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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा, प्रदर्शन किसानों का हक है

किसान आंदोलन पर चीफ जस्टिस ने और क्या बड़ी बातें कहीं, जान लें

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अपनी मांगों को लेकर किसान पिछले 22 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. उन्हें सड़कों से हटाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. (फोटो-PTI)
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डेविड
17 दिसंबर 2020 (Updated: 17 दिसंबर 2020, 09:10 AM IST) कॉमेंट्स
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किसान आंदोलन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन गुरुवार 17 दिसंबर को सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि प्रदर्शन किसानों का हक है. लेकिन विरोध प्रदर्शन तब तक संवैधानिक है, जब तक कि इससे संपत्ति को नुकसान नहीं हो या किसी की जान को खतरा नहीं हो. अदालत में और क्या-क्या हुआ, आइए बताते हैं.

क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में?

सुनवाई शुरू होते ही वकील हरीश साल्वे ने कहा कि किसानों को रास्तों से हटाने की याचिकाएं आर्टिकल 32 के तहत दायर की गई हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उनसे पूछा कि आप किसकी ओर से पेश हो रहे हैं? साल्वे ने कहा- यूपी और हरियाणा की ओर से. इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि अभी कानून को लेकर चर्चा नहीं होगी. शुरुआत में सिर्फ प्रदर्शन को लेकर बहस होगी. कानून वैध है या नहीं, इस पर बाद में बहस हो सकती है. हरीश साल्वे ने आगे दलील देते हुए कहा कि इस प्रदर्शन के कारण दिल्ली के लोग प्रभावित हुए हैं. ट्रांसपोर्ट पर असर पड़ा है. सामान के दाम बढ़ रहे हैं. अगर सड़कें बंद रहीं तो दिल्ली वालों को काफी दिक्कत होगी. प्रदर्शन के अधिकार का मतलब ये नहीं कि शहर बंद कर दिया जाए. चीफ जस्टिस की ओर से कहा गया कि हम इस मामले में देखेंगे. किसी एक मसले की वजह से दूसरे के जीवन पर असर नहीं पड़ना चाहिए. विरोध प्रदर्शन तब तक संवैधानिक है, जब तक कि इससे संपत्ति को नुकसान नहीं हो या किसी की जान को खतरा नहीं हो. चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि हम कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के अधिकार को समझते हैं, और इसे दबाने का सवाल ही नहीं उठता. हम केंद्र से पूछेंगे कि अभी प्रदर्शन किस तरह चल रहा है. साथ ही कहेंगे कि इसके तरीके में थोड़ा बदलाव करवाया जाए, ताकि लोगों की आवाजाही नहीं रुके. चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि केंद्र सरकार और किसानों को बात करनी चाहिए. हम एक निष्पक्ष और स्वतंत्र कमेटी बनाने पर विचार कर रहे हैं, जो दोनों पक्षों की बात सुनेगी. तब तक अहिंसक रूप से आंदोलन चल सकता है. इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि किसान कह रहे हैं कि इस कानून को रद्द करें. हां या ना में जवाब दें. उन्हें क्लॉज दर क्लॉज चर्चा करनी चाहिए. इस पर CJI ने कहा कि हमें नहीं लगता कि वे आपकी बात मानेंगे, इसलिए यह कमेटी को तय करने दीजिए. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सड़क की नाकाबंदी अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है. आंदोलन करने वालों में कोई भी मास्क नहीं पहन रहा है. वे बड़ी भीड़ में बैठते हैं. जब वे अपने गांवों में वापस जाएंगे, तो कोविड को पूरे भारत में फैला देंगे. किसान दूसरे के फंडामेंटल राइट्स का वॉयलेशन नहीं कर सकते. किसान कह रहे हैं कि वे छह महीने की तैयारी के साथ आए हैं. यह तो सिर्फ युद्ध के समय होता है. इस पर CJI ने पूछा कि क्या किसी ने कहा कि वे रोड ब्लॉक करेंगे? SG ने कहा कि टिकरी बॉर्डर बंद है. नोएडा को जाने वाले रास्ते को ब्लॉक करने की बात कही गई है. इस पर पंजाब सरकार की ओर से पी. चिदंबरम ने पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि किसी भी किसान संगठन ने सड़क जाम करने की बात नहीं की है. प्रशासन द्वारा रास्ते बंद किए गए हैं. CJI ने केंद्र से विवादित कृषि कानूनों को होल्ड पर रखने के लिए विचार करने को कहा. लेकिन सरकार की ओर से कहा गया कि यह नहीं किया जा सकता. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि जल्दबाजी न करें, और कृपया सुझाव पर विचार करें. सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई अगली तारीख तक टल गई है. हालांकि कोर्ट ने कोई फैसला नहीं सुनाया है. अदालत में किसी किसान संगठन के ना होने के कारण कमेटी पर फैसला नहीं हो पाया. कोर्ट का कहना है कि वो किसानों से बात करके ही अपना फैसला सुनाएंगे. आगे इस मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी. सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टी हैं, ऐसे में वैकेशन बेंच सुनवाई करेगी.

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