मध्यप्रदेश के मंदसौर का पशुपतिनाथ महादेव मंदिर. यहां शिव की एक प्रतिमा स्थापित की जा रही है. जो प्रतिमा स्थापित होनी है, उसकी लंबाई 6.5 फीट और वजन डेढ़ टन बताया गया है. इसके लिए बक़ायदा क्रेन की मदद ली जानी थी. शिवलिंग को एक जलाधारी में सेट करना था. जलाधारी मतलब, एक शिवलिंग को जिस बेस पर रखा जाता है.
प्रशासन की ओर से पीडब्ल्यूडी, पीएचई, ज़िला पंचायत समेत सभी विभागों के इंजीनियर्स को बुलाया गया था, लेकिन कोई नहीं बता पाया कि इस शिवलिंग को जलाधारी पर उतारा कैसे जाए. फिर मकबूल हुसैन अंसारी नाम के एक मिस्त्री ने शिवलिंग को सही तरह से स्थापित करने की तरकीब सुझाई.
कैसे स्थापित हुआ शिवलिंग?
आजतक से जुड़े आकाश चौहान की रिपोर्ट के मुताबिक़, जब इंजीनियर्स के आइडिया फेल हो गए तो अंसारी ने अधिकारियों से कहा कि अगर बर्फ के ऊपर शिवलिंग को रखा जाए, तो बर्फ पिघलने के साथ ही धीरे-धीरे शिवलिंग जलाधारी के अंदर चला जाएगा.
इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे इंजीनियर दिलीप जोशी ने बताया कि इस शिवलिंग को स्थापित करने में सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि चारों तरफ खंभे थे और इस वजह से क्रेन अंदर नहीं जा पा रही थी. रोलर पाइप की मदद से किसी तरह जलाधारी को तो निर्धारित जगह रख दिया गया, लेकिन शिवलिंग के सिलेंड्रिकल आकार की वजह से उसे सेट करने में बहुत परेशानी आ रही थी. फिर नीचे से बेल्ट लगाकर इसे सेंटर में लाने का प्रयास किया गए.
दिलीप जोशी के मुताबिक, सफलता फिर भी नहीं मिली. तब वहां काम कर रहे मिस्त्री मकबूल हुसैन अंसारी ने अधिकारियों को सुझाया कि बर्फ़ का इस्तेमाल कर सकते हैं. शिवलिंग को जलाधारी में जिस जगह स्थापित करना है, वहां अगर बर्फ़ रख दी जाए तो जलाधारी को भी कोई नुक़सान नहीं होगा और शिवलिंग भी सुरक्षित रहेगा.
'पुण्य का काम'
ऐसा ही किया गया और इसके बाद बर्फ पिघलने के साथ-साथ शिवलिंग जलाधारी में सही तरह सेट हो गया. मकबूल ने आजतक से बात करते हुए बताया कि उन्हें बहुत ख़ुशी है कि वह इस नेक काम के भागीदार बन सके. कहते हैं जब बड़े-बड़े दिग्गजों के तरीक़े फेल हो जाते हैं, तो जुगाड़ काम आ जाता है. उन्होंने कहा कि उनके लिए यह पुण्य का काम है.
मूर्ति के बारे में यह भी बताया गया कि इसे 1,500 साल पहले दशपुर के होल्कर सम्राट के काल में लाइम सैंड स्टोन से बनाया गया था. अष्टमुखी पशुपतिनाथ की मूर्ति और यह शिवलिंग शिवना नदी से मिला था.