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देश को आबाद करेगा या बर्बाद करेगा GST?

आओ समझ लेयो, GST के बारे में सब कुछ. बहुत सरल तरीके से.

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कुलदीप
4 अगस्त 2016 (Updated: 4 अगस्त 2016, 09:25 AM IST) कॉमेंट्स
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यूपीए के दौर में जो काम एनडीए नहीं कर पाई, वो काम एनडीए के दौर में कांग्रेस कर बैठी है. काम है विपक्ष में रहकर GST बिल का समर्थन. गुरुवार शाम कांग्रेस के समर्थन के बाद राज्यसभा में GST बिल पास हो गया है. GST होना चाहिए, इससे सब ऑलरेडी सहमत हैं.  लेकिन इससे क्या सच्ची में फायदा होगा?

सब जानते हैं GST की फुल फॉर्म. गुड्स एंड सर्विस टैक्स. लेकिन इसके आगे क्या? ये बिल पास हो गया है, तो आम आदमी की लाइफ क्या वाकई आसान हो जाएगी?

आओ समझ लेयो, GST के बारे में सब कुछ. बहुत सरल तरीके से.

सारे टैक्स को मिलाकर उनका शेक बना दिया

फुल फॉर्म है, गुड्स एंड सर्विस टैक्स. अभी आप सामान और सेवाओं की एवज में केंद्र और राज्य सरकारों को अलग-अलग टैक्स चुकाते हैं बहुत सारे.
दिल्ली से आगरा जाते हो आप? यमुना एक्सप्रेसवे से? रास्ते में कितनी जगह टोल टैक्स देना पड़ता है? हमारे अंकलजी फ्रस्ट हो जाते हैं. कहते हैं कि सारा टोल एक साथ ले लेना चाहिए, एक्सप्रेसवे पर चढ़ते या उतरते वक्त. बार-बार गाड़ी रोको, लाइन में खड़े होओ. टोल भरो.
ऐसा ही टैक्स के साथ होता है. आप जो सामान/सेवा लेते हो, उसमें केंद्र और प्रदेश सरकार अलग-अलग टैक्स लेती है. इसीलिए हर स्टेट में पेट्रोल-डीजल, दवा-दारू के दाम अलग हैं. आप खाना 1000 रुपये का खाते हो, 1300 का बिल भरते हो. सर्विस टैक्स अलग, स्टेट का वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) अलग.  छोटे-छोटे कितने सारे टैक्स होते हैं कि आम आदमी तो हिसाब भी नहीं लगा पाता. है ना? एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स देते हैं, जो केंद्र सरकार की जेब में जाता है. इसके अलावा वैट, एंटरटेनमेंट टैक्स, लक्जरी टैक्स, लॉटरी टैक्स, एंट्री टैक्स और चुंगी चुकाते हैं, जो जाती है प्रदेश सरकार के खाते में. लेकिन सरकार चाहती है कि ये सात-भांत के टैक्स दफा करके एक ही टैक्स लगाया जाए. इसी टैक्स को GST कहा जाएगा.
सारे टैक्स को शीशी में डालकर मिला दो. एक इकला टैक्स होगा. कश्मीर जाओ या केरल, पूरे देश में वही लागू होगा. ये टैक्स लागू होगा तीन मद में. बनाने, बेचने और कंज्यूम करने में. नोएडा वालों को दिल्ली या हरियाणा से गाड़ी खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दुनिया के कई विकसित देशों में टैक्स का लगभग ऐसा ही इंतजाम है. हालांकि कुछ चीज़ों को GST के बाहर रखा गया है. जैसे, शराब, पेट्रोलियम और तम्बाकू.
दावा है कि इससे टैक्स सिस्टम आसान होगा और बाजार के पट और खुल जाएंगे. कंपनियों-कारोबारियों को कदम-कदम पर टैक्स नहीं देना पड़ेगा. लालफीताशाही कम होगी.

लेकिन GST की कमाई किसके खाते में जाएगी, केंद्र के या राज्य के?

पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, रसोई गैस पर अलग-अलग राज्य में जो टैक्स लगते हैं, वो अभी कुछ साल तक जारी रहेंगे. वरना GST से तो राज्यों का बड़ा नुकसान हो जाता. क्योंकि बहुत सारे राज्यों के रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा डीजल-पेट्रोल पर टैक्स से ही आता है. जाहिर है, GST से राज्यों की आमदनी कम होने का खतरा है. इसीलिए केंद्र सरकार को बड़ी मेहनत करनी पड़ रही है उन्हें मनाने में. GST की कमाई का बंटवारा केंद्र और राज्य के बीच कैसे होगा, ये अभी तय नहीं है. पर मौजूदा ड्राफ्ट के मुताबिक, राज्यों का जो नुकसान होगा उसकी भरपाई पांच साल तक केंद्र सरकार करेगी.

और सबसे जरूरी बात!

ये तो सही है कि GST से देश का टैक्स ढांचा एक झटके में बदल जाएगा. ये बदलाव पॉजिटिव होगा या नहीं, इस बारे में हम दावा नहीं कर सकते. जब केंद्र में UPA सरकार थी, तब पहली बार GST का विचार लोकसभा में आया था. अब मोदी सरकार ने उसका संशोधित रूप पेश किया है.

फिलहाल जो बिल संसद में पास किया गया है, उसमें GST के कायदे-कानून कुछ नहीं है. ये बिल सिर्फ संविधान में संशोधन के लिए है, ताकि पुरानी टैक्स व्यवस्था की जगह GST लाया जा सके. इसके बाद एक बिल और लाया जाएगा, जो बड़ा बिल होगा और उसी में सारी दर, सारे नियम तय होंगे.


अभी सरकार जो पर्चा दिखा रही है, वो सिर्फ ड्राफ्ट है. GST पर असल बहस तो संविधान संशोधन वाला बिल पास होने के बाद ही होगी. यानी अभी खेला बाकी है.

क्या इससे महंगाई कम होगी?

कह नहीं सकते. कांग्रेस की मांग है कि GST की दर अभी फिक्स कर दी जाए. 18 परसेंट पर. लेकिन ये मांग प्रैक्टिकल नहीं है. कई जानकार मानते हैं कि 18 परसेंट पर सरकार को रेवेन्यू के लेवल पर कोई फायदा नहीं होगा. और सरकार अगर टैक्स से कमाएगी नहीं तो इतने कर्मचारियों को सैलरी कैसे देगी, विकास के दूसरे काम कैसे करवाएगी, सातवां वेतन आयोग कहां से लागू कराएगी?
इसलिए सरकार अपना नुकसान तो कराने से रही. जानकार मानते हैं कि जीएसटी की दर 22-24 परसेंट तय हो सकती है. अगर ऐसा हुआ तो आपके लिए बहुत सारी चीजें सस्ती नहीं, महंगी हो जाएंगी.मिसाल के तौर पर, 1000 रुपये के मोबाइल बिल पर अभी आप 14 परसेंट सर्विस टैक्स और 0.5 परसेंट स्वच्छ भारत सेस भरते हैं. यानी टोटल 1145 रुपये. अब GST रेट 24 परसेंट हो जाए तो आपको 240 रुपये एक्स्ट्रा भरने पड़ेंगे. यानी टोटल बिल, 1240 रुपये.
अगर आप कारोबारी हो तो अभी कुछ चीजों को छोड़कर मैक्सिमम 12.5 परसेंट की एक्साइज ड्यूटी भरते हो. इसके साथ अपने स्टेट के हिसाब से वैट भी भरते हो. चुंगी-वुंगी मिलाकर कई बार पूरा टैक्स 30 परसेंट से ऊपर हो जाता है. अगर जीएसटी 22-24 परसेंट रहा, तब आपको जरूर फायदा होगा.

सच बात तो ये है कि GST काम कैसे करेगा और इकॉनमी पर इसका असल असर कैसा होगा, इसके बारे में हम अभी से दावा नहीं कर सकते हैं. जिन देशों ने जीएसटी जैसी व्यवस्था अपनाई है, उनमें से कई जगह यह शुरुआती तौर पर महंगाई लेकर आया है.


रजिस्ट्रेशन कराने में पसीने छूटेंगे

कुछ जानकार मानते हैं कि टैक्स ढांचे को हाई-फाई बनाने के बजाय यह मौजूदा टैक्स सिस्टम को ही पीछे ले जा सकता है. बानगी के लिए टैक्स रजिस्ट्रेशन को ही लें जो कि टैक्सेशन का बुनियादी पहलू है और कारोबारियों की सबसे बड़ी सांसत है. यह कानून लागू हुआ तो दर्जनों टैक्स रजिस्ट्रेशन कराने होंगे.

जीएसटी के लिए तीन तरह के टैक्स प्रपोज्ड हैं, सेंट्रल, स्टेट, इंटीग्रेटेड. इस ढांचे के तहत पूरे देश में माल बेचने या सप्लाई करने वालों को हर राज्य में तीन अलग-अलग रजिस्ट्रेशन कराने होंगे और अलग-अलग रिटर्न भरते हुए टैक्स का हिसाब रखना होगा. कोई कंपनी कई तरह के कारोबार करती है तो उसे हर कारोबार का अलग रजिस्ट्रेशन कराना होगा. साथ ही, GST की कामयाबी के लिए देश में इंटरनेट की रीच भी बहुत बढ़ानी होगी. 


GST की जान है, इनपुट टैक्स क्रेडिट. इसी के तहत प्रोडक्शन या सप्लाई के दौरान कच्चे माल या सेवा पर चुकाए गए टैक्स की वापसी होती है. यही सिस्टम एक बार-बार टैक्स का असर खत्म करती है, लेकिन इससे जुड़ा प्रावधान अनोखा है. GST एक्ट कहता है कि सप्लायर ने सरकार को टैक्स नहीं चुकाया तो उस सर्विस या कच्चे माल का इस्तेमाल करने वाला प्रोड्यूसर टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं कर सकेगा. ये प्रावधान जीएसटी से मिलने वाले फायदों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा होगा. एक्साइज और सर्विस टैक्स कानूनों की जटिलता की वजह से भारत की अदालतों में 1.20 लाख से ज्यादा मुकदमे पेंडिंग हैं. जीएसटी कानून के मौजूदा रंग-रूप से इसमें इजाफा हो सकता है.

2011 के बिल और संशोधित बिल में अंतर

1. पहले GST से राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई का इंतजाम नहीं किया गया था. अब राज्यों को 5 साल तक मुआवजा देने का प्रावधान है. 2. पहले डीजल-पेट्रोल और शराब को इस बिल से बाहर रखा गया था. तंबाकू पर टैक्स GST बिल के तहत लगेगा.. 3. संशोधित बिल में 5 साल तक एक फीसदी टैक्स लगाने की व्यवस्था है. इसका इस्तेमाल उस राज्य को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए होगा, जहां किसी चीज का प्रोडक्शन होता है. पहले वाले बिल में इसकी व्यवस्था नहीं थी. 4. संशोधित बिल के मुताबिक, GST काउंसिल में वोटिंग में एक चौथाई सदस्यों के समर्थन से फैसले हो सकते हैं. जबकि मूल बिल में आम सहमति से फैसला लिए जाने की व्यवस्था थी.

कौन करवाएगा लागू

GST काउंसिल बनेगी. इसके चेयरमैन होंगे देश के वित्त मंत्री. जो जिम्मा अभी अरुण जेटली के पास है. केंद्र से एक वित्त राज्य मंत्री भी इस काउंसिल में होंगे. वाइस चेयरमैन होंगे किसी एक राज्य के वित्त मंत्री. और सदस्य होंगे सभी राज्यों के वित्त मंत्री. अभी जो बिल पास हुआ है, उसमें GST की बारीकियां और पेचीदगियां नहीं है. उसमें बस GST लागू करने के लिए संविधान संशोधन की बात है. अब जब ये बिल राज्यसभा से ओके हो गया है, तो बारीकियों पर अब बात शुरू होगी. इसलिए कोई कहे कि GST आने से सब कुछ सस्ता होने वाला है तो उससे कहिए कि थोड़ी हवा आने दे.

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