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पुलिस ने वकीलों को बेरहमी से पीटा था, हाई कोर्ट ने 'सम्मान' में 1 रुपया देने का आदेश दिया

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसे 'टोकन ऑफ रिस्पेक्ट' कहा है. एक तरह की 'सम्मान राशि'. मामला 20 साल पुराना है, जिसमें विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसवालों ने वकीलों के साथ मारपीट की थी.

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One Rupee Compensation
20 साल पुराने मामले को पहले बंद करने वाला था कोर्ट. (सांकेतिक फोटो- इंडिया टुडे)
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श्वेता सिंह
3 अप्रैल 2024 (Updated: 3 अप्रैल 2024, 18:34 IST)
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इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High court) का हाल ही में दिया एक आदेश चर्चा में है. इसमें कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वो एक वरिष्ठ वकील को 1 रुपये का मुआवजा दें (1 Rupee Compensation). कोर्ट ने इसे 'टोकन ऑफ रिस्पेक्ट' कहा है. एक तरह की 'सम्मान राशि'. मामला 20 साल पुराना है, जिसमें विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसवालों ने वकीलों के साथ मारपीट की थी.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2004 में कुछ वकील शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. इस दौरान पुलिस ने वकीलों की पिटाई कर दी थी. इससे कुछ प्रदर्शनकारी वकील घायल हो गए थे. इसी के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक निगम ने साल 2007 में याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने मुआवजे के साथ-साथ आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की थी. रिपोर्ट के मुताबिक, इस घटना में खुद डॉ. अशोक निगम भी घायल हो गए थे.

इससे पहले 20 मार्च 2024 को इस मसले पर सुनवाई हुई थी. तब हाई कोर्ट के जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने मामले को 'काफी पुराना' बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता से पूछा था, "आप कितने मुआवजे की उम्मीद कर रहे हैं?"

इसके जवाब में डॉ. निगम ने कहा था, "हम कोर्ट की ओर से निर्धारित किए गए किसी भी मुआवजे को स्वीकार करेंगे क्योंकि हमारी लड़ाई ‘वकीलों के सम्मान के लिए है."

इसके बाद कोर्ट के दिए आदेश में कहा गया,

"वरिष्ठ अधिवक्ता और याचिकाकर्ता डॉ. अशोक निगम के सम्मान को देखते हुए, हम प्रतिवादियों को 'टोकन ऑफ रिस्पेक्ट' के तौर पर याचिकाकर्ता को मुआवजे के रूप में 1/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश देते हैं."

ये भी पढ़ें- 19 साल पहले हुए फेक एनकाउंटर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार पर लगाया 7 लाख का जुर्माना

आपको बता दें कि इस केस में पुलिस की कार्रवाई की जांच के लिए रिटायर्ड जज की अध्यक्षता वाले आयोग का गठन किया गया था. आयोग ने पहले इस मामले को बंद करने की सिफारिश की थी. उनका कहना था कि समय के साथ चीजें शांत हो गई हैं. हालांकि, साल 2020 में कोर्ट ने कहा था कि क्योंकि इस केस में शांतिपूर्ण आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा वकीलों की बेरहमी से पिटाई का आरोप शामिल है, इसलिए इस मुद्दे को आयोग के सुझाए गए तरीके से बंद नहीं किया जा सकता है.

कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया था कि पुलिसकर्मियों की बेरहम कार्रवाई के परिणामस्वरूप कई अधिवक्ताओं को गंभीर चोटें आई थीं. कुछ को फ्रैक्चर भी हुए. हालांकि, पिछले महीने ही डॉ. निगम की सहमति के बाद कोर्ट ने ये केस बंद कर दिया है.

वीडियो: 112 एनकाउंटर करने वाले पुलिसवाले को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा क्यों दी?

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