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नेवी-वायु सेना के लिए 5600 करोड़ की विमान खरीद में किसी ने घपला कर दिया!

CBI का आरोप है कि रोल्स-रॉयस ने बिचौलिए को घूस देकर भारत को विमान बेचे डाले.

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CBI Probe in Hawk jet aircraft deal
हॉक जेट एयरक्राफ्ट डील में CBI ने भ्रष्टाचार की बात कही है. (फोटो सोर्स- HAL और आज तक)
30 मई 2023 (Updated: 30 मई 2023, 19:38 IST)
Updated: 30 मई 2023 19:38 IST
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भारतीय वायुसेना और नौसेना के लिए विमान खरीद में एक बड़े घोटाले का पता चला है. CBI ने 5 हजार 600 करोड़ रुपए से ज्यादा के हॉक जेट विमान (Hawk Advanced Trainer Jet Aircraft deal) की खरीद के मामले में FIR दर्ज की है. इस सौदे के तहत भारतीय नौसेना और एयरफ़ोर्स के लिए ‘हॉक 115’ एडवांस्ड जेट ट्रेनर एयरक्राफ्ट की खरीद होनी थी.

इस मामले में साल 2016 में CBI ने प्रारंभिक जांच रिपोर्ट दर्ज की थी. 23 मई, 2023 को इसे CBI के उप अधीक्षक पवन कुमार श्रीवास्तव की शिकायत पर रेगुलर केस में तब्दील कर दिया गया. FIR में रोल्स-रॉयस होल्डिंग्स PLC के डायरेक्टर टिम जोन्स, रोल्स-रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, लंदन के आर्म्स डीलर सुधीर चौधरी और उसके बेटे भानु चौधरी, ब्रिटिश एयरोस्पेस सिस्टम्स (BAE) और भारत के रक्षा मत्रालय के कुछ अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया है.

FIR के मुताबिक,

"केंद्र सरकार को रोल्स रॉयस और उसकी सहयोगी कंपनियों से हॉक एयरक्राफ्ट खरीदने थे. लेकिन डिफेंस मिनिस्ट्री के कुछ अज्ञात अधिकारियों ने साल 2003 से साल 2012 के बीच टिम जोंस, सुधीर चौधरी, भानु चौधरी. रोल्स रॉयस, ब्रिटिश एयरोस्पेस सिस्टम्स के अलावा कुछ सरकारी और गैरसरकारी लोगों के साथ मिलकर केंद्र सरकार को धोखा दिया."

FIR कहती है कि कुछ अज्ञात अधिकारियों ने भी अपने पद का गलत फायदा उठाया.

पूरा मामला शुरुआत से समझते हैं-

नौसेना और वायुसेना के लिए लड़ाकू पायलट तैयार करना एक बहुत लंबी प्रक्रिया होती है. ये सीधे लड़ाकू विमान ऑपरेट नहीं करते. पहले छोटे विमानों में साधारण फ्लाइंग की ट्रेनिंग दी जाती है. ये ज़्यादातर प्रोपेलर प्लेन्स होते हैं, माने इनके आगे एक पंखा लगा होता है. जब इनपर पायलट का हाथ साफ हो जाता है, तब वो बड़े ट्रेनर विमानों को उड़ाना शुरू करते हैं. मिसाल के लिए हॉक Mk 132, जिसे भारतीय वायुसेना की सूर्यकिरण एयरोबैटिक टीम उड़ाती है. आपने एयरशोज़ में सफेद धारियों वाले इन लाल विमानों के करतब देखे भी होंगे. ऐसा ही एक एड्वांस्ड जेट ट्रेनर है हॉक 115. हॉक Mk 132 और हॉक 115, दोनों को ब्रिटेन की BAE ने ही बनाया है.

फोटो सोर्स- इंडियन नेवी

अब आते हैं घोटाले पर. भारतीय वायुसेना और नौसेना दोनों लंबे समय से ट्रेनर विमानों की कमी से जूझ रही थीं. 3 सितंबर, 2003. केंद्र सरकार की कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी यानी सुरक्षा संबंधी समिति ने 66 हॉक 115 एडवांस्ड जेट ट्रेनर विमानों की खरीद को मंजूरी दी. सौदा 2 हिस्सों में तय हुआ. 5 हजार 653 करोड़, 44 लाख रुपए में 24 विमान फ्लाई अवे कंडीशन में मिलने थे. माने जैसे शोरूम से गाड़ी खरीदी जाती है, उसी तरह. आपने आज खरीदा, कल से विमान उड़ान के लिए तैयार. बाकी 42 विमानों को 1 हजार 944 करोड़ रुपए में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा बनाया जाना था. इसके अलावा कमेटी ने करीब 76 करोड़ 55 लाख रुपए बतौर लाइसेंस फ़ीस भी रोल्स-रॉयस को देने के लिए मंजूर किए थे.

रोल्स-रॉयस के साथ कॉन्ट्रैक्ट में ये शर्त भी रखी गई थी कि कोई बिचौलिया इस सौदे का हिस्सा नहीं होगा और न ही किसी को कोई कमीशन दिया जाएगा. ये भी प्रावधान रखा गया कि अगर इस क्लॉज़ का उल्लंघन हुआ तो भारत सरकार अगले 5 साल तक कंपनी को प्रतिबंधित कर सकती है. इसके बाद HAL ने इंडियन एयरफ़ोर्स को अगस्त 2008 से लेकर मई 2012 तक 42 एयरक्राफ्ट डिलीवर भी कर दिए.

जनवरी 2008 में HAL ने 9 हजार 502 करोड़ रुपए में 57 और हॉक एयरक्राफ्ट बनाने के लाइसेंस के लिए डिफेंस मिनिस्ट्री की मंजूरी मांगी. इन 57 एयरक्राफ्ट्स में से 40 एयरफोर्स के लिए थे और 17 नेवी के लिए. 30 अगस्त 2010 को ब्रिटिश एयरोस्पेस सिस्टम्स और HAL के बीच कॉन्ट्रैक्ट हुआ. इसमें भी किसी बिचौलिए को शामिल न करने को लेकर प्रावधान था. HAL ने ये विमान भी मार्च 2013 से जुलाई 2016 तक डिलीवर कर दिए.

फिर खेल कहां हुआ?

सौदों के लिए किसी बाहरी व्यक्ति के प्रभाव की मनाही थी. किसी बिचौलिए को शामिल न करने का प्रावधान था. लेकिन इसका उल्लंघन हुआ. CBI का कहना है कि साल 2003 से 2012 तक सभी आरोपियों ने रक्षा  मंत्रालय के कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने फायदे के लिए साजिश रची. इन सभी ऑफिसर्स को भारी कमीशन और घूस दी गई. और सौदों के लिए रोल्स रॉयस ने ये घूस दी.

CBI का कहना है कि साल 2006 में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने रोल्स रॉयस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के ऑफिस से इस सौदे से जुड़े कुछ डाक्यूमेंट्स जब्त किए गए थे. लेकिन कुछ आरोपियों ने जांच से बचने के लिए कागजात नष्ट कर दिए.

FIR के मुताबिक, साल 2017 में ब्रिटेन की एक अदालत के आदेश में भी विमान खरीद के इस मामले में बिचौलियों की संलिप्तता और कंपनी द्वारा सौदा में गलत तरीके से फायदा उठाने की बात कही गई थी.

मामला खुला कैसे?

मनी कंट्रोल की एक खबर के मुताबिक, 2012 में मीडिया रिपोर्ट्स में रोल्स रॉयस के कारोबार में गड़बड़ियों के आरोप लगाए गए. इसके बाद लंदन के सीरियस फ्रॉड ऑफिस यानी SFO ने जांच शुरू की. तब रोल्स रॉयस ने भारत, चीन, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों में गलत तरीके से पैसे के लेनदेन को लेकर एक स्टेटमेंट जारी किया. रोल्स-रॉयस ने SFO के साथ एक समझौता भी किया. जिस पर ब्रिटेन की कोर्ट ने 2017 में फैसला दिया. इसी में सारी गड़बड़ी का खुलासा हुआ. ये बात सामने आई कि रोल्स-रॉयस ने लाइसेंस फीस 40 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 76 करोड़ रुपए करने के लिए एक बिचौलिए को 10 लाख पौंड यानी करीब 10 करोड़ रुपए दिए थे.

ये भी खुलासा हुआ कि साल 2006 में जब इनकम टैक्स एक सर्वे में बिचौलिए से जुड़ी जानकारी आई, उसे डिफेंस मिनिस्ट्री तक पहुंचने से रोकने के लिए भी एक बिचौलिए को घूस दी गई. CBI का आरोप ये भी है कि लंदन के सुधीर चौधरी और भानु चौधरी ने रोल्स रॉयस और ब्रिटिश एयरोस्पेस सिस्टम्स के लिए भारतीय एजेंट और बिचौलिए के तौर पर काम किया है. 

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