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छिपकलियों, तुम मिड डे मील स्कीम को ही खा डालो

मिड डे मील में थी छिपकली. खाना खाने से 96 प्यारे बच्चे बीमार हो गए हैं. और हां, 'जांच करेंगे' वाली लाइन कह दी गई है.

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फोटो क्रेडिट: NPR मीडिया
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विकास टिनटिन
7 जून 2016 (Updated: 6 जून 2016, 04:23 AM IST) कॉमेंट्स
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जिन बच्चों को खाने में नमक कम या ज्यादा होने से फर्क नहीं पड़ता. हठ किया भी तो लंबी वाली चम्मच को लेकर. या फिर चीनी वाले परांठों को लेकर. पर ये हठ करने का हक बच्चों को घर में ही मिल पाता है. स्कूल जाने पर स्कूल की चलती है. ऊपर से सरकारी स्कूल हो और खाने के लिए मिड डे मील का सहारा हो, तो ख्वाहिशों को भगा दीजिए कहीं. क्योंकि स्कूल में स्कीम चल रही है. सरकारी स्कीम. बच्चे स्कूल आएं, सेहतमंद रहें. इसलिए शुरू की गई एक अच्छी स्कीम, जिसकी तारीफ बनती है. लेकिन तब तक, जब तक इसकी वजह से किसी बच्चे की जान न जाए. कोई बीमार न पड़े. स्कीम, जिसका कागजों में मकसद है बच्चों को न्यूट्रिशियस खाना खिलाना. ताकि हृष्ट-पुष्ट बच्चे खाना खाएं और पढ़ाई में मन लगाएं. पर अफसोस कि इस अच्छी स्कीम में हो क्या रहा है. ये जहरीले मिड डे मील की घटनाएं कब रुकेंगी?
छोटे मासूम बच्चे. स्कूल जाते हैं. स्कूल में खाना भी मिलता है. मिड डे मील स्कीम है न. लेकिन इस खाने में कई बार मिल जाती है छिपकली. जहर. सांप. नतीजा ये होता है कि बच्चे बीमार हो जाते हैं. कई बार मर भी जाते हैं. स्कूल ले जाया गया बस्ता कोई और ढो कर घर ले जाता होगा. मर चुके बच्चे का बस्ता घर में देख बच्चे की मां को कितना चुभता होगा न. पर इसपर ध्यान देने की क्या ही जरूरत है. स्कीम है, चल रही है. कुछ होगा तो जांच करेंगे न. झारखंड के जमुआ में करीब 96 बच्चों को सोमवार को मिड डे मील स्कीम की वजह से जो खाना मिला, उस खाने में छिपकली पड़ी हुई थी. खाना खाने के बाद बच्चों के पेट दर्द और उल्टी शुरू हो गईं. बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. झारखंड का मामला है. ओबी वैन आसानी से नहीं जा पाती है. और जंगलराज टैग तो बिहार के साथ चल रहा है. इसलिए न्यूज चैनल वाले 'रामवृक्ष की छांव' में बैठ इंतजार कर रहे हैं. विजुअल्स का.  या शायद बीमार पड़े बच्चों के मरने का. बच्चों के बीमार पड़ने के बाद पुलिस आई और हर बार की तरह इस बार भी वही बात बोली. 'हम मामले की जांच करेंगे.' रब्बा जाने ये कौन सी जांच है कि हर बार होती है. लेकिन फिर इस हैडिंग के साथ खबर दिख जाती है. 'मिड डे मील खाने से बच्चे बीमार.' अभी कुछ रोज पहले मथुरा में 2 बच्चों की मौत हो गई थी. इस नाशपिटे मिड डे मील को खाने से. सैकड़ों बच्चे बीमार हुए सो अलग.
मिड डे मील की वजह से बच्चों के बीमार और मरने की जो सबसे बड़ी घटना थी. वो हुई थी, बिहार के सारण में. 23 बच्चों की मौत हो गई थी. साल था जुलाई 2013. चैनल वालों ने स्कीम पर कई दिनों तक बहस की. बड़े-बड़े वादे हुए. पर वादे तो करने के लिए होते हैं. पूरे करने की परवाह ज्यादा कोई क्यों ही करे. तब से लेकर अब तक मिड डे मील स्कीम की वजह से बच्चे बीमार पड़ते जा रहे हैं. पर 'सावधानी बरती जाएगी' वाली लाइन जल्दी ही गोली हो लेती है.
फरवरी में महाराष्ट्र में 50 बच्चे बीमार हो गए थे. और भी कई खबरें हैं. मिड डे मील में छिपकली, सांप गिरने की. बच्चों के मरने और बीमार पड़ने की. भारत सरकार ने नैशनल लेवल पर मिड डे मील स्कीम को 1995 में  शुरू किया. 2011 तक 11 करोड़ बच्चों की पहुंच में ये स्कीम रही. इंडियन गवर्मेंट की स्कीम है. ताकि स्कूली बच्चों को बढ़िया खाना मुहैया कराया जाए. ये मिड डे मील स्कीनम अब नैशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट 2013 के अंतर्गत कवर की जाती है. हालांकि तमिलनाडु में स्कूली बच्चों को खाना देने का काम सालों साल पहले 1962-63 में तमिलनाडु के सीएम के कामराज ने चेन्नई से इस स्कीम की शुरुआती की थी. बाद में कई स्टेट्स ने स्कूली बच्चों को खाना मुहैया कराने का काम किया. सबकी स्कीम का नाम अलग-अलग था. मकसद एक था, स्कूली बच्चों को बढ़िया क्वालिटी का खाना खिलाना. क्वालिटी यानी जिसमें छिपकली, सांप या जहर मिला हो.

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