44 मेडल जीतने वाली एथलीट, गरीबी के चलते बेच रही है अपने मेडल्स
गुजरात के पाटन की एथलीट हैं काजल परमार, स्टेट और नेशनल पर खेलने के बाद है ये हाल.
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फोटो - thelallantop
लेकिन अब घर की हालत बहुत खराब हो चुकी है. इसलिए काजल ने तय किया कि वो अपने सारे मेडल्स और सर्टिफिकेट बेच देगी. हो सकता है इससे उसके परिवार की कुछ मदद हो जाए.काजल आगे भी स्पोर्ट्स में अपना करियर बनाना चाहती थी. लेकिन परिवार की वजह से उसे अपने फ्यूचर का सपना छोड़ना पड़ गया. इसके साथ ही अपने जीते हुए मेडल्स भी बेचने पड़ रहे हैं. काजल का कहना है उसने सरकार को कई बार चिट्ठियां लिखी. कई अर्जियां दिन. लेकिन ना कोई जवाब आया. ना ही कोई मदद मिली. काजल के अलावा और भी ऐसे बहुत सारे खिलाड़ी हैं. जिनको गरीबी की वजह से अपना स्पोर्ट्स करियर छोड़ना पड़ा. ना उनको गवर्नमेंट से मदद मिली ना खेल बोर्ड से. 2006 के दोहा एशियाड खेलों में शांति सुंदराजन ने सिल्वर मेडल जीता था. लेकिन उसके बाद वो जेंडर टेस्ट में फ़ेल हो गयी थीं. उनपर बैन लग गया. उसके बाद वो कभी किसी रेस में दौड़ नहीं पायीं. अब वो एक ईंट के भट्टे में काम करती हैं. उनके पापा-मम्मी भी उसी भट्टे में मजदूर हैं. पहले वो कोचिंग में बच्चों को एथलेटिक्स सिखाती थीं. वहां उनको महीने में 5 हजार रुपए सैलरी मिलती थी. उन्होंने डीएम से चपरासी की नौकरी देने की भी मांग की. लेकिन उनको नौकरी नहीं मिली. इस वजह से अब उनके पूरे परिवार को 200 पर-डे के हिसाब से ईंट की भट्टी में मजदूरी करनी पड़ रही है.

