सपा प्रत्याशियों के इस काम पर अखिलेश को 'बाहुबलियों' का ज़िक्र क्यों करना पड़ा?
क्यों प्रत्याशी एक के बाद एक नाम वापिस ले रहे?
Advertisement

अखिलेश यादव ने यूपी MLC चुनाव में सपा प्रत्याशियों के नामांकन वापस लेने, खारिज हो जाने और बीजेपी प्रत्याशियों के निर्विरोध जीतने को बाहुबल का निंदनीय रूप बताया है. दाएं हरदोई से निर्विरोध जीते बीजेपी प्रत्याशी का चित्र है. (फोटो साभार- आज तक)
ये सब भगवान राम की कृपा है, उन्होंने पर्चा वापस क्यों लिया वो जानें.गाजीपुर निकाय सीट पर कुल 4 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. इनमें से एक सपा प्रत्याशी भोलानाथ शुक्ला और निर्दलीय देवेंद्र ने पर्चा वापस ले लिया है. अब भाजपा के प्रत्याशी विशाल सिंह 'चंचल' के सामने निर्दलीय प्रत्याशी मदन सिंह बचे हैं. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में गाजीपुर की सातों विधानसभा सीटों पर सपा ने जीत दर्ज की थी. इसके चलते माना जा रहा था कि यहां MLC चुनाव में बीजेपी को सपा से कड़ी टक्कर मिलेगी, लेकिन ऐन मौके पर सपा प्रत्याशी के नामांकन वापस लेने के बाद बीजेपी प्रत्याशी की जीत पर अनौपचारिक मुहर लग गई है. हमने भोलानाथ शुक्ला से नामांकन वापस लेने का कारण पूछा चाहा, भोलानाथ बोले, ऐसे स्थितियां बन गईं थीं कि नामांकन वापस लेना पड़ा, जब पूछा कि क्या स्थितियां बन गई थीं, तो बोले,
'इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं, बस पर्चा वापस ले लिया है, व्यस्त हूं.'इसी तरह बदायूं स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से सपा और बीजेपी के प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे. बीते बुधवार सपा के प्रत्याशी सिनोद शाक्य ने अचानक अपना नामांकन वापस ले लिया. और बीजेपी के वागीश पाठक की निर्विरोध जीत तय हो गई. स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक़ सिनोद शाक्य लखनऊ गए थे, जहां उनकी मुलाकात बीजेपी के नेताओं से हुई. और वापस आने के बाद उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया. कहा जा रहा है कि सिनोद शाक्य MLC चुनावों की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. सपा प्रत्याशियों की नामांकन वापसी की लिस्ट में आख़िरी नाम हरदोई के रजीउद्दीन का है. रजीउद्दीन यहां के स्थानीय निकाय क्षेत्र से एमएलसी पद के दावेदार बनाए गए थे. लेकिन बीजेपी प्रत्याशी अशोक अग्रवाल के सामने उन्होंने अपना पर्चा वापस ले लिया है. बता दें कि हरदोई जनपद राजनीतिक गलियारों में सपा से भाजपा में आए नरेश अग्रवाल के नाम से जाना जाता है. इस बार हुए विधानसभा चुनावों में नरेश ने हरदोई की सभी आठ विधानसभाओं पर भाजपा प्रत्याशियों को जिताने का वादा किया था. चुनाव परिणामों में ऐसा हुआ भी. नरेश अग्रवाल का हरदोई जनपद में गहरा राजनीतिक प्रभाव माना जाता है. एमएलसी पद के लिए हुए नामाकंन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए नरेश अग्रवाल ने कहा था,
‘लगता है चुनाव निर्विरोध हो जाना चाहिए, सपा अभी भी इतना हतोत्साहित है कि उनमें पैर खड़े रखने का साहस नहीं है. चुनाव एक तरफ़ा होगा.’बता दें कि नामांकन वापस लेने वाले सपा कैंडिडेट रजीउद्दीन सपा से एमएलसी रहे और नरेश के करीबी मिस्बाहुद्दीन के बेटे हैं. शहर में चर्चा है कि नरेश ने ही उन्हें सपा से टिकट दिलाया था, लेकिन जब नरेश के दूसरे नजदीकी अशोक अग्रवाल बीजेपी से टिकट ले आए तो नरेश ने रजीउद्दीन का नामांकन वापस करवा दिया. स्थानीय अखबारों के मुताबिक़, नरेश अग्रवाल ने कहा कि रजीउद्दीन ने राष्ट्रहित में पर्चा वापस लिया है, और वे बीजेपी की नीतियों से प्रभावित हैं. इस बारे में जब हमने रजीउद्दीन से बात की तो उन्होंने कहा,
'मेरे पिता मिस्बाहुद्दीन को नरेश अग्रवाल जी ने ही सपा से एमएलसी बनवाया था. इस बार उन्होंने मुझे टिकट दिलाई ये बात सही नहीं है. लेकिन मेरे चुनाव प्रचार में सपा के जिलाध्यक्ष और अन्य सभी वरिष्ठ नेता कोई सहयोग नहीं कर रहे थे. जिलाध्यक्ष जितेंद्र वर्मा जीतू का यही हाल रहा तो जल्दी ही पार्टी में अकेले रह जाएंगे. जिला पंचायत चुनावों में भी उन्होंने जो किया है सब जानते हैं.'नामांकन वापस क्यों लिया, इस पर रजीउद्दीन कहते हैं,
'जब पार्टी का कोई नेता हमारा साथ नहीं दे रहा था तो नरेश जी ने हमें सलाह दी कि इस तरह चुनाव लड़के अपना नुकसान न कराओ, उनकी सलाह मानते हुए हमने नामांकन वापस ले लिया.'रजीउद्दीन ने ये भी कहा कि भाजपा की नीतियों से प्रभावित हैं. हालांकि अभी सपा से इस्तीफ़ा नहीं दिया है लेकिन जल्दी ही भाजपा ज्वाइन करने की संभावना है. स्थानीय पत्रकार इस पूरे घटनाक्रम को नरेश अग्रवाल के वर्चस्व और जोड़-तोड़ की सियासत का नतीजा मानते हैं. यहां तक कि अशोक अग्रवाल के निर्विरोध निर्वाचन की सूचना भी नरेश अग्रवाल के घर से दी गई. जबकि इसके पहले तक अमूमन महत्वपूर्ण घोषणाएं जिले के भाजपा कार्यालय से की जाती थी. ख़बरों के मुताबिक़ अभी कुछ और सपा प्रत्याशी अपना नामाकंन वापस ले सकते हैं. हालांकि अखिलेश यादव इसे लोकतंत्र के खिलाफ़ बता रहे हैं. अखिलेश ने ट्वीट करके कहा,
’भाजपा के शासन में लोकतंत्र की रक्षा की अपेक्षा करना असंभव जैसा है. ये बाहुबल का घोर निंदनीय रूप है. या तो नामांकन करने नहीं दिया जाएगा, या फिर चुनाव और चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जाएगा. हार का डर ही जनमत को कुचलता है.’
हालांकि उत्तर प्रदेश में विधान परिषद् चुनावों के नतीजे अप्रैल को आएंगे और इसके बाद जहां भी बीजेपी के प्रत्याशी अकेले बचे हैं, उनके निर्विरोध निर्वाचन की घोषणा कर दी जाएगी.भाजपा राज में लोकतंत्र की रक्षा की अपेक्षा करना… दिन में तारे ढूँढना है।
ये बाहुबल का घोर निंदनीय रूप है या तो पर्चा नहीं भरने दिया जाएगा या चुनाव को प्रभावित किया जायेगा या परिणामों को। हार का डर ही जनमत को कुचलता है। — Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) March 22, 2022