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Aurora वाले सोलर फ्लेयर को चंद्रयान-2 और आदित्य-एल1 ने भी पकड़ लिया, सूरज के ये तूफान होते क्या हैं?

Aurora (Northern Lights) लाने वाले solar flares को ISRO के चंद्रयान-2 और आदित्य-एल1 ने भी पकड़ा है. साथ ही धरती पर इसके असर के बारे में भी बताया गया.

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aurora solar flare
ये 20 सालों में सबसे तेज सोलर स्ट्रॉम कहा जा रहा है (Image: NASA/X)
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राजविक्रम
15 मई 2024 (Updated: 15 मई 2024, 10:19 AM IST) कॉमेंट्स
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कुछ दिनों से ऑरोरा खूब चर्चा में हैं. ऑरोरा बोरेलिस (Aurora) या नॉर्दर्न लाइट्स (northern lights) ने सोशल मीडिया में खूब गदर काट रखा है. कुछ लोगों को नए वॉलपेपर मिल गए हैं. तो कुछ को नई बातें जानने मिली हैं. आमतौर पर धरती के ध्रुवों पर ये रंगीन रोशनी देखी जाती हैं. लेकिन इस बार ये सोलर फ्लेयर या सौर्य तूफान काफी तेज था. जिसकी वजह से ऑरोरा भारत के कुछ इलाकों (Ladakh) से भी देखे गए. खबर है कि ऑरोरा लाने वाले इस शक्तिशाली तूफान को, ISRO के चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और आदित्य-एल1 (Aditya-L1) ने भी पकड़ा है.

ISRO का आदित्य-एल1 स्पेस क्राफ्ट सूरज से लाखों किलोमीटर दूर, उसका अध्ययन करने के लिए भेजा गया है. वहीं चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चंद्रमा के चक्कर काट रहा है. दोनों ने ही ऑरोरा लाने वाले सोलर फ्लेयर्स को देखा है. 

ISRO के मुताबिक ये सौर तूफान एक्टिव रीजन AR13664 की वजह से आया था. जिसकी वजह से सीरीज-X के सोलर फ्लेयर धरती की तरफ आए. जिसका नतीजा था 20 सालों का सबसे तेज ये जियोमैग्नेटिक तूफान (geomagnetic storm). जिसकी वजह से कम्युनिकेशन और GPS सिस्टम में रुकावट भी आई. और ये रंगीन रोशनी या ऑरोरा धरती में कई जगहों पर देखी गई. 

ये भी पढ़ें: क्या है ये ऑरोरा, नॉर्दर्न लाइट्स पर सोशल मीडिया लहालोट, कैसे आसमान हुआ रंगीन?

क्या है ये सोलर फ्लेयर और इससे ऑरोरा कैसे बनते हैं?

अक्सर धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में एक खास तरह की लाइट देखने को मिल सकती हैं. जो अगर उत्तरी ध्रुव में हों तो ऑरोरा बोरेलिस और दक्षिणी ध्रुव में हों तो ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस कही जाती हैं. हालांकि ये रात में बेहतर देखी जा सकती हैं, लेकिन इसके पीछे की वजह है हमारा सूरज. और हमारी धरती का मैग्नेटिक फील्ड. दरअसल किसी चुंबक की तरह हमारी धरती में भी चुंबकीय क्षेत्र होता है. जो सूरज से आने वाले हाई एनर्जी पार्टिकल्स से बचाने में हमारी मदद करता है. 

लेकिन सूरज हमेशा एक जैसा नहीं रहता. कभी-कभी इसमें सौर हवाएं और सौर तूफान भी आते हैं. और कभी-कभी एक खास तरह का तूफान आता है, जिसे कोरोनल मास इजेक्शन कहते हैं. इसमें सूरज से एक इलेक्ट्रीफाइड गैस का गुब्बारे सा निकलता है, जो स्पेस में बहुत तेजी से चल सकता है.

और ये तूफान जब हमारी धरती तक आता है, तो कुछ एनर्जी और छोटे कण धरती के ध्रुवों के चुंबकीय क्षेत्र से नीचे पहुंच जाते हैं. जहां ये हमारे वायुमंडल की गैसों से मिलते हैं. और उन्हें एनर्जी देकर उनमें रंग दिखाते हैं. ऑक्सीजन हरा और लाल रंग देती है. वहीं नाइट्रोजन नीली और बैंगनी रंग देती है. 

वीडियो: क्या है ये ऑरोरा? नॉर्दर्न लाइट्स जिस पर सोशल मीडिया बवाव काट रहा है

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