जिस दत्तू से मेडल की उम्मीद लगाए हो, उसका तो घर बिकने वाला है
फिर भी दत्तू भोकानल रियो ओलंपिक में भारत की उम्मीद जगाए हुए हैं.
Advertisement

फोटो - thelallantop
कई खिलाड़ी तो ऐसे हैं, जो तमाम दिमागी उलझनों और परेशानियों को झेलते हुए भी देश के लिए गोल्ड की उम्मीद जगाए हुए हैं. खुद सोचकर देखिए, जब नरसिंह यादव जैसे पहलवान के लिए ओलंपिक जाने से ठीक पहले प्रैक्टिस का क्रिटिकल टाइम था. उस वक्त वह कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसे हुए थे. ये दुर्भाग्य ही है कि एक तो हम अपने एथलीट्स को सुविधाएं नहीं दे पाते, फिर भी उनसे उम्मीदें करना नहीं छोड़ते हैं. ऐसी ही एक मार्मिक कहानी है दत्तू भोकानल की.
ओलंपिक के क्वॉर्टर फाइनल में इंट्री पा चुके हैं दत्तू भोकानल
दत्तू भोकानल, आर्मी के जवान और वही रोवर, जिनका अपने चप्पुओं पर परफेक्ट कंट्रोल है. यही रीजन है कि अब वो भारत की ओर से ओलंपिक के क्वॉर्टर फाइनल में इंट्री पा चुके हैं. उनके पत्थर तोड़ते हुए ओलंपिक तक पहु्ंचने की कहानी लोगों के लिए मिसाल बनी थी. पर लोगों की आदत है, वाहवाही करके वो भूल जाते हैं. ये वक्त दत्तू के लिए बहुत दुखद वक्त है. हमें कई बार पता नहीं होता कि जिनको हीरो मान रहे हैं, उनकी जिंदगी चल कैसी रही है.
रियो में दत्तू भोकानल
मां बुरी तरह से हैं बीमार
दत्तू की जिंदगी का दुखद पहलू ये है कि जब दत्तू भोकानल भारत के लिए इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने की ओर हैं. उनका मन परेशान है. कुछ दिन पहले ही उनकी मां आशा भवाना भोकानल का एक्सीडेंट हुआ था. एक्सीडेंट दत्तू के कोरिया जाने से पहले हुआ था. दत्तू ओलंपिक में हैं और ओलंपिक के बाद उन्हें जल्दी है घर वापस लौटने की, अपनी मां का दिल्ली में इलाज करवाने के लिए.
प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने को बेचना पड़ेगा घर
अभी दत्तू के भाई भी आर्मी में जाने की तैयारी कर रहे हैं. वैसे मां के शुरुआती इलाज में आर्मी मदद कर रही है. पर उनकी हालत ऐसी स्टेज तक पहुंच गई है. जहां पर उन्हें प्राइवेट मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत है. दत्तू के कोच पॉल मोखा का कहना है,'उनके अंदर सब कुछ भूलकर अपना काम बेहतरीन तरह से करने की क्षमता है. पर ये भी है कि आर्मी के इस जवान के दिमाग से ये पूरी तरह से कभी भी दूर नहीं होता है. उस वक्त भी पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता था. जब मंगलवार को वो क्वॉर्टर फाइनल की तैयारी कर रहे थे.'
फेडरेशन का साथ नहीं
फेडरेशन के साथ इस आर्मी के जवान के संबंध बहुत अच्छे नहीं हो पाए हैं. दरअसल भोकानल फेडरेशन के दबाव के बाद भी अपनी ट्रेनिंग अपने आर्मी कोच के साथ ही पूरी कर रहे हैं. और ये करके उन्होंने अपनी गर्दन फंसा ली है. ये फैसला फेडरेशन को पसंद नहीं आया.अंग्रेजी में बात करने वाले एथलीट्स से बात करने में शर्माते हैं दत्तू
इस रोवर के पास खेलगांव में दोस्त भी नहीं हैं. ये हमेशा अपने रोजमर्रा के कामों में लगे रहते हैं. दूसरी बात ये कि लोगों से बहुत शर्माने वाला ये एथलीट हाई-फाई और अंग्रेजी में बात करने वाले एथलीट्स से बात करने में हिचकिचाता भी है.
कभी शिकायत ही नहीं करते
हम उनके लिए दूसरा, थोड़ा आराम वाला और सपोर्टिंग माहौल चाहते हैं पर कभी दत्तू कंप्लेन करें तब तो. वो जानते हैं कि घर लौटने पर उनके लिए चीजें बहुत कठिन होने वाली हैं. उनकी इस उपलब्धि के बाद उनके साथ फोटो खिंचवाना खुशी की बात है. पर दत्तू भारतीय दल के स्टार खिलाड़ियों को अप्रोच करने में आज भी बहुत शर्माते हैं.दिन की पहली हीट में 2 किलोमीटर की दौड़ को 7 मिनट 21 सेकेंड में खत्म किया. तीसरी पोजीशन पाई. क्यूबा और मैक्सिको के खिलाड़ी उनके आगे रहे. जो वर्ल्ड कप में लगातार 8वीं से 10वीं पोजीशन पर रहते हैं. जबकि दत्तू पैसे की कमी के चलते वहां खेलने ही नहीं पहुंच पाए.
टेक्नीक धांसू, टाइमिंग में प्रॉब्लम
उनके कोच उनकी स्पीड से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं. कहते हैं, 'उनकी रेसिंग टेक्नीक बहुत धांसू है. दत्तू कभी भी बहुत जल्दी में नहीं रहते हैं. टाइमिंग की अभी थोड़ा प्रॉब्लम आ रही है. वैसे अभी क्वॉलिफिकेशन उनका लक्ष्य था. जिसे उन्होंने सक्सेसफुली अचीव कर लिया है. सब कुछ जो उनकी लाइफ में चल रहा है, उसके बाद उनका प्लान देखते हुए मैं उनसे खुश हूं.' भोकानल अपनी 500 मीटर की रेस में दूसरे नंबर पर रहे थे.कोच का कहना, अभी बस ओलंपिक पर रखो नजर
कोच पॉल मोखा का कहना है,'मैं उनसे कहना चाहता हूं कि कोई फर्क नहीं पड़ता कि घर पर कितनी सारी मुसीबतें तुम्हारा इंतजार कर रही हैं. ये ही वो ओलंपिक है, जिस पर तुम्हें अपना पूरा ध्यान लगाना है. उसके बाद देखा जाएगा कि बाकी सब कैसे होता है?'ऐसी हालात में भी एक खिलाड़ी भारत के लिए, अपने देश के लिए मेहनत कर रहा है. मेडल की उम्मीद जगाए हुए है. तो ऐसे में हमारा भी फर्ज बनता है कि हमें बिना शर्त उनका सपोर्ट करना चाहिए. कोशिश ये होनी चाहिए कि उनकी मां का इलाज आसानी से हो जाए. उनके इलाज के लिए घर बेचने की टेंशन से दत्तू को मुक्ति मिले, ताकि दत्तू पूरा मन लगाकर खेल सकें और सोने का तमगा जीतकर लाएं.
ये भी पढ़ें -