The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Bombay high court sets a man free after 12 years in the lack of evidence

पत्नी की हत्या के आरोप में 12 साल जेल में काटे, अब कोर्ट ने कहा, 'आप बेकसूर हैं'

महाराष्ट्र के पालघर के इस व्यक्ति को जिला अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, हाई कोर्ट ने निर्णय पलट दिया

Advertisement
Bombay high court sets a man free after 12 years
सजा काट कहे शख्स को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरी किया (सांकेतिक तस्वीर: आजतक)
pic
सुरभि गुप्ता
13 जून 2022 (Updated: 20 जून 2022, 08:38 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

पत्नी की हत्या के मामले में जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे एक शख्स को 12 साल बाद बरी कर दिया गया है. ये मामला महाराष्ट्र (Maharashtra) का है. पालघर जिले के डहाणू (Dahanu) इलाके के रहने वाले एक शख्स पर साल 2010 में अपनी पत्नी की हत्या का आरोप लगा था. पालघर जिला अदालत (palghar district court) ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अब बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) ने उस शख्स को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है.

मामला क्या था?

इंडिया टुडे की विद्या के मुताबिक लक्ष्मण भोए नाम के शख्स ने 18 अक्टूबर 2010 को पालघर के कासा थाने में डहाणू के सुरेश भगत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी. लक्ष्मण भोए ने शिकायत की थी कि एक व्यक्ति ने उन्हें सूचित किया था कि पिछली रात सुरेश भगत ने अपनी पत्नी ललिता भगत की हत्या कर दी. भोए ने कहा था कि जब वह मौके पर पहुंचे तो उन्होंने सुरेश को खून से लथपथ पड़ी पत्नी की लाश के पास बैठे देखा. पुलिस ने मौके से बांस का एक डंडा भी बरामद किया था.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक लक्ष्मण भोए का दावा था कि पूछताछ के बाद आरोपी (सुरेश) ने उन्हें बताया था कि जब वह घर लौटा और दरवाजा खटखटाया, तो उनकी पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला, जिससे वह खिड़की से घर में घुसे और पत्नी को गहरी नींद में पाया. फिर पत्नी के सिर और पीठ पर वार किया. बाद में अगली सुबह करीब छह बजे पाया कि पत्नी मर चुकी थी.

सुरेश भगत के खिलाफ कासा पुलिस स्टेशन में IPC की धारा 302 (हत्या) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. जांच पूरी होने के बाद चार्जशीट दाखिल की गई थी. लेकिन गवाह लक्ष्मण भोए ने कोर्ट के सामने आरोपी द्वारा किए खुलासे के बारे में बयान नहीं दिया. इसलिए गवाह को होस्टाइल घोषित किया गया.

सजा काट रहे शख्स को बरी क्यों किया गया?

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुरेश भगत को इसीलिए बरी कर दिया क्योंकि जिस गवाह के मुताबिक उन्होंने पत्नी की हत्या करने को लेकर अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति (extra judicial confession) की थी, वह मुकर गया था. एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल कन्फेशन वो इकबालिया बयान होते हैं, जो आरोपी ने मजिस्ट्रेट या कोर्ट की बजाए कहीं और दिए हों. इस मामले में जस्टिस साधना एस. जाधव और जस्टिस मिलिंद एन. जाधव ने कहा,

जहां तक ​​अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति का सवाल है, इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि जिस व्यक्ति के सामने कथित तौर पर यह स्वीकारोक्ति की गई थी, वह अपने पहले वाले बयान से ही मुकर गया और अभियोजन पक्ष ने उसे पक्षद्रोही गवाह (hostile witness) घोषित कर दिया.

अदालत ने कहा कि न तो कानून के मुताबिक कुछ भी साबित होता है और न ही यह माना जा सकता है कि बरामद की गई बांस की छड़ी का इस्तेमाल सुरेश भगत की मृत पत्नी पर हमला करने के लिए किया गया था. अदालत ने कहा कि इस तथ्य को छोड़कर कि मृतका का शव आरोपी के घर में पाया गया था, कोई और सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी सुरेश ने अपनी पत्नी को चोट पहुंचाई थी.

इस तरह मौजूदा मामले में यह माना गया कि अभियुक्त को एक पक्षद्रोही गवाह द्वारा कथित तौर पर दिए गए बयान के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता और बरी कर दिया गया.

वीडियो- तारीख़: जब मालेगांव ब्लास्ट के 13 साल बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, ‘इतना कंफ्यूजन क्यूं?’

Advertisement