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कॉन्डम की वजह से पिटती है दिल्ली की हर चौथी औरत

दिल्ली शहर में घरेलू हिंसा का एक बड़ा कारण सामने आया है.

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पुलिस की किसी कार्रवाई का ऑटो ड्राइवरों पर कोई असर होता नहीं दिख रहा. सांकेतिक तस्वीर. रायटर्स.
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श्री श्री मौलश्री
1 अगस्त 2016 (Updated: 13 अप्रैल 2017, 01:58 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली शहर में घरेलू हिंसा का एक बड़ा कारण सामने आया है. ज्यादातर मर्द सेफ सेक्स नहीं करना चाहते. बहुत सारे आदमी कॉन्डम इस्तेमाल नहीं करना चाहते. वो अपनी बीवियों को भी गर्भ रोकने की दवाइयां इस्तेमाल नहीं करने देते. इस बात पर अगर पत्नी विरोध करे, तो वो उसको मारते हैं. शारीरिक और मानसिक रूप से टॉर्चर करते हैं. ये बातें इंडियन जर्नल ऑफ़ कम्युनिटी मेडिसिन के नए अंक की एक रिपोर्ट में कही गई हैं. नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे के हिसाब से भारत में 37 परसेंट औरतें अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी में सेक्शुअल, मानसिक और शारीरिक हिंसा सहती हैं. सर्वे में ये भी सामने आया कि ऐसा करने वाले ज़्यादातर आदमियों की महीने की सैलरी 25,000 रुपए से ज्यादा है.  दिल्ली की 500 औरतों पर एक सर्वे किया गया. ये औरतें अलग-अलग तबके से थीं. लोगों का मानना होता है कि घरेलू हिंसा अक्सर कम पढ़ी-लिखी औरतों के खिलाफ होती है. लेकिन इस स्टडी में एक ज़रूरी बात सामने आई. कुछ ऐसी औरतें थीं, जो पढ़ी-लिखी नहीं थीं. कुछ ग्रेजुएट थीं. और कुछ डॉक्टरेट भी. इस स्टडी में 46 परसेंट औरतों ने बताया. उनके पति कॉन्डम यूज़ नहीं करना चाहते. इस वजह से कई औरतें अपनी मर्ज़ी के बिना प्रेग्नेंट हो चुकी है. 39 परसेंट औरतों के पति उनका रेप करते हैं. गर्भ रोकने वाली दवाइयां इस्तेमाल करने पर वो उनके शरीर में रॉड, सेफ्टी पिन या दूसरी नुकीली चीज़ें चुभो देते हैं. 23 परसेंट औरतें हर रोज मारपीट सहती है. 33 परसेंट को आए दिन सिर्फ कॉन्डम के इस्तेमाल की वजह से गालियां सुननी पड़ती हैं. इस स्टडी की ऑथर डॉ. नीलांचली सिंह का कहना है. 'औरतों को बच्चे पैदा करने का फैसला लेने का हक नहीं है. ज़्यादातर जगहों पर अभी भी औरतों को फैमिली प्लानिंग का हक नहीं है. बच्चे पैदा करने का हक या तो पति का होता है या सास का. कब बच्चा पैदा करना है. कितने बच्चे. और बच्चों के पैदा होने पर रोक लगाने जैसी बातें आज भी कई जगहों पर बिलकुल नई हैं. जो औरतें आदमियों पर डिपेंडेंट हैं. आदमी उनको कांट्रसेप्टिव के लिए पैसे ही नहीं देते. मानसिक रूप से टॉर्चर कर देते हैं. गालियां देते हैं. हर रोज़ सुबह-शाम मारपीट करते हैं. सिगरेट और प्रेस से जला देते हैं. फिर बिना कॉन्डम के ही सेक्स भी करते हैं. इस तरह से औरतें बार-बार प्रेगनेंट होती हैं. बार-बार एबॉर्शन करवाए जाते हैं. औरत का शरीर बिलकुल खोखला हो जाता है. कई औरतों के शरीर पर कभी ना ठीक हो पाने वाले घाव दिखते है. कई डिप्रेशन में चली जाती हैं. खुदकुशी कर लेती हैं. या बार-बार खुदकुशी की कोशिशें करती हैं.

स्टडी में पता चला कि ये सब झेलने वाली 29 परसेंट औरतें पढ़ी-लिखी नहीं थीं.  71 परसेंट औरतें ग्रेजुएट थीं. या उससे भी बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं.

पूरे शहर में करीब 37 परसेंट औरतें किसी न किसी तरह की घरेलू हिंसा झेलती हैं. इनमें से सिर्फ 12 परसेंट ही विरोध करने की हिम्मत कर पाती हैं. 88 परसेंट ऐसी हैं. जो मान चुकी हैं यही उनकी किस्मत है. उनके नसीब में यही लिखा था. इसलिए उनके साथ ऐसा हो रहा है.  इस तरह के टॉर्चर की वजह से औरतों के शरीर और दिमाग की हालत काफी खराब हो जाती है. उनके शरीर में खून की बहुत कमी हो जाती है. कम उम्र में ही वो बहुत कमजोर हो जाती हैं. बच्चे पैदा करने में कई बार उनकी मौत भी हो जाती है. घरेलू हिंसा के इतने खतरनाक केस सामने आते हैं कि डॉक्टर भी घबरा जाते हैं. एक डॉक्टर का कहना है. उनके पास कई ऐसे केस आते हैं. जब औरतें उनके पास आती हैं. उनके पूरे शरीरों पर कटे और चीरों के निशान होते हैं. ये निशान बहुत गहरे और खतरनाक होते हैं. डॉक्टर जब ऑपरेशन करते हैं. उनको औरतों के शरीर में लोहे की कई नुकीली चीज़ें धंसी हुई मिलती हैं. कई बार तो शरीर की हालत ऐसी हो चुकी होती है. कि औरतें के लिए पॉटी-पेशाब भी मुश्किल हो जाता है.
सोचकर ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन बहुत मुमकिन है कि हमारे पड़ोस में रहने वाली या सगी भाभी या चाची भी इस तरह की हिंसा की शिकार हों.

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