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कैराना का गुब्बारा तो फूट गया, पर सावधान, चुनाव आ रहे हैं

मज़हबों में कुछ तनाव है क्या. कुछ पता तो करो, चुनाव है क्या.

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BJP सांसद हुकुम सिंह ने मानी अपनी टीम की गलती.
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कुलदीप
15 जून 2016 (Updated: 15 जून 2016, 07:26 AM IST) कॉमेंट्स
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सरहदों पर कुछ तनाव है क्या कुछ पता तो करो, चुनाव है क्या
शायर राहत इंदौरी ने ये बात सरहदों के बारे में कही थी, आप इसे 'मज़हबों' के बारे में भी पढ़ सकते हैं. चुनाव की दहलीज़ पर खड़े उत्तर प्रदेश में बिसातें बिछने लगी हैं. सावधान रहें. मुजफ्फरनगर के कैराना से हिंदू परिवारों के पलायन की स्क्रिप्ट फेल हो गई. इसके कथाकार थे वहां के बीजेपी सांसद और मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी हुकुम सिंह. उन्होंने 346 'हिंदू परिवारों' की सूची जारी करके कहा था कि ये परिवार मुस्लिम गैंग्स के खौफ की वजह से कैराना छोड़ गए. जिस गैंग का नाम उछला वो था मुकीम काला गैंग. खबर का ये मतलब निकाला गया कि कैराना में मुसलमान गैंग्स ने हिंदू परिवारों को आतंकित कर रखा है. मामला तेजी से फैला और ट्विटर पर 'जस्टिस फॉर कैराना हिंदूज' ट्रेंड करने लगा. बीजेपी के बड़े नेताओं ने बयान दिए. प्राइम टाइम पर बहसें चलीं.
इलाहाबाद में बीजेपी की नेशनल एग्जीक्यूटिव की मीटिंग चल रही थी. वहां बैठे-बैठे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने सांसद की सूची पर यकीन कर लिया और एक रैली में कहा, 'उत्तर प्रदेश को कैराना की घटना को हलके में नहीं लेना चाहिए. यह चौंकाने वाली घटना है. कैराना का पलायन कोई सामान्य घटना नहीं है.'
लेकिन बाद में पता चला कि हुकुम सिंह की लिस्ट में गड़बड़ियां थी. 346 परिवारों की लिस्ट में कई मर चुके हैं. कई परिवार नौकरी और एजुकेशन के लिए बाहर गए. कई अब भी वहीं रहते हैं. बल्कि इस बीच कैराना छोड़ने वालों में 150 मुस्लिम परिवार भी थे. लिस्ट पर सवाल उठे तो हुकुम सिंह ने गलती मान ली. इसे 'कार्यकर्ताओं की बनाई लिस्ट' बताकर पल्ला झाड़ा और नई लिस्ट के साथ आने की बात कहकर चले गए. मंगलवार को NDTV से बातचीत में उन्होंने माना कि ये पलायन सांप्रदायिक वजहों से नहीं था, बल्कि किसी ने इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया. उनका कहना है कि उन्होंने नहीं दिया.
अब हुकुम सिंह 63 नामों वाली दूसरी लिस्ट के साथ हाजिर हुए हैं. इस लिस्ट के टाइटल से 'हिंदू' शब्द गायब है. पहली लिस्ट (346 परिवारों वाली) का टाइटल था, 'कैराना से पलायन करने वाले हिंदू परिवारों की सूची.' नई लिस्ट कैराना से 12 किलोमीटर दूर कांधला से पलायन करने वाले परिवारों के बारे में है. इसका टाइटल है, 'कांधला से पलायन करने वाले परिवारों की सूची.'
परोक्ष रूप से हुकुम सिंह मान लिया है कि यह मजहबी घटना नहीं है? क्या अमित शाह अब भी इसे 'असामान्य' घटना मानते हैं? क्या केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा अब भी यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने के पक्षधर हैं? क्या किरण रिजिजू ने जिस जोश से पलायन की खबर को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था, उसी जोश से वो अब कोई प्रतिक्रिया देंगे?

थोड़ा सा हुकुम सिंह का बायोडेटा

78 साल के हैं हुकुम सिंह. 1962 में जवाहर लाल नेहरू की इमोशनल स्पीच सुनकर आर्मी जॉइन कर ली थी. 1962 और 1965 की लड़ाई में लड़े भी. फिर इस्तीफा देकर घर आ गए. नेहरू से प्रभावित तो थे ही, कांग्रेस जॉइन करके पॉलिटिक्स के मैदान में कूद पड़े. फिर कई दलों में आना-जाना लगा रहा. पहले लोकदल में गए. फिर कांग्रेस में लौट आए और 80 के दशक में वीर बहादुर सिंह और नारायण दत्त तिवारी की प्रदेश सरकार में मंत्री रहे. 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें बीजेपी रास आने लगी और पंजा छोड़कमल के फूल वाला पटका पहन लिया. पार्टी के टिकट पर विधायकी जीते और कल्याण सिंह सरकार में मंत्री बनाए गए. 2014 में मुजफ्फरनगर दंगों की आंच और नरेंद्र मोदी की लहर के बीच कैराना से लोकसभा का चुनाव लड़े और पहली बार सांसद बने. 5 महीने बाद अक्टूबर में कैराना में विधानसभा चुनाव थे. हुकुम सिंह के भतीजे अनिल कुमार बीजेपी के टिकट पर लड़े, लेकिन सपा कैंडिडेट नाहिद हसन से हजार वोट के अंतर से हार गए. फिर भी मुजफ्फऱनगर इलाके में हुकुम सिंह का खासा रुतबा है.

DM की रिपोर्ट क्या कहती है

बीजेपी की थ्योरी चौतरफा गलत साबित हुई. पुलिस और मीडिया के वेरिफिकेशन के बाद डीएम ने जांच करवाई और प्रदेश सरकार को रिपोर्ट सौंपी. इस रिपोर्ट के मुताबिक
1. कैराना के लोग इलाज, पढ़ाई और नौकरी के लिए हरियाणा और प्रदेश के कई जिलों में जाते हैं. 2. मुकीम गैंग के खौफ से ऐसा हो रहा है, यह कहना गलत है. इस गैंग में कुल 29 मेंबर थे. जिनमें से 23 गिरफ्तार किए जा चुके हैं और अलग अलग जेलों में बंद हैं. जबकि चार की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो चुकी है. मुकीम गैंग ने अब तक जो घटनाएं की हैं उससे दोनों संप्रदायों के लोग प्रभावित हुए हैं. 3. जिन 346 परिवारों की सूची सांसद ने जारी की है, उनमें से 119 का सत्यापन किया गया. इनमें से 68 परिवार करीब 10-15 साल पहले दूसरी वजहों, जैसे नौकरी, बिजनेस, बच्चों की पढ़ाई आदि की वजह से पानीपत, सोनीपत, करनाल और दिल्ली चले गए हैं. इनमें से 13 परिवार आज भी कैराना में रहते हैं. 5 परिवार अलग-अलग कारणों से मारे जा चुके हैं, लेकिन उनकी पैतृक संपत्ति आज भी यहीं है. बाकी परिवारों को वेरिफाई करवाया जा रहा है. 4. कस्बा कैराना अपने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जाना गया है. 2013 मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बहुत सारे दंगा प्रभावितों ने कैराना में शरण ली थी. 1992 में बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद यूपी के कई जिले सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गए थे, लेकिन कैराना में माहौल खराब नहीं हुआ था.

अखबारों की वेरिफिकेशन भी हिंदू-मुस्लिम की थ्योरी नकारती है

ऊपर के सारे बिंदु डीएम ने कहे हैं. डीएम प्रदेश सरकार के अंतर्गत काम करते हैं. उनकी रिपोर्ट को कोई भी भाजपाई शक की नजर से देखेगा. लेकिन अंग्रेजी अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने 10 ऐसे नामों को वेरिफाई किया है, जो हुकुम सिंह की दोनों सूची में हैं. इनमें से दो परिवार मुजफ्फरनगर दंगों के बाद खराब माहौल के चलते अपने घर छोड़ गए. जबकि एक परिवार लोकल क्रिमिनल्स की रंगदारी से तंग आकर घर छोड़ गया. बाकी सात परिवार निजी वजहों से कैराना छोड़कर गए. 'द हिंदू' ने अपनी वेरिफिकेशन में पाया कि दूसरी सूची के तीन परिवार अब भी कैराना में ही रह रहे हैं. मंगलवार शाम NDTV के हिमांशु शेखर ने कैराना के कुछ लोगों से बातचीत की. उन लोगों का कहना था कि मुसलमानों के आतंक से हिंदू परिवारों के भागने की बात बिल्कुल गलत है. हां, कुछ लोग 'क्रिमिनल्स की वजह से' जरूर गए हैं, लेकिन उनमें हिंदू और मुसलमान दोनों मजहब के लोग हैं. कैराना में दोनों मजहब के लोग अमन-चैन से रहते हैं और क्रिमिनल्स से दोनों परेशान हैं.
हिमांशु शेखर ने जिन 8-10 लोगों से बात की, उन्हें समूचे कैराना का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता. फिर भी ज़ुबानी तौर पर यह बात ज्यादा कनविंसिंग लगती है. कैराना की समस्या 'लॉ एंड ऑर्डर' की मालूम होती है, जिसे बड़ी धूर्तता से धार्मिक रंग दे दिया गया. इसका फायदा किसे होना था, यह समझना बच्चों का खेल है.2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, कैराना में 80 फीसदी मुसलमान और सिर्फ 18 फीसदी हिंदू रहते हैं. अगर यह मजहबी अत्याचार का मसला होता तो इसे उजागर करने के लिए किसी को कोई लिस्ट जारी करने की जरूरत नहीं पड़ती.मंगलवार शाम हुकुम सिंह ने 'द हिंदू' से बातचीत में कहा, 'मैं अपनी बात पर कायम हूं कि यह हिंदू-मुसलमान का मुद्दा नहीं है. ये सिर्फ उन लोगों की लिस्ट है जो किसी दबाव की वजह से कैराना छोड़ गए.'

अब प्रशासन से दो अपेक्षाएं हैं. एक तो 'जुर्म यहां है कम' के शगूफे वाली समाजवादी सरकार एनर्जी ड्रिंक पीकर कैराना में कूद पड़े और अपनी निष्क्रियता की फैलाई पेचिश को समेटे. आंख-कान-नाक खोलकर वहां के लोगों से संवाद किया जाए. साथ ही, जिन लोगों ने इसे मजहबी घटना बताने और बनाने की कोशिश की, उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो. इस फर्जी थ्योरी के बहाने फेसबुक-ट्विटर पर नफरत फैलाने वाली जो पोस्ट्स की गईं, उनकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

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