अरावली: जहां DSP को ट्रक ने कुचल कर मार डाला वहां ऐसे चल रहा अवैध खनन का खेल
इंडिया की रिपोर्ट में पता चला है कि अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन का काम ज़ोरों से चल रहा है.
हरियाणा के नूंह जिले में 19 जुलाई को खनन माफिया ने डंपर से कुचलकर डीएसपी सुरेंद्र सिंह (DSP Surendra Singh) को मार डाला. इस घटना ने अरावली की पहाड़ी में चल रहे अवैध खनन (Aravali Illegal Mining) के खेल को सामने लाया है. अरावली की पहाड़ियां हिमालय से भी पुरानी हैं. लेकिन कंस्ट्रक्शन सेक्टर की डिमांड को पूरा करने और मुनाफा कमाने के लिए यहां सालों से माफिया राज चल रहा है. पहाड़ों से अवैध तरीके से पत्थर की कटाई जारी है. इंडिया टुडे ने इसे लेकर एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट की. इस रिपोर्ट में पता लगाने की कोशिश की गई कि कैसे ये माफिया नेटवर्क ऑपरेट हो रहा है.
अवैध खनन के चलते अरावली में अब सिर्फ कई पहाड़ियों के अवशेष ही बचे हैं. SAVE अरावली ट्रस्ट के संस्थापक का दावा है कि हरियाणा और राजस्थान के बीच 30 से ज्यादा अरावली पहाड़ की चोटियां गायब हो चुकी हैं. माफियाओं का ये खेल कैसे चल रहा है इसे जानने के लिए इंडिया टुडे ने नूंह में अवैध खनन से जुड़े हाकमीन और समर से बात की. दोनों ने पहचान छिपाने की शर्त पर बात की है, इसीलिए उनके नाम भी यहां बदले हुए ही हैं.
पहाड़ियां कैसे तोड़ते हैं?अवैध खनन के लिए एक रात का चार्ज तक प्रशासन के लोग तय करते हैं. हाकमीन और समर ने बताया कि, रात भर एक रात का चार्ज पांच हजार से 10 हजार तक होता है. अवैध खनन में पहाड़ से पत्थर निकालने के लिए उनमें डायनामाइट लगाकर विस्फोट किया जाता है. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया,
'रॉक माइनिंग में इस्तेमाल होने वाले डायनामाइट को बनाने का सामान पड़ोसी राजस्थान से मंगवाते हैं. फिर डायनामाइट को पहाड़ी की दरारों में रखकर विस्फोट करते हैं. विस्फोट में एक बार में 10 डंपर तक पत्थर निकलता है. विस्फोट रात को ही किए जाते हैं. खनन के दौरान पुलिस पर नजर रखने के लिए खुदाई करने वाली भारी मशीनों और बुलडोजर का सहारा लेते हैं. वहीं पुलिस गश्ती करे तो ये अलर्ट कर देते हैं.'
खनन माफिया माल को ट्रक में भरकर ले जाते समय भी बहुत सावधानी बरतते हैं. अवैध खनन के ट्रकों के लिए नाकों पर पुलिसवालों का रेट फिक्स किया जाता है. प्रशासन से सांठगांठ का काम ट्रक मालिकों का होता है. इसे लेकर समर ने बताया,
'असंगठित है अरावली में माफिया'‘ट्रकों में माल भरने के लिए दो से चार आदमी रहते हैं, जेसीबी भी मदद के लिए रहती है. ट्रकों के मालिक भी मौके पर ही रहते हैं ताकि ट्रक ड्राइवर कहीं भाग न जाएं. वहीं पुलिस पर नजर रखने के लिए पूरे रास्ते में जगह-जगह लोग रहते हैं, जो पुलिस की हर गतिविधि की जानकारी देते रहते हैं. कुछ भी अगर खतरा हो तो वे हमें अलर्ट कर देते हैं. अवैध खनन करके पत्थर भी ओवरलोड होकर जाते हैं. हर ट्रक की एक खास पर्ची चलती है, जिसे सिस्टम में सभी पहचानते हैं.’
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक डीएसपी सुरेंद्र सिंह की हत्या नूंह में ऐसी पहली घटना नहीं है. वहीं SP वरुण सिंगला ने बताया कि दिसंबर 2021 में जब वो गश्त कर रहे थे, तब उनपर भी हमला किया गया था. उन्होंने बताया,
'दिसंबर में मेरे ऊपर भी हमला किया गया था. कुल 12 ट्रक थे, लेकिन एक ट्रक ने भागने की कोशिश की और हमारी गाड़ी को टक्कर मार दी. सौभाग्य से हम बच गए. अरावली में माफिया संगठित नहीं है. प्रशासन भी ये जानता है. देश भर में खनन माफियाओं से पुलिस प्रशासन की भिड़ंत होती रहती है.'
इंडिया टुडे की रिपोर्ट में ये भी पता लगा कि नूंह जिले के सहसौला गांव में अवैध खनन से निकाले गए पत्थरों को ‘ग्रे मार्केट’ से आसानी से खरीदा जा सकता है. गांव में ही सड़क किनारे दुकान चलाने वाले असिन से इंडिया डुटे ने बात की. असिन ने बताया,
'एक डंपर करीब 11-12 हजार रुपये का पड़ेगा. मैं तो यहां दुकान पर रहता हूं. मेरा एक भांजा है, वह पहाड़ भी तोड़ रहा है. वो 4 से 5 हजार रुपया अपना लेता है. वो गाड़ी को भर कर देगा फिर यहां से निकलेगा तो 500-1000 रुपया गेट वाला लेगा. बाकी पुलिस वगैरह गाड़ी मालिक देख लेगा. यहां से हमारा गाड़ी भरकर देने का काम है. आगे उसका काम है. पत्थर कैसे निकलेगा, कैसे नहीं निकालेगा, क्या बचाएगा, उसमें क्या नहीं बचाएगा.'
केंद्र सरकार ने पहली बार 1995 में अरावली में खनन और कंस्ट्रक्शन पर रोक लगाई थी. इसके बाद 2002, 2005, 2009 और 2018 में खनन पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेश दिए. लेकिन इंडिया टुडे की रिपोर्ट में पता लगा कि खनन प्रशासन की मिलीभगत से खुले में चल रहा है.
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