की अधिकतम क्षमता 30 किलोमीटर है. 10. ये गन सिस्टम चीन और पाकिस्तान की सीमा के पास इंडियन आर्मी की काफी मदद करेंगे. 11. बोफोर्स डील के बाद ये पहला मौका है जब भारतीय सेना के आर्टिलरी डिविजन में इतनी बड़े स्तर पर गन्स की एंट्री हुई है. 12. 1960 और 70 के दशक में भी भारतीय सेना में 130 एमएम की गन्स लाई गई थीं. फिर 80 के दशक में 105 एमएम की फील्ड गन्स को भी एंट्री मिली. इन्हें भारत में ही विकसित किया गया था. इन दोनों तरह की गन्स के साथ अपने-अपने हिस्से की परेशानियां थीं. 130 एमएम गन्स में पहाड़ों पर फायरिंग करने की क्षमता नहीं थी. जबकि 105 एमएम गन्स का रेंज बहुत कम था. 13. लोग ये भी कह रहे हैं कि मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' पर काफी बड़ी-बड़ी बातें की थीं. मगर जितनी बातें हुईं, उतना काम नहीं हुआ. इन आलोचनाओं के बीच सरकार इन दोनों गन्स को अपने डिफेंस में इस्तेमाल कर सकती है. क्योंकि दोनों का ही एक हिस्सा 'मेक इन इंडिया' के तहत तैयार होना है.
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