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'दंगाई आग लगा रहे थे, दादा मोदी को फोन कर रहे थे'

29 बंगलों और 10 फ्लैट की इस सोसाइटी में उस रोज क्या हुआ था, बता रहे हैं दंगों में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी के पोते.

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फोटो - thelallantop
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कुलदीप
2 जून 2016 (Updated: 2 जून 2016, 06:57 AM IST) कॉमेंट्स
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40 साल के इम्तियाज पठान अपने परिवार के साथ अहमदाबाद के गोमतीपुर में रहते हैं. ये घर उनकी सास का है. उनके पास कभी अपना घर था. 1970 में पुरखों का बनाया हुआ. लेकिन अब वो वहां जाने की हिम्मत भी नहीं करते.
उनका टूटा-फूटा घर बदनाम गुलबर्ग सोसाइटी में है. अहमदाबाद की वही जगह, जहां 2002 में 20 हजार से ज्यादा की भीड़ ने हमला किया था. घरों से आग लगा दी गई थी, लोगों को मार दिया गया था.
39 लाशें मिली थीं, बाकी को गुमशुदा बताया गया. लेकिन 7 साल बाद भी उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्हें मरा हुआ मान लिया गया. अब मौत का कुल आंकड़ा 69 है. मरने वालों में पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी थे.
8 महीने पहले कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. गुरुवार को फैसला सुनाया गया. 24 लोग दोषी करार दिए गए और 36 को बरी कर दिया गया. 6 जून को सजा का ऐलान होगा. जाकिया जाफरी कहती हैं, 'आधा न्याय मिला है, अब 36 को बरी करने के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी.'
इम्तियाज ने बचपन में गुलबर्ग सोसाइटी में जो पेड़ लगाया था, वह बड़ा हो गया है. उनके दादा एहसान जाफरी का लगाया नीम का पेड़ भी तेज धूप में छज्जे की छांव में खड़ा है. लेकिन 29 बंगलों और 10 फ्लैट की इस सोसाइटी में इन छिटपुट खुशनुमा नजारों पर मुस्कुराने वाला कोई नहीं है. घरों में दरवाजे और खिड़कियां बची रह गई हैं, जो किसी डरावनी बॉलीवुड फिल्म के किसी सीन की तरह लगते हैं.
अपनी भौंहो का पसीना पोंछते हुए इम्तियाज कहते हैं, 'मैं वहां खड़ा भी नहीं हो सकता. मदद के लिए उठती चीखें, भीड़ से बच भागने का रास्ता खोजते और फिर भीड़ का शिकार बनते लोग. मैंने ये सब देखा है. वहां जाता हूं तो सब कुछ लौट आता है.'
इम्तियाज ही वह इकलौते शख्स हैं, जिन्होंने अपने बयान में कहा कि भीड़ के हमले के बाद जब पुलिस मदद नहीं पहुंची तो जाफरी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था.
गोधरा में साबरमती ट्रेन में आग लगने के बाद गुजरात में कई जगह मुस्लिम विरोधी दंगे भड़के थे. इसी के बाद अहमदाबाद के मेघानीनगर में 20 हजार लोगों की भीड़ सुबह 8 बजे से जुटनी शुरू हो गई थी. यह केस 2002 दंगों के उन 8 केसों में से था, जिसकी सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा जांच का आदेश दिया था. स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि यह हमला 'सुनियोजित' था, यानी प्लान बनाकर किया गया था. हमले दोपहर दो बजे के बाद शुरू हुए थे. और कुछ लोग जो सोसाइटी से बच निकलने में कामयाब हुए थे, वे पुलिस के दखल के बाद ही ऐसा कर पाए.
मामले में 63 आरोपी बनाए गए. लेकिन बचाव पक्ष के वकीलों ने प्रॉसीक्यूशन की थ्योरी यह कहकर खारिज करने की कोशिश की कि SIT वह जगह और समय बताने में कामयाब नहीं हो पाई, जहां हमले की योजना बनाई गई. बचाव पक्ष के वकीलों का कहना था कि एहसान जाफरी के अपने लाइसेंसी रिवॉल्वर से फायर करने के बाद दंगा शुरू हुआ.
ज्यादातर आरोपी पहले ही जमानत पर बाहर हैं. सिर्फ 8 न्यायिक हिरासत में हैं. आरोपियों पर हत्या, दंगे, संपत्ति को आग लगाने और साजिश रचने के आरोप हैं.
पीड़ितों के वकील एसएन वोरा का कहना है कि एहसान जाफरी ने सिर्फ भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हवा में फायर किया था, लेकिन भीड़ पूरी तैयारी से आई थी. उन्होंने अपनी दलीलों के समर्थन में 338 गवा पेश किए. इनमें एक दर्जन से ज्यादा चश्मदीद थे और उन्होंने कोर्ट में आरोपियों की शिनाख्त भी की. वोरा ने कहा, 'साजिश रची गई, इसका कोई सीधा सबूत नहीं है. लेकिन परिस्थितिजन्य सबूत (circumstantial evidence) साबित करते हैं कि लोगों को मारने की साजिश रची गई थी.'
पीड़ित पक्ष के वकीलों ने घटना की जगह पर पूरे हमले की रिक्रिएशन की थी और जज पीबी देसाई इसे देखने पहुंचे थे. आठ महीने पहले ही मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.
जाकिया जाफरी
जाकिया जाफरी

इम्तियाज पठान जैसे कई लोगों को आज इंसाफ की उम्मीद है. वह क्लोजर चाहते हैं. एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ और इस केस से जुड़े कई लोगों के गुरुवार को कोर्ट पहुंचने की उम्मीद है. अहमदाबाद पुलिस ने ग्राउंड जीरो पर भारी सुरक्षा बल तैनात किया है. पीड़ितों को उम्मीद है कि अपनों को अपने सामने खोने का जो दर्द बीते सालों में उन्हें चुभता रहा है, आज उस पर मरहम लग जाएगा.

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