अपने समोसे ने बर्गर को इस मामले में पटक दिया है... ठोको ताली
मेक इन इंडिया की इस जीत से पीएम मोदी बहुत खुश होंगे.
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समोसे ने बर्गर को हेल्थ के मामले में पिछाड़ दिया है.

समोसा भक्त हर शहर में समोसा ही ढूंढते रहते हैं.
कसम से, आज तो पक्का दो समोसा इसी खुशी में ज्यादा हौंक जाएंगे. रिपोर्ट में बताया गया है कि समोसे में कैलोरी भले ही ज्यादा होती हो. मगर ये बनता सब ताजे आइटम से है. मैदा, आलू, मटर, मिर्चा, नमक, मसाला, तेल सब ताजा ही होता है. इन चीजों में कोई कैमिकल नहीं मिलाया जाता है.
वहीं, बर्गर में कई तरह के प्रेजरवेटिव्स, एंटी ऑक्सीडेंट और कैमिकल पड़े होते हैं ताकि ये खराब न हो और ताजा बना रहे. जाहिर सी बात है कि ये कैमिकल्स शरीर का नाश ही करेंगे. बॉडी बर्डन: लाइफस्टाइल डिसीजेस नाम की इस रिपोर्ट का मूल मंत्र यही है कि पैक्ड खाने के मुकाबले ताजा खाना बेहतर है. कारण उसमें कैमिकल्स का न होना है. रिपोर्ट में इसी तरह पोहा को नूडल्स से बेहतर बताया गया है. इस रिपोर्ट के लिए सीएसई ने एक सर्वे सितंबर 2016 से मार्च 2017 के बीच करीब 13000 स्कूली बच्चों पर करवाया था. इसमें पैक्ड खाने से दूरी बनाने की हिदायत दी गई है.

बच्चों में बर्गर का क्रेज तो रहता है, मगर ये सेहत के लिए ठीक नहीं है.
सच कहें तो अब लगा, स्वदेशी और मेक इन इंडिया की असली जीत हुई है. मोदी जी आज बहुत खुश होंगे. हिंदुस्तान में वैसे भी दुई चीज ही तो हैं, जो आदमी सब जगह ढूंढता रहता है. एक चाय, दूसरा समोसा. पक्का ऐसे लोग तो आज बल्लियों उछलेंगे. चाय वाले तो पीएम बन गए. उम्मीद है कि इस रिपोर्ट के बाद समोसे का भी भौकाल और टाइट होगा और समोसे वाले भी कुछ सीएम, वीएम तो बन ही जाएंगे एक दिन. हंसो मत. कुछ भी हो सकता है. वैसे सही-सही बताएं तो समोसा और बर्गर दोनों को ही ज्यादा खाने से बचना चाहिए. मगर भूख लगी हो और दोनों में एक ऑप्शन हो तो गुरु समोसा ही चुनना. पैसा भी बच जाएगा. मजा तो आएगा ही.
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