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ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद भीड़ को पटना क्यों आने दिया था? पूर्व DGP अभयानंद ने बताया

जानिए, पटना में उतरी भीड़ को लेकर नीतीश कुमार ने क्या कहा था.

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Brahmeshwar mukhiya Abhayanand
रणवीर सेना के प्रमुख ब्रहमेश्वर मुखिया और बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद (फोटो- आजतक/लल्लनटॉप)
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साकेत आनंद
3 सितंबर 2022 (Updated: 3 सितंबर 2022, 10:54 PM IST)
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बिहार में साल 2012 में 'रणवीर सेना' के प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या हुई थी. रणवीर सेना भूमिहार जातियों का एक संगठन था. ब्रह्मेश्वर मुखिया की आरा जिले में गोली मारकर हत्या हुई थी. इस हत्या के बाद बिहार में कई जगहों पर हिंसा देखने को मिली थी. लेकिन सबसे नाटकीय चीजें तब हुई जब मुखिया के शव को पटना लाकर लूट और हिंसा मचाई गई. आरा से पटना की दूरी करीब 50-60 किलोमीटर है. उस वक्त बिहार के डीजीपी अभयानंद थे.

दी लल्लनटॉप के खास कार्यक्रम 'गेस्ट इन द न्यूज रूम' में आए बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने बिहार की राजनीति, पटना ब्लास्ट समेत कई मुद्दों पर अपनी बात रखी. इनमें एक सवाल ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या के बाद पटना में बड़े स्तर पर हुई हिंसा को लेकर भी उनसे सवाल पूछा गया. मुखिया की हत्या के बाद भूमिहार समुदाय के लोगों ने शव को लेकर पटना में 'शोभा यात्रा' निकालने की अनुमति मांगी थी. सरकार में कई लोगों की असहमति के बाद भी इस यात्रा की अनुमति दी गई थी. अभयानंद खुद भूमिहार समुदाय से आते हैं. इसलिए पटना में हुई हिंसा को लेकर उन पर कई सवाल उठे थे.

पटना में ब्रह्मेश्वर मुखिया के समर्थकों ने कई गाड़ियों में आग लगा दी थी. कई लोगों के साथ मारपीट की गई. क्या डीजीपी के पास कोई इंटेलीजेंस इनपुट था? इस सवाल पर अभयानंद ने कहा, 

"डीजीपी के रूप में मुझे बहुत दूर तक देखना था. अगर लाठीचार्ज होता तो लोग डेड बॉडी को छोड़कर भाग जाते. हम उसे कहां ले जाते? मैंने देख लिया था कि इसे हैंडल नहीं किया जा सकता था. इससे बेहतर था कि 3-4 घंटे तक...जो भी शब्द आप इस्तेमाल करें. अगर आप डेटा देखें तो कोई घायल नहीं हुआ, 2 गाड़ियां जली थी. इस तरह का उत्पात हर तीन-चार महीने पर हो ही जाता है. मेरे पास दो बुराइयों में एक को चुनना था. और इसके परिणाम को देखना था."

नीतीश कुमार ने क्या कहा था?

जब ये हिंसा हुई उस वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भागलपुर में थे. अभयानंद ने कहा कि जब भीड़ डाकबंगला चौराहे पर थी मैंने उनसे (नीतीश) कहा कि अब ज्यादा हो रहा है. तो उन्होंने मुझसे कहा कि जब इतनी देर आपने धैर्य रख लिया तो थोड़ी देर और रख लीजिए. क्योंकि वहां से 15 मिनट बाद ही अंतिम संस्कार होना था. उन्होंने आगे कहा, 

"जैसे ही ब्रह्मेश्वर मुखिया का अंतिम संस्कार किया गया, उसके बाद हमने किसी को पटना में घुसने नहीं दिया. सबको पटना के बाहरी रास्ते से आरा जाने दिया गया. जब हमने फैसला लिया तो मीडिया वाले हमारी आलोचना कर रहे थे. लेकिन जब अंतिम संस्कार हो गया तो मैंने मीडिया को बताया कि वो फैसला मेरा था."

पटना में आने की अनुमति क्यों दी गई?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 

"जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई तो शाम में मैंने उनके बेटे से पूछा कि क्या विचार है. मैं आरा में ही था. मैंने उससे कहा कि गांव ले जाओ नहीं तो बक्सर घाट ले जाओ. वो मान भी गए. लेकिन बाद में मैंने टीवी पर देखा कि अंतिम संस्कार पटना में होगा. मैंने फोन लगाकर उनके बेटे से पूछा तो उसने कहा कि लोगों ने फैसला लिया है. कानूनन हम उसे रोक नहीं सकते थे. हमें आशंका थी कि पटना में अगर अंतिम संस्कार होगा तो ऐसा (हिंसा) कुछ होगा."

खुद आरा पहुंच गए थे अभयानंद

1 जून 2012 को ब्रह्मेश्वर मुखिया की जब हत्या हुई तब अभयानंद भी भागलपुर में थे. एक मीटिंग के लिए वे पटना निकलने वाले थे. उन्होंने बताया, 

“घटना सुबह घटी थी. पटना में हमारी एक मीटिंग थी. आरा एसपी ने फोन कर बताया कि मर्डर हो गया है. जैसे ही मालूम हुआ मुझे पता था कि कानून व्यवस्था की समस्या आने वाली है. मेरा वहां जाने का कोई प्लान नहीं था. मेरी मीटिंग थी, इसलिए मैंने जोनल आईजी को फोन करके वहां भेज दिया था. लेकिन जैसे-जैसे मैं पटना की तरफ बढ़ रहा था, हिंसा की खबरें मिलने लगी थी. जब मैं पटना के नजदीक पहुंचा तो मैंने फैसला किया कि अब मुझे जाना (आरा) चाहिए. क्योंकि एसपी का भी मैसेज आ रहा था कि आ जाइए. मैं आरा चला गया.”

अभयानंद ने कहा कि मुखिया के बेटे भाकपा(माले) के खिलाफ केस दर्ज कराना चाहते थे. लेकिन उन्होंने उससे कहा कि गलत हो जाएगा क्योंकि किसी ने देखा नहीं है कि किसने हत्या की है. जब उन्होंने जांच का आश्वासन दिया तो उनके परिवारवाले मान गए. अभयानंद ने कहा कि जहां तक उन्हें जानकारी है अभी तक जांच पूरी नहीं हुई है. कोर्ट में मामले का ट्रायल भी चल रहा है.

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