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  • CAA-NRC: Assam’s Cachar district, 104-year-old man dies after fighting to prove his Indian citizenship for the past two years

अपने ऊपर से विदेशी का ठप्पा हटवाने की जंग लड़ रहे 104 साल के बुजुर्ग का निधन

असम NRC में नाम जुड़वाने की कोशिश करते करते जिंदगी गुजर गई

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चंद्रधर दास का 104 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. वह भारतीय नागरिकता साबित करने की लड़ाई लड़ रहे थे. (फोटो- इंडिया टुडे)
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उमा
15 दिसंबर 2020 (Updated: 15 दिसंबर 2020, 05:33 PM IST) कॉमेंट्स
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चंद्रधर दास. 104 साल के बुजुर्ग थे. हार्ट अटैक से निधन हो गया. वह अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने की लड़ाई लड़ रहे थे. उम्मीद जता रहे थे कि एक दिन उन्हें भारतीय नागरिकता मिलेगी. पर  जीते जी ऐसा हो न सका.  चंद्रधर दास का नाम NRC  यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की फाइनल लिस्ट में नहीं आया.

असम के कछार जिले के रहने वाले चंद्रधर को दो साल पहले फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था. उसके बाद उन्हें सिलचर के डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया. इंडिया टुडे के हेमंता कुमार नाथ की रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रधर दास के वकील सौमेन चौधरी ने बताया कि दास को एकपक्षीय फैसले के आधार पर विदेशी घोषित किया गया था, क्योंकि वो अपनी नागरिकता साबित करने के लिए ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं हो पाए थे. उसके बाद मार्च, 2019 में उन्हें सिलचर की सेंट्रल जेल में भेज दिया गया था. वकील के मुताबिक,

दास अस्वस्थ थे, उनकी उम्र ज्यादा होने की वजह से समस्या थी. जेल में रहने के दौरान वो मुश्किल से चल पाते थे. जब उनकी स्थिति बिगड़ने लगी, तो कोर्ट में जमानत याचिका दायर की गई. कोर्ट ने मानवीय आधार पर उनकी जमानत याचिका मंजूर कर ली. चंद्रधर दास ने दावा किया था कि उनके पास 1966 में त्रिपुरा के अगरतला में जारी किया गया रिफ्यूज़ी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट है. उन डॉक्यूमेंट्स में कहा गया था कि दास का जन्म कोमिल्ला, जो पूर्वी पाकिस्तान था और अब बांग्लादेश है, वहां हुआ था.

वकील ने बताया कि त्रिपुरा अथॉरिटी द्वारा उन डॉक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन होना अभी बाकी है, इसलिए ये मामला पेंडिंग चल रहा है.

परिवार का क्या कहना है?

परिवार ने बताया कि दास ने 1950 के बीच में बांग्लादेश छोड़ दिया था, और त्रिपुरा में रहने के लिए आ गए थे. यहीं पर रहकर दिहाड़ी मजदूरी का काम करते थे. फिर कुछ समय बाद वो कछार जिले में गए और अमराघाट में रहने लगे.

घर में, गली में और सड़कों पर PM मोदी के पोस्टर लगे हैं. जहां भी नजर पड़ती है, मैं हाथ जोड़ लेती हूं, क्योंकि मेरे पिता मोदी को भगवान मानते थे. भगवान जो सबकुछ ठीक कर देते हैं. नागरिकता कानून आए लगभग एक साल हो गया है, लेकिन 'भगवान' ने क्या किया? मेरे पिता भारतीय होकर मरना चाहते थे. उनकी इच्छा थी कि मरने से पहले उनके सिर से विदेशी का ठप्पा हट जाए. और हमने इसके लिए पूरी कोशिश भी की. हम कोर्ट गए, वकील से मिले. सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी मिले. सभी कागज जमा किए. लेकिन कुछ नहीं हुआ. हम अभी भी कानून की नजर में 'विदेशी' हैं. नागरिकता संशोधन अधिनियम ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. ये कानून हमारे लिए बेकार है.

वहीं, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बेटी नियुक्ति दास ने बताया

और परिवार को ये उम्मीद थी कि संसद में CAA पास होने के बाद उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. पर ऐसा नहीं हुआ. और चंद्रधर दास का अब निधन हो गया.

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