इंडिया में रोज 3300 लोग करते हैं सुसाइड की कोशिश
दुखद, पर 300 लोग सुसाइड की कोशिश में सफल हो जाते हैं.
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फोटो - thelallantop
श्रीकांत, आईआईटी मुंबई, 2007. अजय चन्द्र, आईआईएससी, बैंगलोर , 2007. जसप्रीत सिंह, एमबीबीएस , चंडीगढ़, 2008. सेंथिल कुमार, पीएचडी फिजिक्स, हैदराबाद, 2008. प्रशांत कुरील, बी टेक आईआईटी कानपुर, 2008. सुमन, बी टेक आईआईटी कानपुर, 2009. अंकित वेघदा, नर्सिंग, अहमदाबाद, 2009. डी श्याम कुमार, बी टेक, विजयवाड़ा, 2009. एस अमरावती, नेशनल लेवल की बॉक्सर, हैदराबाद, 2009.अब भी खत्म नहीं हुआ है... सुशील, एम बीबी एस, लखनऊ, 2010. माधुरी, बी टेक, आईआईटी कानपुर, 2010. मनीष कुमार, बी टेक, आईआईटी रूड़की, 2011. लिनेश गवले, पीएचडी इम्यूनोलॉजी, दिल्ली, 2011.... जान देनी पड़ी जाति के चलते. पर ये तो तेज लोग थे. कितने ऐसे थे जो सामाजिक आर्थिक कारणों से थोड़ा अंग्रेजी में, थोड़ा नई जगह के कल्चर में थोड़े थोड़े कमजोर थे. उनकी तो किसी ने सुनी भी नहीं. हमने अखबार पढ़ा और पेज पलट दिया.
हर धर्म और हर जाति में लोग आत्महत्या करते हैं. पर 'दलित' जातियों की आत्महत्या की मुख्य वजह जातिगत भेदभाव ही है.जब रोज पानी भरने, मंदिर में जाने, स्कूल जाने, प्यार करने , शादी करने, घोड़ी पर चढ़ने, थूकने, ताकने में भी लोग मार पीट करते हैं तो मानसिक स्थिति कहां जाएगी? बड़ा मुश्किल होगा किसी के लिए भी. कृष्णन, पूर्व सेक्रेटरी, मिनिस्ट्री ऑफ़ वेलफेयर, 'दलित आत्महत्या' के बारे में कहते हैं कि बिना पढ़े हुए दलित व्यक्ति को अपमान बर्दाश्त करने की आदत पड़ जाती है. वो इसे अपना भाग्य मान लेता है. जब दलित लोग पढ़ते हैं तो ये अपमान और इसके कारण समझ में आते हैं. वो बर्दाश्त नहीं कर पाते. इसीलिए भीमराव आंबेडकर ने कभी कहा था:
'तुमको मेरी आखिरी सलाह यही है कि पढ़ो-पढ़ाओ, संगठित करो और विद्रोह करो. हमारी लड़ाई धन-सम्पति और ताकत के लिए नहीं है. ये लड़ाई स्वतंत्रता के लिए है. ये लड़ाई इंसान के अस्तित्व के लिए है.'ऐसा नहीं है कि गैर-दलित समुदाय में आत्महत्या की स्थिति बहुत अच्छी है. पर वहां पर कारण जाति से हटके डिप्रेशन, मानसिक बीमारी, प्रेम में धोखा, भावनात्मक चोट, धन-संपत्ति की हानि से जुड़े हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने 2014 में आत्महत्या के आंकड़ों को जाति और धर्म के हिसाब से बांटा. पर इस रिपोर्ट को कभी पब्लिक में नहीं लाया गया. इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई लगाकर रिपोर्ट को खंगाला. इसमें ये आंकड़े सामने आए हैं:
आत्महत्या की दर* | आत्महत्या में शेयर का प्रतिशत | पापुलेशन में शेयर का प्रतिशत | आत्महत्या करनेवालों की संख्या | |
धर्म | ||||
क्रिश्चियन | 17.4 | 3.7 | 2.3 | 4845 |
हिन्दू | 11.3 | 83 | 79.8 | 109271 |
इस्लाम | 7 | 9.2 | 14.2 | 12109 |
सिख | 4.1 | 0.6 | 1.72 | 848 |
जाति | ||||
शेड्यूल्ड ट्राइब | 10.4 | 8.2 | 8.6 | 10850 |
शेड्यूल्ड कास्ट | 9.4 | 14.4 | 16.6 | 19019 |
ओबीसी | 9.2 | 34 | 40.2 | 56970 |
जनरल | 13.6 | 43.3 | 34.6 | 56970 |
देश का औसत आंकड़ा | 10.6 | 131666 | ||
*हर एक लाख पर | ||||
भारत में हर रोज 300 लोग आत्महत्या करते हैं. 3000 आत्महत्या की कोशिश करते हैं. क्योंकि लोग अपना दुःख किसी से शेयर नहीं कर पाते. तनाव झेलते रहते हैं. डॉक्टर के पास नहीं जाते. लोक लाज से.आत्महत्याओं के आंकड़ों में एक और पहलू है. सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं का लोगों के लिए खड़ा न रह पाना. इसका परिणाम निकलता है किसानों की आत्महत्याओं के रूप में. छात्रों की आत्महत्याओं के रूप में. क्योंकि किसी तरह की सहायता उपलब्ध नहीं है. थका हुआ इंसान अपने आप पर है. कोई सुननेवाला नहीं. अब जरूरत है वैसे अस्पताल, सामाजिक क्लब, को-ऑपरेटिव सोसाइटीज की जो समय पर लोगों की काउसलिंग कर सके. नहीं तो भारत धीरे-धीरे आत्महत्याओं का देश बन जाएगा. WHO के रिपोर्ट के मुताबिक, भारत मनोरोगियों का देश बन ही चुका है.
(ये स्टोरी दी लल्लनटॉप के साथ जुड़े ऋषभ श्रीवास्तव ने लिखी है.)