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तेजस जैसी 150 और ट्रेनें चलाने की तैयारी में है सरकार, आखिर क्या होता है PPP मॉडल?

इससे सरकार पर रेलवे को प्राइवेट हाथों में देने के आरोप बढ़ सकते हैं.

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रेलवे की हालत सही नहीं है. साथ ही सरकार पर रेलवे को प्राइवेट हाथों में देने के आरोप लग रहे हैं. फोटो: PTI
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निशांत
1 फ़रवरी 2020 (Updated: 1 फ़रवरी 2020, 01:45 PM IST) कॉमेंट्स
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बजट 2020. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रेलवे को लेकर कई बातें कहीं. लेकिन कुल बजट को देखा जाए तो रेलवे पर सरकार का फोकस बहुत कम रहा. पटरी से उतरी रेलवे में सुधार के लिए सरकार पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल का रुख कर रही है. मतलब रेलवे को लेकर प्राइवेट सेक्टर की तरफ सरकार फिर हाथ बढ़ा रही है. तेजस जैसी ट्रेन चलाने के बाद सरकार पर आरोप लगे कि वो रेलवे को प्राइवेट हाथों में दे रही है. बजट के बाद ऐसे आरोप बढ़ सकते हैं. निर्मला सीतारमण ने कहा,
दूसरी बार सरकार आने के बाद 550 रेलवे स्टेशनों पर वाई-फाई सुविधा चालू की गई. मानवरहित फाटकों को खत्म कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि 27000 किलोमीटर लंबी रेल लाइनों का इलेक्ट्रिफिकेशन किया जाएगा.
उन्होंने कहा,
18600 करोड़ रुपए की लागत से 148 किलोमीटर की बेंगलुरु सबअर्बन परियोजना में मेट्रो मॉडल के आधार पर किराया लगेगा. मुंबई-अहमदाबाद के बीच हाईस्पीड ट्रेन चलेगी. इसमें भी पीपीपी मॉडल लागू होगा. 150 पैसेंजर ट्रेनें भी पीपीपी मॉडल से चलेंगी. रेलवे लाइन के आसपास सोलर पैनल लगाए जाएंगे. तेजस जैसी और भी ट्रेनें चलाई जाएंगी, जो पर्यटन स्थलों को जोड़ेंगी.
इसके अलावा उन्होंने बताया कि जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों को ले जाने के लिए पीपीपी मॉडल के तहत ‘किसान रेल’ चलाई जाएगी. इसमें एयरकंडीशंड कोच लगे होंगे. अब इसमें एक कीवर्ड बार-बार आ रहा है- पीपीपी मॉडलआखिर ये पीपीपी (PPP) मॉडल क्या होता है? पीपीपी का फुलफॉर्म होता है पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप. माने थोड़ा पैसा सरकार लगाए, थोड़ा प्राइवेट कंपनी से कहे कि तुम लगाओ. हम दोनों पार्टनर रहेंगे. लोगों की सर्विस के लिए किसी इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे टेलीकम्युनिकेशन सिस्टम, एयरपोर्ट, हाईवे, पॉवर प्लांट, रेलवे बनाने के लिए सरकार पीपीपी मॉडल पर काम कर सकती है. पीपीपी मॉडल कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर भी हो सकता है. ये मॉडल फंडिंग, निर्माण, किसी प्रोजेक्ट का ऑपरेशन, मेंटेनेंस के लिए होता है. इसके समर्थन में कहा जाता है कि इससे योजनाएं सही समय पर पूरी होती हैं. रिस्क भी दोनों पर होते हैं. पीपीपी के मॉडल इसमें कई तरह के मॉडल आते हैं. 1. बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) इसमें प्राइवेट सेक्टर कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाता है, ऑपरेट करता है और बाद में पब्लिक सेक्टर (सरकार) को वापस कर देता है. प्राइवेट सेक्टर इसमें लगे अपने पैसे को टैक्स के जरिए लोगों से वसूलता है. नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट इसका उदाहरण है. 2. बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO) इसमें किसी बनाए गए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर मालिकाना हक प्राइवेट सेक्टर का होगा. लेकिन सरकार समझौते के तहत प्राइवेट पार्टनर से चीज़ें 'खरीद' सकती है. 3. बिल्ड-ऑपरेट-लीज़-ट्रांसफर (BOLT) इस मॉडल में सरकार प्राइवेट पार्टनर को कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने, उसे ओन करने, लीज पर लेने की छूट देती है. लीज खत्म होने के बाद सरकार इसे वापस ले लेती है. 4. डिजाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट-ट्रांसफर (DBFOT) इस मॉडल में सरकार की तरफ से दी गई छूट के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर के डिजाइन, उसे बनाने, उसे फाइनेंस करने और ऑपरेट करने की जिम्मेदारी प्राइवेट पार्टनर के पास होती है. 5. लीज-डेवलप-ऑपरेट (LDO) इस मॉडल में सरकार या प्राइवेट पार्टनर के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर का मालिकाना हक होता है और प्राइवेट प्रमोटर से लीज के दौरान पैसा मिलता है. जैसे- एयरपोर्ट निर्मला सीतारमण ने ये भी कहा कि पीपीपी मॉडल पर पांच स्मार्ट सिटी और कई मेडिकल कॉलेज बनेंगे.
अर्थात: निर्मला सीतारमण के बजट के बाद केंद्र और राज्य में अर्थव्यवस्था का संघर्ष

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