गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT की क्लोजर रिपोर्ट पर अब खुद गौर करेगा सुप्रीम कोर्ट
जकिया जाफरी की याचिका पर कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट तलब की है.
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सुप्रीम कोर्ट गुजरात दंगों पर जकिया जाफरी की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें एसआईटी क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर मोदी और 63 अन्य को क्लीन चिट देने के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है. (तस्वीर: पीटीआई | एपी)
गुजरात दंगों (Gujarat riots) में एसआईटी (SIT) की जिस क्लोजर रिपोर्ट के आधार पर राज्य के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और 63 अन्य को क्लीन चिट दी गई थी, उस रिपोर्ट को अब सुप्रीम कोर्ट देखना चाहता है. कोर्ट ने गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी की याचिका पर ये निर्देश जारी किया है. जकिया जाफरी ने गुजरात हाई कोर्ट के 5 अक्टूबर 2017 के उस फैसले को चैलेंज किया है, जिसमें क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने के मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी गई थी.
कोर्ट ने क्या बहस हुई?
जकिया जाफरी का याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार 26 अक्टूबर को सुनवाई हुई. जकिया की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच के यहां सुनवाई चल रही है. सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि,
"हम मजिस्ट्रेट के द्वारा स्वीकार की गई क्लोजर रिपोर्ट देखना चाहते हैं. उसमें कारण दिए होंगे."इससे पहले, सिब्बल ने कोर्ट में दावा किया कि जिस एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर क्लोजर रिपोर्ट दी गई है, उसने जकिया जाफरी की शिकायतों और दूसरे जरूर तथ्यों को अनदेखा कर दिया था. जकिया की शिकायत सिर्फ उस गुलबर्ग सोसाइटी में हुई हिंसा तक ही सीमित नहीं था, जिसमें उनके पति की मौत हुई थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई एसआईटी ने संजीव भट्ट जैसे आईपीएस अधिकारी के सबूतों को भी अनदेखा कर दिया. कपिल सिब्बल ने कहा कि,
“हमारा केस कहता है कि ये सब एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी. जहां नौकरशाही की निष्क्रियता, पुलिस की मिलीभगत, हेट स्पीच और हिंसा की साजिश रची गई थी. लेकिन मजिस्ट्रेट कहते हैं कि मैं और कुछ नहीं देख सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मुझे केवल गुलबर्ग सोसाइटी मामले को देखने के लिए कहा है. पुलिस की निष्क्रियता की वजह से जनसंहार हुआ है. मैं आपको आधिकारिक सबूत दे रहा हूं. इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? आने वाली पीढ़ियां? हमने 23 हजार पन्ने से ज्यादा के डॉक्युमेंट्स जमा किए हैं. एक गणराज्य इस बात से ही बनता और बिगड़ता है कि कोर्ट क्या फैसला देता है. हम कोर्ट और न्यायपालिका के अलावा किसी पर भरोसा नहीं कर सकते.”कपिल सिब्बल ने दावा किया कि एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में खुद को गुलबर्ग सोसाइटी तक सीमित नहीं रखा है. इस रिपोर्ट में जो स्टेटमेंट हैं, उनका ताल्लुक पूरे राज्य से है. इस पर बेंच ने कहा कि,
“आखिरकार रिपोर्ट तो अपराध को लेकर ही है. वो अपराध, जिसका संज्ञान लिया गया या फिर लिया जा रहा है."इस पर सिब्बल ने कहा,
“मुझे कानून में एक उपचार मिलना चाहिए, वो क्या है? मजिस्ट्रेट और सेशन कोर्ट इसे देखता नहीं है. मैं इसे देखने की जिम्मेदारी अगली पीढ़ी पर छोड़ देता हूं.”सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई बुधवार 27 अक्टूबर को भी जारी रहेगी. इस तरह मिली मोदी को क्लीनचिट गोधराकांड के एक दिन बाद. तारीख, 28 फरवरी, 2002. अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी को 20 हजार से ज्यादा लोगों ने घेर लिया था. 29 बंगलों और 10 फ्लैटों की इस सोसाइटी में एक पारसी और बाकी मुस्लिम परिवार रहते थे. कांग्रेस सांसद रह चुके सांसद एहसान जाफरी भी यहीं रहते थे. हिंसक भीड़ ने सोसाइटी पर हमला किया. घरों से निकाल-निकाल कर लोगों को मार डाला. मरने वालों में एहसान जाफरी भी थे. 2006 में एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने पुलिस को फरियाद दी, जिसमें उन्होंने इस हत्याकांड के लिए उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, कई मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार बताया. पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया. 7 नवंबर 2007 को गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को FIR मानकर जांच करवाने से मना कर दिया. 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों की जांच के लिए आरके राघवन की अध्यक्षता में SIT बनाई. इनमें गुलबर्ग का मामला भी था. 6 मार्च 2009 में ज़किया की फरियाद की जांच का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को सौंपा. 8 फरवरी 2012 को एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की. मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने SIT की रिपोर्ट के आधार पर माना कि नरेंद्र मोदी और दूसरे 63 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.