अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जावेद अख़्तर ने मस्जिद वाली ज़मीन पर ये सलाह दी है
कोर्ट के फैसले के मुताबिक, मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए पांच एकड़ ज़मीन मिलनी है.
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9 नवंबर को अयोध्या केस पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जावेद अख़्तर ने अपनी राय दी है. उनके मुताबिक, मस्जिद के लिए जो ज़मीन मिलनी है वहां पर मुस्लिम पक्ष को एक अस्पताल बनवा देना चाहिए (फोटो: इंडिया टुडे आर्काइव्ज़)
बहुत अच्छा होगा कि जिन्हें मुआवजे के तौर पर पांच एकड़ ज़मीन मिले, वो उस जगह पर एक बड़ा चैरिटेबल अस्पताल बनाने का फैसला करें. ऐसा हॉस्पिटल, जिसे हर समुदाय के लोग मदद करें. सारी कम्यूनिटीज़ के लोग उसे स्पॉन्सर करें.
जावेद अख़्तर के बेटे हैं फरहान अख़्तर. उन्होंने भी 9 नवंबर को फैसला आने के बाद एक ट्वीट किया था. इसमें लिखा था-It would be really nice if those who get the 5 acres as compensation decide to make a big charitable hospital on that land sponsored and supported by the people all the communities .
— Javed Akhtar (@Javedakhtarjadu) November 10, 2019
सभी लोगों से विनम्र आग्रह है. अयोध्या केस पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करिए. ये फैसला आपके पक्ष में हो या आपके विरुद्ध, इसे पूरी गरिमा, पूरी शालीनता के साथ स्वीकार कीजिए. हमारे देश को एक होकर इससे आगे बढ़ने की ज़रूरत है. जय हिंद.
जावेद अख़्तर के लंबे समय तक पार्टनर रहे सलीम ख़ान. उनसे भी इस फैसले पर उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई. उन्होंने कहा कि भारत को स्कूलों की सख़्त ज़रूरत है, न कि मस्जिदों की. सलीम ख़ान ने न्यूज़ एजेंसी IANS से कहा-Humble request to all concerned , please respect the Supreme Court verdict on #AyodhyaCase today. Accept it with grace if it goes for you or against you. Our country needs to move on from this as one people. Jai Hind.
— Farhan Akhtar (@FarOutAkhtar) November 9, 2019
हमें मस्ज़िद की ज़रूरत नहीं. नमाज़ तो हम कहीं भी पढ़ लेंगे. ट्रेन में, प्लेन में, ज़मीन पर, कहीं भी पढ़ लेंगे. मगर हमें ज़रूरत है बेहतर स्कूलों की. तालीम अच्छी मिलेगी 22 करोड़ मुसलमानों को, तो इस देश की बहुत सी कमियां ख़त्म हो जाएंगी.सलीम ख़ान ने कहा कि पैगंबर ने इस्लाम की जो दो ख़ायिसत बताईं, वो हैं मुहब्बत और क्षमा. सलीम ख़ान ने कहा-
इस कहानी (अयोध्या विवाद) के ख़त्म हो जाने के बाद मुसलमानों को चाहिए कि वो इन दोनों नेमतों को बरतें और आगे बढ़ें. मुहब्बत ज़ाहिर करिए और मुआफ़ करिए. ऐसे मसलों पर पीछे मुड़कर मत देखिए. पीछे का मत याद कीजिए. बस यहां से आगे की तरफ बढ़िए. ऐसे संवेदनशील फैसले के ऐलान के बाद जिस तरह से शांति और भाईचारा बनाए रखा गया है, वो तारीफ़ के काबिल है. एक बहुत पुराना विवाद अब सुलझ गया. अपने दिल की गहराइयों से मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं.
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