'करवा चौथ पर व्रत रखना या ना रखना पत्नी की मर्जी' दिल्ली HC ने ये कहते हुए तलाक मंजूर कर दिया
पति का आरोप 'पत्नी का फोन नहीं रिचार्ज कराया तो नाराज पत्नी ने करवाचौथ का व्रत नहीं रखा.'

‘करवा चौथ पर व्रत रखना या ना रखना व्यक्तिगत (चुनाव) है. और व्रत ना रखना किसी भी तरीके की क्रूरता नहीं है. ना ही इस आधार पर शादी तोड़ी जा सकती है.'
ये टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट की है. तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बात कही. हालांकि, इसके बाद भी कोर्ट ने शादी को रद्द करने के दिल्ली फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. पूरा मामला क्या है, बात करवा चौथ व्रत पर कैसे आ पहुंची और और आखिरकार कोर्ट ने किस आधार पर तलाक की अर्जी मंजूर की, एक-एक करके सब बताते हैं.
'मोबाइल रिचार्ज नहीं कराया तो व्रत नहीं रखा'एक महिला ने दिल्ली फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दी थी. पति ने तलाक लेने के लिए करवाचौथ व्रत समेत कई कारण बताए थे. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, 22 दिसंबर को जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्ण की बेंच ने मामले पर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने कहा,
करवा चौथ का व्रत करना या न करना एक व्यक्तिगत पसंद की बात हो सकती है. और अगर निष्पक्षता से इस पर विचार किया जाए, तो इसे 'क्रूरता' नहीं कहा जा सकता है. अलग-अलग धार्मिक विश्वास रखने और कुछ धार्मिक कर्तव्यों का पालन न करने को क्रूरता नहीं कहा जा सकता है, और नाही इसे वैवाहिक बंधन को तोड़ने के लिए पर्याप्त कारण माना जाएगा.
दरअसल, पति का आरोप था शादी के बाद से ही पत्नी का उसके प्रति व्यवहार ठीक नहीं था. वो अपने वैवाहिक जिम्मेदारियों को भी निभाने में कोई इंटरेस्ट नहीं ले रही थी. पति ने बताया था कि साल 2009 में उसकी पत्नी ने करवाचौथ का व्रत नहीं रखा था. पति का आरोप है कि उसने अपनी पत्नी का मोबाइल रिचार्ज नहीं किया था जिसके बाद पत्नी ने व्रत रखने से मना कर दिया था.
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पति के आरोप है, 2011 के अप्रैल में वो बीमार था उसे स्लिप डिस्क की दिक्कत हो गई थी. इस दौरान उसकी पत्नी ने उसका ख्याल नहीं रखा और अपना माथे से सिंदूर हटा कर, मंगलसूत्र उतार कर सफेद सूट पहन लिया और खुद को विधवा घोषित कर दिया.
कोर्ट ने किस वजह से दी तलाक को मंजूरी?बेंच ने फैमिली कोर्ट द्वारा पति के तलाक की अर्जी को स्वीकारने वाले फैसले को बरकरार रखा है. कोर्ट के मुताबिक, भले ही करवा चौथ का व्रत शादी को रद्द करने के फैसले का आधार नहीं बन सकता है, लेकिन केस के अन्य तथ्यों को ध्यान में रखा जाए तो फैमिली कोर्ट का फैसला सही है. कोर्ट ने कहा
किसी भी पति के लिए जीते जी अपनी पत्नी को विधवा की तरह रहते देखना काफी दुखद होगा और वो भी तब जब वो बीमार हो.
कोर्ट ने कहा,
पति ने ये स्थापित किया है कि पत्नी का आचरण हिंदू संस्कृति में प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुरूप नहीं है, जो पति के लिए प्यार और सम्मान का प्रतीक है. साथ ही, ये भी देखा जा सकता है कि पत्नी के मन में पति और उनके वैवाहिक बंधन के प्रति कोई सम्मान नहीं था और उसके मन में इस विवाह को जारी रखने का कोई इरादा नहीं था.
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2009 में दोनों की शादी हुई थी. साल 2011 में दोनों की एक बेटी भी हुई. हालांकि, बच्ची के जन्म के कुछ समय पहले ही पत्नी ससुराल छोड़कर अपने घर चली गई थी. बाद में पति ने कोर्ट में तलाक की अर्जी दी थी.
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