स्कूल न जाने वाली लड़की को IIT ने ठुकराया, MIT में मिला एडमिशन
सातवीं क्लास के बाद स्कूल नहीं गई.
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फोटो - thelallantop
मालविका की मम्मी एक NGO में काम करती थीं. उन्होंने देखा था कि आठवीं, नौवीं और दसवीं क्लास के बच्चे अक्सर बहुत टेंशन में रहते हैं. इत्ती सी उम्र में ही हर वक़्त थके से रहते हैं. परेशान रहते हैं. खुश नहीं रह पाते. मालविका की मम्मी ने बताया. इसलिए उन्होंने एक फैसला लिया. मालविका को स्कूल ने निकाल लिया. उसके लिए घर पर ही पढ़ाई का प्रोग्राम तैयार किया.मम्मी ने मालविका को बहुत सारे सब्जेक्ट पढ़ाए. देखा कि उसको क्या सीखने में सबसे ज्यादा मज़ा आ रहा है. मालविका को शुरू से कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में इंटरेस्ट आने लगा. मम्मी ने देखा कि मालविका अपनी उम्र के स्कूल जाने वाले बच्चों से ज्यादा सीख रही थी. ज्यादा खुश थी. मम्मी को यकीन हो गया कि उनका तरीका उनकी बेटी के लिए फायदेमंद था.

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MIT में सेलेक्ट होने का कारण है मालविका के ओलिंपियाड मेडल. मालविका ने इंटरनेशनल ओलिंपियाड ऑफ़ इन्फॉर्मेटिक्स में तीन मेडल जीते हैं. दो सिल्वर, एक ब्रोंज. MIT वाले उन बच्चों को भी सिलेक्ट करते हैं जिन्होंने इंटरनेशनल ओलिंपियाड में मेडल जीते हों. दसवीं और बारहवीं पास होने की ज़रूरत नहीं हैं. मालविका को IIT वालों ने एडमिशन नहीं दिया था. कोई भी कॉलेज बारहवीं के सर्टिफिकेट के बिना ग्रेजुएशन में उसको एडमिशन दे ही नहीं रहा था. चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टिट्यूट ही सिर्फ ऐसा कॉलेज था जहां मालविका को एडमिशन मिला. उसका नॉलेज ग्रेजुएशन लेवल से बहुत ज्यादा था. इसलिए उसको मास्टर्स कोर्स में एडमिशन मिला.
अब MIT जाने की तैयारी में बिजी मालविका का कहना है कि डिग्री-विग्री से कुछ नहीं होता. हुनर और काम आना चाहिए इंसान को. हमारी तरफ से भी मालविका को खूब ढेर सारी बधाइयां.