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क्या बाबा रामदेव विदेशी ब्रैंड का जूता पहनकर गंगा तट पर बैठे थे?

बाबा रामदेव ने एक फोटो डिलीट की. उसे क्रॉप करके फिर डाला. लेकिन अंदाजा नहीं था कि उसमें भी क्या दिख रहा है.

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बाईं तरफ वो फोटो है, जो बाबा रामदेव ने पहले डाली थी. उसे हटाकर फिर दूसरी फोटो डाली उन्होंने. जो दाहिनी तरफ है. दूसरी तस्वीर में दाहिने पैर का जूता क्रॉप करके हटा दिया गया. बस इतना ही अंतर है दोनों फोटो में. लोगों ने कमेंट में बाबा की आलोचना की है इसके लिए.
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स्वाति
9 मार्च 2018 (Updated: 9 मार्च 2018, 06:36 AM IST)
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बाबा रामदेव का इंस्टाग्राम पर अकाउंट है. काफी ऐक्टिव रहते हैं वो वहां पर. फोटो वगैरह डालते रहते हैं. उन्होंने एक फोटो अपलोड की. उसको हटाया. फिर उसी तस्वीर को थोड़ा क्रॉप करके दोबारा पोस्ट किया. हमारी नजर इन तस्वीरों पर गई. और हमें हंसी आ गई. क्यों? अभी बताते हैं. मगर उससे पहले थोड़ी बातें 'विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में की जा रही लूट' का जिक्र कर लेते हैं.
विदेशी कंपनियों के द्वारा की जा रही लूट को रोकें. स्वदेशी अपनाएं.

          : बाबा रामदेव

बाबा रामदेव के नाम से दो ही शब्द ध्यान आते हैं. एक योग. दूसरा स्वदेशी. बाबा की स्वदेशी मुहिम दिन भर विज्ञापनों में दिखती है. ऊपर जो लिखा है, वो पतंजलि उत्पादों के विज्ञापन की एक मशहूर टैगलाइन है. बाबा अक्सर टीवी स्क्रीन पर ये बोलते नजर आते हैं. उनकी इस अपील को भारतीयों ने हाथो-हाथ लिया. पतंजलि और उसके सामान बेस्ट सेलर बन गए. लाखों लोगों के घर में फिनाइल से लेकर पेस्ट तक, पापड़ से लेकर चावल-दाल और आटा तक पतंजलि का आता है. बाबा की बात इतनी ज्यादा असर कर गई कि लोग स्वदेशी (मतलब पतंजलि) के लिए भावुक हो गए.
फोटो का एक खास हिस्सा क्रॉप कर दिया अब उस तस्वीर की बात, जिसका ऊपर जिक्र किया. 7 मार्च को बाबा रामदेव ने पहले एक तस्वीर डाली. गंगा किनारे बैठे हुए थे. शरीर पर हमेशा की तरह भगवा कपड़े. फोटो के कैप्शन में लिखा था- मां गंगा के तट पर. इस फोटो को बाद में हटा लिया. बाबा का अकाउंट है. उन्होंने ही हटाया होगा. इस फोटो में बाबा के पैरों में एक ललछौं रंग का जूता दिख रहा था. इस फोटो की जगह बाबा ने फिर एक दूसरी तस्वीर डाली. नई तस्वीर में कुछ नया नहीं था. वो ही पुरानी तस्वीर थी. अंतर बस ये था कि इस बार फोटो को क्रॉप करके वो जूते वाला हिस्सा हटा दिया गया था. मगर इस नई फोटो में भी बाबा के दूसरे पैर में वो ही जूता पड़ा हुआ था. भूरे रंग वाला. और क्रॉप करके दाहिने पैर का जूता भले हटा दिया गया हो, मगर जूते का लेस दूसरी फोटो में भी दिख रहा था.
ये बाबा रामदेव का वैरिफाइड अकाउंट है. कुछ यूजर्स के कमेंट ब्लर किए हैं हमने. क्योंकि उनमें अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया था.
ये बाबा रामदेव का वैरिफाइड अकाउंट है. कुछ यूजर्स के कमेंट ब्लर किए हैं हमने. क्योंकि उनमें अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया था.

पहली और दूसरी फोटो में बस इतना ही अंतर है जिस तस्वीर को हटाया गया, उस पर लोगों ने लिखा कि ये वुडलैंड का लोगो है. हालांकि लोगो को जूम करके देखो, तो एकदम साफ-साफ नहीं दिखता. ब्रैंड का लोगो धुंधला सा दिखता है. फिर याद आया कि बाबा ने क्रॉप करके फोटो का ये हिस्सा हटाया. ऐसा क्यों किया उन्होंने? शायद उन जूतों की वजह से ही फोटो को क्रॉप किया गया. तो क्या बाबा उस लोगो को छुपाना चाहते थे? लगता तो ये ही है. क्योंकि पहली और दूसरी फोटो में बस इतना ही अंतर है. बाबा रामदेव की ये अतिरिक्त कोशिश थोड़ी अटपटी लगती है. लोगों ने कॉमेंट सेक्शन में आकर बाबा की खूब आलोचना की. लगता है पहले वाली तस्वीर पर भी ऐसी ही प्रतिक्रिया आई होगी.
ये वो पहली फोटो है.
ये वो पहली फोटो है.

वुडलैंड कहां की कंपनी है? अब इस चीज का दोहरापन देखिए. बाबा रामदेव सबसे स्वदेशी अपनाने को कहते हैं. ताकि विदेशी कंपनियों की लूट रोकी जा सके. उनका संकल्प है:
मेरा वो मन स्वदेशी, मेरा वो तन स्वदेशी, मर जाऊं तो भी मेरा होवे कफन स्वदेशी
लेकिन खुद? अगर ये वुडलैंड के जूते हैं, तो वुडलैंड कहां की कंपनी है? वुडलैंड की पैरंट कंपनी है एयरो ग्रुप. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, ये कंपनी 50 के दशक के शुरुआती सालों में बनी. कनाडा में एक जगह है. क्यूबैक. वहीं पर. ये आउटडोर इस्तेमाल के जूते बनाती थी. तब एयरो ग्रुप चमड़े से बने अपने ज्यादातर जूते रूस में एक्सपोर्ट करता था. 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ. बिजनस पर असर पड़ा. तभी कंपनी ने नए बाजारों को एक्सप्लोर करने का फैसला किया.
कई लोगों ने वुडलैंड वाली बात का जिक्र किया है. फोटो क्रॉप करने पर भी बाबा की आलोचना की है.
कई लोगों ने वुडलैंड वाली बात का जिक्र किया है. फोटो क्रॉप करने पर भी बाबा की आलोचना की है. उन्हें उनके स्वदेशी व्रत की याद भी दिलाई है लोगों ने.

बाबा तो खड़ाऊं पहनकर हिमालय पर चढ़ जाते हैं! तो 1992 वो साल था जब इस कंपनी ने भारतीय बाजार में एंट्री की. इसके ठीक एक साल पहले ही हमारे यहां आर्थिक उदारीकरण हुआ था. एयरो ग्रुप जो लेदर के जूते बनाता था, उसकी एक खासियत ये भी थी कि वो हाथ से सिले होते थे. कंपनी ने भारत में इन जूतों को वुडलैंड ब्रैंड के नाम से लॉन्च किया. ये खूब चले. लोगों ने इसको खूब पसंद किया. अब भी करते हैं. एक और बात है. बाबा रामदेव ने 28 अगस्त, 2015 को इंस्टाग्राम पर एक फोटो डाली थी. वो बर्फ पर बैठे योग कर रहे हैं. चारों तरफ बर्फ है. उनका ऊपर का धड़ खुला है. वस्त्रहीन. कमर में गेरुआ धोती तो है, लेकिन बैठने के कारण जांघ और पैरों का ज्यादातर हिस्सा भी खुला हुआ है. सामने एक खड़ाऊं की जोड़ी पड़ी है. फोटो के कैप्शन में लिखा है:
लेह में भ्रामरी प्राणायम करता हुआ मैं स्वामी रामदेव.
baba-ramdev-yoga
पहले भी कई बार ऐसे जूतों में नजर आ चुके हैं बाबा कई मौकों पर कह चुके हैं. कि वो तो भगवा और खड़ाऊं पहनने वाले संन्यासी हैं. जो व्यक्ति हिमालय की ऊंचाई पर, बर्फ के बीच खड़ाऊं पहनकर जा सकता है, वो गंगा के किनारे एकदम सामान्य स्थिति में जूते क्यों पहनता है? वैसे इंस्टाग्राम पर उनकी कई तस्वीरें हैं, जिसमें वो फुटबॉल खेलते हुए नजर आते हैं. तब भी उनके पांव में वो भूरे रंग का जूता है. फर्क बस इतना है कि उन तस्वीरों में जूते पर कोई लोगो नजर नहीं आता. क्योंकि तस्वीर सामने से ली गई है. कुछ दूर से. शायद इसीलिए तब फोटो क्रॉप नहीं की गई.
बाबा रामदेव फुटबॉल के मैदान में रणवीर कपूर से आगे दिख रहे हैं.
बाबा रामदेव फुटबॉल के मैदान में रणवीर कपूर से आगे दिख रहे हैं.

विदेशी कंपनियों को विलेन बनाना भी एक मार्केटिंग है आप मुझसे पूछें कि देसी-विदेशी कंपनियों से मुझे क्या फर्क पड़ता है, तो मेरा जवाब साफ है. देसी उद्योगों को बढ़ावा मिलना चाहिए. लेकिन विदेशी ब्रैंड्स को खलनायक बनाकर नहीं. विदेशी कंपनियां भारत आती हैं. इससे हमको भी फायदा मिलता है. टैक्स मिलता है. लोगों को नौकरियां मिलती हैं. सरकार तो कोशिश करती है कि खूब विदेशी निवेश आए. हर सरकार लगातार FDI की लिमिट बढ़ाती जा रही है. सारी विदेशी कंपनियां भारत से भाग गईं, तो हमें कितना नुकसान होगा ये आप अंदाजा नहीं लगा सकते. आज के वक्त में ये मुमकिन भी नहीं, जहां विश्व व्यापार के अपने नियम-कायदे हों. जहां तक बात रही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुए स्वदेशी आंदोलन की, तो वो अलग था. तब अंग्रेज हमारा कच्चा माल मुफ्त में ले जाते थे. उसी से अपने यहां चीजें बनाते थे. और फिर उन्हीं चीजों को हमारे यहां आकर हमें बेचते थे. महंगे दामों पर. इस चक्कर में हम बर्बाद हो रहे थे. हमारे यहां के कारीगर, हमारा उद्योग-धंधा, कारोबार, कलाएं ये झुलस रही थीं. वो अलग दौर था. ये अलग दौर है. बाबा रामदेव जो चाहें, पहनें. जैसा चाहें, पहनें. ये लोकतंत्र है आखिरकार.


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