मेरा देश बदल रहा है, किसान और ज्यादा मर रहा है
आंकड़े कहते हैं हर रोज 22 किसान मर रहे हैं, महाराष्ट्र में कुछ नहीं सुधरा और कर्नाटक में डरावनी हालत है.
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फोटो - thelallantop
निबंधों में पढ़ा-लिखा था, भारत एक कृषि प्रधान देश है. पर अफ़सोस खेती एक आत्महत्या प्रधान पेशा है. किसानों की मौत एक आंकड़ा है, जो बस बढ़ा जा रहा है. 2014 के मुकाबले 2015 के बीच किसानों की आत्महत्या के मामले 40% बढ़ गए हैं. 2014 में 5650 मामले सामने आए थे, तो 2015 में ये आंकड़ा 8 हजार पार कर गया. एक साल के अंदर 8 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या कर ली. इसका मतलब हर दिन इस देश में 22 किसान मजबूरी में मौत चुन लेते हैं.
तेलंगाना, नया बना राज्य है. छोटे राज्य, सब तक पहुंच, बेहतर गवर्नेंस के तुर्रे के बावजूद. इस राज्य में किसानों की आत्महत्याएं पहले के 898 से बढ़कर 1350 हो गईं. महाराष्ट्र जो कि किसानों की आत्महत्या के लिए हमेशा से ख़बरों में रहा है. वहां कुछ नहीं सुधरा. चीजें बिगड़ी और, और ज्यादा बिगड़ती रहीं. सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या यहीं की है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक़ 2014 में जहां 2568 किसानों ने जान दी थी, वहीं 2015 में 3030 किसानों ने सुसाइड कर लिया.मध्य प्रदेश और झारखंड में भी सैकड़ों किसानों ने सुसाइड किया. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से ऐसी कोई खबर नहीं आई. हुआ ये भी कि पिछले दो सालों में जमकर सूखा पड़ा और कुछ इलाके बहुत बुरी तरह से इसे झेल रहे थे. एक साल बीता था और अगले साल फिर सूखा. किसान दोहरी मार झेल रहे थे. लेकिन सबसे ज्यादा बुरा हाल कर्नाटक में है. पहले सिर्फ 321 किसानों ने जान दी थी, वहीं अगले साल बढ़कर 1300 मौतें हो गईं. और किसानों की आत्महत्या के मामले में कर्नाटक तीसरे नंबर का राज्य बन गया.
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