Zomato का '10 मिनट में फूड डिलिवरी' वाला ऑफर ट्राई करने से पहले ये पढ़ लो!
इस ऑफर के पीछे Zomato का बिजनेस मॉडल क्या है?
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जोमैटो की सांकेतिक तस्वीर (साभार आजतक)
लेकिन इस रेस में जोमैटो अकेली कंपनी नहीं है. इंस्टैंट डिलिवरी के बैनर तले काम करने वाले तमाम ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म जैसे ब्लिंकिट (Blinkit), जेप्टो (Zepto), बिग बास्केट (BigBasket), मिल्क बास्केट (MilkBasket) अपने प्रमोशनल जुमलों में चंद मिनटों में डिलिवरी की बात करते रहे हैं. लेकिन जोमैटो के इस रेस में आगे होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते साल जुलाई में आईपीओ लॉन्च करने से पहले ही उसने डिलिवरी फर्म ब्लिंकिट पर डोरे डालने शुरू कर दिए थे. तब जोमैटो ने इसमें 10 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी और अब पूरी कंपनी को ही अपने में मिला लिया है.
क्या वाकई 10 मिनट में होगी डिलिवरी?
यहां से शुरू होता है 'जोमैटो इंस्टैंट' का नया बिजनेस मॉडल, जो उड़ान भरते ही सोशल मीडिया की हवा के थपेड़ों से घिर गया. मंगलवार 22 मार्च को सोशल मीडिया से लेकर संसद तक में इस सर्विस पर जमकर हमले हुए. किसी ने इम्पॉसिबल कहा तो किसी ने रोड सेफ्टी और डिलिवरी बॉयज की सुरक्षा के नाम पर कंपनी की खिंचाई की. विरोध बढ़ता देख जोमैटो के हेड दीपेंद्र गोयल को सफाई देनी पड़ी. उन्होंने कहा कि यह सर्विस कुछ चुनिंदा इलाकों में ही गिने-चुने आइटमों की डिलिवरी के लिए है और डिलिवरी बॉयज पर दस मिनट के भीतर ही डिलिवर करने का दबाव नहीं होगा.मामले को तूल पकड़ता देख कंपनी की ओर से यह समझाने की कोशिश भी की गई कि 10 मिनट का मतलब सुई की नोंक पर दौड़ना नहीं, बल्कि जल्द से जल्द डिलिवर करना होगा. यानी यह सर्विस जोमैटो को '30 मिनट में डिलिवरी' के दौर से निकालकर नई तकनीक और जरूरतों से जोड़ने का नया प्लान है. हालांकि इसे कंपनी के गिरते शेयरों के बीच कुछ मार्केट वैल्यू हासिल करने की जुगत के तौर पर भी देखा जा रहा है.
दीपेंद्र गोयल ने बाद में ब्लॉग पर लिखा-
''हमें इनोवेशन करना है. मुझे लगने लगा था कि 30 मिनट में डिलिवरी का औसत समय बहुत स्लो है. यह जल्द ही चलन से बाहर हो जाएगा या हमें ही बाहर कर देगा. टेक इंडस्ट्री में बने रहने का सिर्फ एक ही तरीका है इनोवेशन करना और आगे बढ़ना. इसलिए हम 10 मिनट में फूड डिलिवरी के ऑफर 'जोमैटो इंस्टैंट' के साथ आए हैं."दीपेंद्र ने यह सफाई भी दी कि 10 मिनट में डिलिवरी की सर्विस 30 मिनट डिलिवरी की तरह ही सेफ रहेगी. सभी डिलिवरी बॉयज को रोड सेफ्टी ट्रेनिंग और लाइफ इंश्योरेंस दिया जाएगा. डिलिवरी वर्कर्स पर किसी तरह का प्रेशर नहीं होगा. न देरी के लिए कोई जुर्माना लगाया जाएगा और न ही जल्द डिलिवरी के लिए कोई इंसेंटिव दिया जाएगा.

सांकेतिक तस्वीर
क्या है बिजनेस मॉडल? जोमैटो की 10 मिनट में डिलिवरी के ऑफर के पीछे बेसिक मॉडल यह है कि जिन इलाकों से सबसे ज्यादा डिमांड आती है, वहां कुछ हाइपरलोकल वेयरहाउस बनाए जाएंगे. कंपनी इन सेंटर्स को फिनिशिंग स्टेशन कहती है. यहां नई तकनीक के साथ डिमांड प्रिडिक्शन एल्गोरिदम और रोबोटिक्स की भी मदद ली जाएगी. यानी ऑर्डर मैनेज करने से लेकर डिलिवरी तक में तकनीक बड़ा रोल अदा करेगी. फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर गुरुग्राम में 4 फिनिशिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं. ये स्टेशन बहुत हद तक ग्रॉसरी ईटेलर्स के डार्क स्टोर की तरह ही हैं, जो हर लोकैलिटी में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बने होते हैं. मकसद इंस्टैंट डिलिवरी ही होता है.
जो चीज जोमैटो के दावे को बल देती है, वो यह है कि उसने इस बिजनेस मॉडल के पीछे अच्छी प्लानिंग के साथ बड़ा निवेश भी किया है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस Blinkit का जोमैटो में विलय होने जा रहा है, उसके पास पहले से करीब 300 डार्कस्टोर हैं और वह पूरे देश में जल्द ही इस तरह के 1000 डार्कस्टोर बनाने वाली थी. ऐसे में जोमैटो अगर इंस्टैंट सर्विस का दायरा गुरुग्राम से निकालकर पूरे देश में फैलाता है तो ये डार्कस्टोर ही उसके लिए फिनिशिंग स्टेशन का काम करेंगे.
कंपनी का दावा है कि बदलते वक्त के साथ लोगों की जरूरतें और चॉइस भी बदल रही है. लोगों के पास रेस्टोरेंट का चयन करने या बेस्ट फूड कॉम्बो तय करने तक का वक्त नहीं है. ऐसे में डिजिटल प्लैटफॉर्म पर जितना कुछ जल्द से जल्द उनके सामने होगा, वो उसका लाभ उठाएंगे.
जोमैटो ने साफ कर दिया है कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कंपनी फिलहाल 25-30 आइटम ही इंस्टैंट सर्विस के तहत लाएगी. इनमें पोहा, बिरयानी, मोमोज, चाय, कॉफी, ऑमलेट और कई स्नैक्स शामिल होंगे. जोमैटो का दावा है कि इस मॉडल से ग्राहकों के लिए कीमतें घट जाएंगी, जबकि रेस्टोरेंट पार्टनर और डिलिवरी वर्कर्स की इनकम पर कोई असर नहीं होगा.
लेकिन जानकारों का कहना है कि यह मुमकिन नहीं है. उनके मुताबिक हो सकता है कि कंपनी शुरू में भारी निवेश के दम पर रियायतें दे, लेकिन इसे जारी रखना या किसी एक एंड पर प्राइसिंग में कमी ला पाना व्यावहारिक नहीं लगता. यह वैसा ही होगा, जब फ्लिपकार्ट और ऐमजॉन ने शुरू में भारी घाटा सहते हुए ग्राहकों को बंपर डिस्काउंट देने शुरू किए और आगे चलकर धीरे-धीरे इन डिस्काउंट्स का दायरा सिमटता गया. बैक फुट पर कैसे आई कंपनी? मंगलवार को जैसे ही 10 मिनट डिलिवरी सर्विस 'जोमैटो इंस्टैंट' सुर्खियों में आई, सोशल मीडिया में आम आदमी से लेकर कई सिलेब्रिटीज ने कंपनी को आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया. ऐक्टर और लेखक सुहेल सेठ ने ट्विटर पर लिखा,
यह ऑफर खतरनाक और गैरजरूरी है. इससे डिलिवरी बॉयज और सड़क पर चलने वाले लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है. इसे टाला जा सकता है. कोई मूर्ख ही होगा, जो दस मिनट पहले ही डिसाइड करेगा कि उसे क्या खाना है. फिर जान पर खेलकर डिलिवरी करवाने की क्या वजह है?कांग्रेस के सांसद कार्ति चिदंबरम ने तो यह मुद्दा संसद में उछाल दिया. डिलिवरी बॉयज की सुरक्षा को गंभीर चिंता बताते हुए कार्ति ने कहा कि ऐक्सिडेंट होने पर कंपनियां इन राइडर्स को न तो कोई बड़ी आर्थिक मदद देती हैं और न ही इंश्योरेंस कंपनियों से कोई मुआवजा मिल पाता है. कार्ति ने जोमैटो कर्मचारी सलिल त्रिपाठी की डिलिवरी के दौरान हुई मौत का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने सरकार से डिलिवरी कंपनियों को रेग्युलेट करने की मांग की है. कहा कि बेवजह डिलिवरी टाइम 10 मिनट रखकर लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है.
वहीं राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी कंपनी को आड़े हाथ लिया. उन्होंने कहा कि इंस्टैंट डिलिवरी का दबाव खतरनाक हो सकता है.
''मुझे यकीन है कि किसी को भी फूड डिलिवरी के लिए 30 मिनट का इंतजार करने में कोई समस्या नहीं होगी. वैसे भी, अगर इस टाइम में खाना डिलिवर नहीं हुआ तो दुनिया खत्म नहीं होने वाली. 10 मिनट की डिलिवरी से लोग खुश नहीं होंगे.''

डिलिवरी राइडर्स की सांकेतिक तस्वीर (साभार आजतक)
क्या कहते हैं डिलिवरी बॉय? जोमैटो की खिंचाई के बीच हमदर्दी के केंद्र में आए डिलिवरी बॉयज या राइडर्स की मानें तो कोई भी सर्विस औसतन 10 मिनट में डिलिवरी नहीं दे सकती. ऑनलाइन बैकएंड का काम बाहर के जमीनी हालात से बिल्कुल अलग होता है. बाहर कुछ भी निश्चित नहीं होता. नोएडा सेक्टर 12 में जोमैटो के एक डिलिवरी वर्कर ने बताया-
'अगर 2 किलोमीटर भी जाना हो और दूरी 10 मिनट में तय हो सकती हो, तब भी यह कहना मुश्किल है कि समय पर पहुंचा जा सकेगा. ट्रैफिक जाम, बारिश, गली-मुहल्लों में भीड़, बहुत कुछ है जो हमारे हाथ में नहीं होता.'राइडर्स का यह भी कहना है कि नौकरी अस्थायी और कॉन्ट्रैक्चुअल होने के चलते वे भी काम और कंपनी के प्रति बहुत समर्पित नहीं रह पाते. वो उतना ही करते हैं, जहां तक करने का दबाव होता है. दूसरी तरफ कंपनियां भी उनकी चिंता नहीं करतीं. यहां तक कि बाइक्स भी राइडर्स की खुद की होती हैं. उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा या बीमा हासिल नहीं होता. ऐक्सिडेंट के बाद कंपनियां ही उन्हें वापस काम पर नहीं रखतीं. दिल्ली जैसे शहर में आमतौर पर डिलिवरी बॉयज को 12 घंटे की ड्यूटी के लिए महीने के 12 से 15 हजार रुपये मिलते हैं. सामान खोने या नुकसान होने पर उनकी सैलरी काटकर भी भरपाई की जाती है.
एक बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी के लिए डिलिवरी करने वाले संतोष गुप्ता ने हमें बताया,
'चाय, कॉफी, नाश्ता या छोटी वैल्यू वाले सामान की इंस्टैंट डिलिवरी कभी भी कंपनी और ग्राहकों दोनों के लिए फायदेमंद नहीं हो सकती. एकाध घंटे में डिलिवरी के लिए भी हम लोग एक साथ तीन-चार सामान लेकर निकलते हैं और सबको डिलिवर करते हुए लौटते हैं. लेकिन दस मिनट के मामले में एक आदमी एक ही ऑर्डर डिलिवर कर सकता है.''लेकिन दूसरी ओर जोमैटो का दावा है कि प्रिडिक्शन एल्गोरिदम और रोबोटिक्स की मदद से उसका बहुत सा इनडोर काम ऑटोमेटेड होगा और टाइम मैनेजमेंट के दम पर फास्ट और बेहतर सेवाएं दी जा सकेंगी. कंपनी के हेड दीपेंद्र गोयल ने आलोचकों के जवाब में यह दावा भी किया कि उनकी कंपनी अपने हर डिलिवरी बॉय की हेल्थ का पूरा ख्याल रखती है और उन्हें हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस कराने के बाद ही फील्ड में उतारा जाता है.