न्यूयॉर्क और बॉम्बे के 'humans' के बीच क्या विवाद हो गया?
शहर और शहरियों की कहानियां बीनने वाली दो वेबसाइटों में कॉपीराइट का मसला हो गया है. लेकिन आपस में नहीं, तीसरे की वजह से. पूरा मामला आसान भाषा में समझ लीजिये.

शहर और शहरियों की कहानियां समेटने वाला एक ब्लॉग पेज है, ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे (Humans of Bombay). राइटर-फ़ोटोग्राफ़र करिश्मा मेहता ने 2014 में इसकी शुरुआत की थी. तीन चीज़ों के लिए सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय है: मुंबई के जीवन को उकेरने, क़िस्सा-गोई के अनोखे ढंग और मुंबई को अब तक बॉम्बे लिखने-कहने की छूट. लेकिन ये कॉन्सेप्ट असल में पुराना है. कथित तौर पर 'ह्यूमन्स ऑफ़ न्यू यॉर्क' (Humans of New York) से प्रेरित है. ये भी एक फ़ोटो-ब्लॉग है, जिसमें न्यूयॉर्क शहर के क़िस्से मिलते हैं. नवंबर, 2010 में अमेरिकी फ़ोटोग्राफ़र ब्रैंडन स्टैंटन ने ह्यूमन्स ऑफ़ न्यूयॉर्क शुरू किया था. जैसे-जैसे ये पढ़ा जाने लगा-पसंद किया जाने लगा, और शहरों की कहानियों और कहानीकारों ने अपनी जगह बनाई. जैसे, ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे और करिश्मा मेहता ने. लेकिन आज मामला बंबई बनाम न्यूयॉर्क हो गया है. न्यूयॉर्क वाले ने मुंबई वाले को झाड़ दिया है.
क्यों? क्या मसला है?बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, हाल ही में ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे ने बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Right) के उल्लंघन के लिए एक और ऐसे ही पेज- पीपल ऑफ़ इंडिया - पर मुक़दमा दायर किया है. उनका कहना है कि पीपल ऑफ़ इंडिया (POI) उनके लिखने-कहने के तरीक़े की नक़ल करता है. ये भी दावा किया कि बिना अनुमति के उनकी तस्वीरें और वीडियो इस्तेमाल करता है. ह्यूमन्स ऑफ़ न्यूयॉर्क के संस्थापक को जब ये बात पता चली, तो उनसे रहा नहीं गया. उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर डाला:
"ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे ने मेरे काम और नाम का इस्तेमाल किया, लेकिन मैंने कभी ये मुद्दा उठाया नहीं. क्योंकि मेरा मानना है कि वो ज़रूरी कहानियां कहते हैं. भले ही उन्होंने मुझसे ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया है, मगर मैंने कुछ नहीं कहा. फिर जिस बात के लिए तुम्हें माफ़ किया गया हो, उसके लिए तुम किसी और पर मुक़दमा कैसे कर सकते हो?"
ऐसे समझ लीजिए कि बड़े ग़ुलाम अली ने छोटे ग़ुलाम अली को 'ग़ुलाम अली' नाम लेने के लिए कभी कुछ नहीं कहा. मगर जब एक दिन, छोटे ग़ुलाम अली ने छोटे शकील से पूछ लिया कि 'छोटे' क्यों लगाते हो? तब बड़े ग़ुलाम अली बिफर गए, कि तुम 'ग़ुलाम अली' क्यों लगाते हो? अपना गिरेबान भी तो देख!
बहरहाल, ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे वालों ने अपना पक्ष रखा है. ब्रैंडन के नाम X पर एक बयान जारी किया:
"हम कहानियों की ताक़त जानते हैं. इसीलिए ये देख कर हैरत होती है कि अपनी बौद्धिक संपदा को बचाने के लिए हमारी कोशिशों के ख़िलाफ़ इस तरह के हमले किए जा रहे हैं. वो भी पूरा मामला समझे बिना.
ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे में कहानियों पर पूरा ज़ोर है, मगर इसे ईमानदारी और नैतिकता से किया जाना चाहिए. हमें भारत की अदालतों पर पूरा भरोसा है. क़ानून अपना काम करेगा."
हालांकि, सोशल मीडिया की जनता इस बयान से बहुत ख़ुश नहीं हुई. बहुतेरे यूज़र्स ने ब्रैंडन को टैग कर के कहा कि उन्हें नैतिकता के नाम पर ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे पर मुक़दमा कर देना चाहिए. तब भारत की अदालतों पर उनका भरोसा और पक्का हो जाएगा.
ये पहली बार नहीं है कि ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे विवादों में है. उनपर ये भी आरोप लगते हैं कि उनके यहां पैसा देकर कहानियां छपती हैं. और वो बहुत पैसा लेते हैं.
बीते लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले - जनवरी 2019 में - ह्यूमन्स ऑफ़ बॉम्बे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू छपा था. पांच-भाग वाले इस इंटरव्यू में उन्होंने अपने बचपन, अपने परिवार और सत्ता में आने समेत कई चीज़ों पर बात की थी. तब भी सोशल मीडिया पर लोगों ने ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे की आलोचना की थी, कि वो सत्ताधारी पार्टी का प्रचार कर रहे हैं.
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