भूपेन हजारिका. संगीत की दुनिया का नायाब हीरा. भूपेन हजारिका असम के रहने वाले थे. पिछले महीने ही उन्हें भारत रत्न से नवाजने का ऐलान हुआ था. लेकिन भूपेन दा के बेटे तेज हजारिका ने भारत रत्न सम्मान लेने से इनकार कर दिया है. जब इस सम्मान की घोषणा की गई तब हर किसी ने स्वागत किया था. राजनीतिक पंडितों ने कहा था कि मोदी सरकार एक तीर से दो निशाने साध रही है. भूपेन दा इस सम्मान हकदार हमेशा से थे. लेकिन इस समय भारत रत्न देकर सरकार, असम समेत पूरे नॉर्थ-ईस्ट में नागरिकता संशोधन बिल, 2016 के विरोध को कम करना चाह रही है. लगता है सब सही नहीं जा रहा. सम्मान स्वीकार ना करने के पीछे भूपेन दा के बेटे ने यही कारण बताया. तेज ने कहा कि उनके पिता के नाम और काम का इस्तेमाल इस अनपॉपुलर बिल की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. ये बिल उनके पिता के नागरिकता के मुद्दे पर रहे स्टैंड से अलग है. तेज ने कहा कि भूपेन दा के चाहने वालों में बहुत सारे लोग नॉर्थ-ईस्ट से हैं. वे कभी भी ऐसे बिल को सपोर्ट नहीं करते जो यहां रहने वाले ज्यादातर लोगों की मर्जी और हितों के खिलाफ हो. तेज ने यहां तक कह दिया कि जिस तरह ये बिल लाया जा रहा है वो तरीका असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और गैरभारतीय है.

लेकिन ये विरोध सिर्फ भूपेन दा के बेटे ने ही किया है. उनके बाकी परिवारजनों का कहना है कि भूपेन दा को ये सम्मान मिलना चाहिए. भूपेन दा के भाई समर हजारिका ने कहा कि भारत रत्न लेने से मना करना तेज का फैसला है. मेरा नहीं. मुझे लगता है कि उन्हें ये सम्मान मिलना चाहिए.
Samar Hazarika, late Singer composer #BhupenHazarika‘s brother on reports that #BhupenHazarika‘s son Tej has refused to accept Bharat Ratan for Bhupen Hazarika: It is his decision, not mine. Anyway, I think he (Bhupen) should get it. It is already too late. pic.twitter.com/3YW1ikldsb
— ANI (@ANI) February 11, 2019
भूपेन दा के भतीजे ऋषि राज सरमा ने कहा कि “हम ये सम्मान स्वीकारने या नकारने वाले कोई नहीं होते. भूपेन दा असम ही नहीं पूरे हिंदुस्तान के धरती पुत्र थे. अगर भूपेन दा को जीते जी ये सम्मान मिलता तो उन्हें बहुत खुशी होती.” ऋषि ने ये भी कहा कि हम नागरिकता बिल का विरोध कर रहे हैं लेकिन इस सम्मान को उससे नहीं जोड़ा जाना चाहिए. लेकिन अगर इसका इस्तेमाल नागरिकता बिल की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए किया जा रहा है तो परिवार के साथ-साथ पूरे असम की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी.
आखिर क्या है ये नागरिकता बिल जिसका इतना विरोध हो रहा है
नागरिकता संशोधन बिल 2016. इस बिल के एक प्रावधान को लेकर बवाल कट रहा है. इस बिल के पारित हो जाने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश या फिर पाकिस्तान के Minorities यानी कि इन देशों के अल्पसंख्यक बिना किसी Legal Document के भारत में रहने के हकदार हो जाएंगे. यानी वो भारत के नागरिक हो जाएंगे. पहले ऐसा होने के लिए उन्हें भारत में 12 साल शरणार्थी के तौर पर गुज़ारना होता था, लेकिन अब नए बिल के मुताबिक वो बस 7 साल में ही इसके लिए एलिजिबल हो जाएंगे. एक दम आसान भाषा में कहें तो सरकार इस बिल के ज़रिए ‘अवैध प्रवासियों’ की परिभाषा बदलने की तैयारी कर रही है.

कौन हैं ये माइनॉरिटीज़?
इसका जवाब है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और आफगानिस्तान में मुस्लिम तो नहीं ही होंगे माइनॉरिटीज़. तो इस बिल का लाभ हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोग उठाएंगे. 4 जनवरी को असम के सिलचर की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बिल को पास कराने की बात की थी. यानी कि इस फैसले से वोटों की ज़बरदस्त खुशबू आ रही है, क्योंकि असम में ऐसे लोगों की अच्छी खासी जमात है, जो बांग्लादेश से आए और धर्म से हिंदू हैं. अब उन्हें भारत में रहने का संवैधानिक हक मिल जाएगा.
इसे सपोर्ट करने वाले लोग भी हैं. असम की बराक घाटी के काफी लोग इसके सपोर्ट में हैं. यहां बड़ी संख्या में बंगाली हिंदू रहते हैं, जो माइग्रेट होकर आए हैं. इस बिल के बाद उन्हें भारत की नागरिकता आसानी से मिल जाएगी.
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