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लड़की थोड़ा लेट हो जाए, उसे लॉबी में सुलाते हैं हॉस्टल वाले

लड़कियां अब हॉस्टल के बेहूदे नियमों के खिलाफ खड़ी हो गई हैं.

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पिंजरा तोड़
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प्रतीक्षा पीपी
5 अगस्त 2016 (Updated: 5 अगस्त 2016, 07:50 AM IST) कॉमेंट्स
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देश के तमाम गर्ल्स हॉस्टल की तरह भोपाल के मौलाना आजाद नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MANIT) की लड़कियां भी अब हॉस्टल के बेहूदे नियमों के खिलाफ खड़ी हो गई हैं. लड़कियां ड्रेस कोड और हॉस्टल टाइमिंग के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रही हैं.
देश भर में लड़कियों और लड़कों के हॉस्टल के बीच नियमों में बहुत बड़ा फासला देखा जाता है. जहां लड़कियों का कर्फ्यू टाइम शाम 7 बजे से शुरू हो जाता है, लड़कों को अक्सर कभी भी आने की छूट रहती है. ग्रेजुएट हॉस्टल में भी कमसकम 11-12 बजे तक तो एंट्री मिल ही जाती है. देखा जाता है कि अगर लड़के हॉस्टल से बाहर रहना चाहें, उन्हें बड़ी आसानी से लीव मिल जाती है. पर लड़कियों को घर या गार्डियन के घर फोन कर वॉर्डन से परमिशन लेनी पड़ती है. इन नियमों के चलते लड़कियां न ही ट्यूशन-कोचिंग जा पाती हैं. न अपनी मर्जी से घूम पाती हैं.
MANIT की ही एक लड़की का कहना है, 'हमें रात को 9.30 बजे के बाद हॉस्टल में घुसने नहीं दिया जाता. शाम 5 बजे तक हमारा कॉलेज होता है. जिसके बाद कई स्टूडेंट्स कोचिंग जाते हैं, जो 10 बजे तक चलती है. इसके बाद ही हम वापस आ पाते हैं. अगर हम 9.30 के बाद आते हैं, तो हमें लॉबी में सोना पड़ता है. लेकिन लड़कों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है.'
इतना ही नहीं. यहां के हॉस्टल के ड्रेस कोड के मुताबिक शॉर्ट्स पहनना मना है. लड़कियों का कहना है कि वो कपड़े पहनने चाहिए, जिसमें सहज फील हो. अगर वो शॉर्ट्स पहनना चाहती हैं, तो क्यों न पहनें. इन हॉस्टलों के नियम देखकर ये लगता है कि हम अब भी 16वीं शताब्दी में हैं.
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मीडिया से बात करती MANIT की एक स्टूडेंट


MANIT की लड़कियों की तरह ही DU की लड़कियां अक्सर इस तरह के प्रोटेस्ट करती आ रही हैं. पिछले साल अगस्त में DU और अंबेडकर यूनिवर्सिटी की लड़कियों ने मिलकर एक ग्रुप भी बनाया. जिसका नाम है 'पिंजरा तोड़'.
लड़कियों के लिए सिर्फ टाइम ही स्ट्रिक्ट नहीं रहता. बल्कि हॉस्टल और पीजी का किराया भी ज्यादा होता है. और ये सब 'सुरक्षा' के लिबास में लपेटकर इस तरह परोसा जाता है कि मां-बाप अपनी बेटियों को ऐसे हॉस्टल में भेजकर बड़ा जिम्मेदार फील करते हैं. कि चलो हमारी बेटी तो सेफ है. लेकिन बेटियों के अधिकारों का जो दम घोंटा जाता है, उसे कोई नहीं देखता.


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