22 अगस्त 2016 (Updated: 22 अगस्त 2016, 11:22 AM IST) कॉमेंट्स
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पिछले सप्ताह टर्की में जिस इंसान ने एक शादी में ब्लास्ट कर 51 लोगों को मार दिया, वो मात्र 12 साल का था. ISIS का पाला हुआ बच्चा. इस ग्रुप का ऐसा ही इतिहास है. बच्चों को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं. पीठ पर बम का बैग बांध देते हैं. फिर मरने-मारने के लिए भेज देते हैं. ISIS के पास बच्चों की एक पूरी फ़ौज है. जिसे ये 'Cubs of the Caliphate' यानी 'खलीफा के शेर' कहते हैं. अपना स्कूल चलाते हैं. बच्चों को उसमें पढ़ाते हैं. इस्लाम की नई परिभाषा बताते हैं. झूठी कहानियां सुनाई जाती हैं. प्रैक्टिकल के नाम पर लोगों के सिर काट कर दिखाए जाते हैं. ISIS के कई वीडियो ऐसे हैं, जिनमें बच्चों से ही सिर कटवाए जा रहे हैं. ISIS द्वारा जारी किया गया फोटो
इन बच्चों का सबसे खतरनाक हमला 25 मार्च 2016 को बगदाद में हुआ था. जब एक फुटबॉल मैच के बाद ट्रॉफी दी जा रही थी. एक कम उम्र का लड़का घूमते हुए आया और ब्लास्ट कर दिया. उस ब्लास्ट में मरे ज्यादा बच्चे ही थे. बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था UNICEF की रिपोर्ट के मुताबिक इस संस्थान ने बहुत ज्यादा बच्चों को किडनैप कर लिया है. ट्रेनिंग देकर आतंकवादी बनाने के लिए. बहुत सारी लड़कियों को भी किडनैप किया गया है सेक्स स्लेव बनाने के लिए. इनके अलावा और भी ग्रुप हैं जो बच्चों का इस्तेमाल करते हैं:
बोको हरम
इस आतंकी संगठन के बारे में बताते हुए UNICEF ने कहा है कि अफ्रीका महादेश के नाइजीरिया, कैमरून और चाड में हुए हर 5 ब्लास्ट में से एक बच्चों से करवाए जाते हैं. नाइजीरिया में बोको हरम ने 2009 से ब्लास्ट शुरू किया था. तब से अब तक इन लोगों ने हजारो लड़कों और लड़कियों को किडनैप कर लिया है. अभी कुछ महीने पहले ये लोग नाइजीरिया के एक स्कूल से 300 लड़कियों को उठा ले गए थे. ब्लास्ट करवाने के अलावा ये उनका इस्तेमाल सेक्स के लिए भी करते हैं. कुछ लड़कियां जो किसी तरह भाग आई थीं, अब तक उन सदमों से उबर नहीं पाई हैं.
अल कायदा
लादेन की मौत के बाद ये संगठन इराक में ही ज्यादा हमले करता था. 2006 में मारे गए अल कायदा के जरकावी ने ही इराक में बच्चों से हमले करवाने का रिवाज शुरू किया था. इसी संगठन के लोग धीरे-धीरे अपना रूप बदलकर ISIS बन गए.
फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन
वहां पर मुख्य रूप से हमास, इस्लामिक जिहाद और कई दूसरे ग्रुप बच्चों को इजराइल के खिलाफ ट्रेन करते हैं. हालांकि ये रेगुलर तौर पर बच्चों को सुसाइड मिशन पर नहीं भेजते. पर साल 2000 के आस-पास इन लोगों ने 16 साल तक के बच्चों से ब्लास्ट करवाए थे. अभी पिछले एक-दो सालों में 11 साल तक के बच्चों ने ब्लास्ट किये हैं. हालांकि ये कहा जाता है कि हमास ने बच्चे नहीं भेजे. बल्कि ये खुद किसी के प्रभाव में आकर गए थे.
यमन
इस देश में आम जनता के पास भी बड़ा हथियार रहता है. बच्चे घर पर ही बन्दूक चलाना सीख जाते हैं. अभी जब यहां विद्रोह हुआ था, तब बड़ी संख्या में बच्चों ने फायरिंग की थी.
इन सबसे अलग केस है अमेरिका में
इस देश में तो बन्दूक रखना लोगों का 'संवैधानिक अधिकार' है. इसीलिए जाने-अनजाने हत्याएं होती रहती हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मम्मा खाना बना रही है, पापा दाढ़ी बना रहे हैं. और 2 साल का पपलू फायर कर देता है. मम्मी-पापा के अलावा रास्ते चलते लोग भी टारगेट में आ जाते हैं. इसके अलावा बहुत ऐसे लोग भी हैं, जो घर बैठे-बैठे बोर हो जाते हैं. और बन्दूक लेकर मार्किट में निकल पड़ते हैं. जो मिला, उसको ठोंक दिया. बच्चे आपसी लड़ाई को रंजिश में बदल देते हैं. कुछ महीने पहले ओबामा इसी बात पर रो रहे थे. संविधान बदलने की ताकत है नहीं उनके पास. हथियार बनाने वालों से बात की कि कैसे इन हत्याओं को रोका जाए. उन लोगों ने सुझाव दिया कि सर, एक ही रास्ता है. सबको बन्दूक दे दिया जाये. सब अपनी रक्षा खुद कर लेंगे.
बच्चों के इस्तेमाल का एक अलग तरीका दिल्ली में भी ईजाद हुआ है
2015 में कड़कड़डूमा कोर्ट में दो बच्चों ने फायरिंग कर एक को मार डाला था. कई अख़बारों ने रिपोर्ट किया कि अपराध करने के लिए बहुत सारे अपराधी गिरोह बच्चों का इस्तेमाल करने लगे हैं. 'जुवेनाइल कानून' का इस्तेमाल करने के लिए. अब बच्चे तो जेल में जायेंगे नहीं. बाल-सुधार गृह में जायेंगे. और इनका काम हो जायेगा.