The Lallantop
Advertisement

इस गे वकील के नाम पर मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट आपस में क्यों भिड़े हुए हैं?

2017 से इनको सरकार ने लटका कर रखा है.

Advertisement
KirpalSaurabh
वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल (फाइल फोटो: ट्विटर/@KirpalSaurabh)
font-size
Small
Medium
Large
20 जनवरी 2023 (Updated: 20 जनवरी 2023, 14:22 IST)
Updated: 20 जनवरी 2023 14:22 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

अगर कोई गे है तो क्या वो जज नहीं बन सकता? केंद्र सरकार से यही सवाल पूछा है सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने. क्योंकि सीनियर एडवोकेट सौरभ किरपाल को हाईकोर्ट में जज ना बनाने के लिए केंद्र ने यही तर्क दिया है. सरकार ने कोलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए दिए गए पांच नामों को वापस किया और उनमें से एक सौरभ किरपाल भी हैं. और उन्हें जज ना नियुक्त किए जाने को लेकर सरकार ने सौरभ के सेक्शुअल ओरिएंटेशन का हवाला दिया है. सौरभ का नाम कोलेजियम द्वारा पहले भी प्रस्तावित किया गया था. तब भी सरकार ने आपत्ति जाताई थी. आइए जानते हैं, कौन हैं सौरभ किरपाल जिन्हें सरकार जज नहीं बनने दे रही.

कौन हैं सौरभ किरपाल?

सौरभ, देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश भूपिंदर नाथ किरपाल के बेटे हैं. बीएन किरपाल साल 2002 में देश के मुख्य न्यायाधीश रहे. वो वरिष्ठ वकील थे, फिर जज नियुक्त किए गए. और CJI बने. सौरभ ने दिल्ली के स्टीफेंस कॉलेज से फिज़िक्स की पढ़ाई की. लेकिन पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए उन्होंने भी वकालत की पढ़ाई. सौरभ ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की. और वकालत में ही पोस्ट ग्रैजुएशन करने वो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चल गए. इसके बाद वो भारत लौटे और करीब दो दशक से देश में वकालत कर रहे हैं. इस बीच उन्होंने जेनेवा में यूनाइटेड नेशन्स के साथ काम भी किया.

वो भारत में गे राइट्स के नामी पैरोकारों में से हैं. उन्होंने Sex and the Supreme Court: How the Law is Upholding the Dignity of the Indian Citizen नाम से एक किताब भी लिखी है. 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली पीठ ने इंडियन पीनल कोड की धारा 377 को डीक्रिमिनलाइज़ कर दिया. माने अब होमोसेक्शुएलिटी अपराध नहीं रहा. अपनी पसंद से अपने साथी के साथ होने का अधिकार देने वाला ये ऐतिहासिक फैसला आया था नवतेज सिंह जोहर एवं अन्य VS भारत संघ मामले में. नवतेज सिंह मामले में पैरवी करने वाले वकीलों में सौरभ कृपाल भी थे. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जो यात्रा रही, सौरभ लगातार उसका हिस्सा रहे.

मार्च 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के सभी 31 जजों ने सौरभ को दिल्ली उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि देने पर सहमति दी. इससे पहले कोलेजियम ने उन्हें हाई कोर्ट में जज नियुक्त किए जाने की सिफारिश की. 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय के कोलेजियम की सिफारिश के बाद सुप्रीम कोर्ट से उनके नाम के अनुमोदन में 2021 तक वक्त लग गया.

और यहीं से सवाल उठने लगे कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वो गे हैं और वो खुले तौर पर इसे स्वीकर करते हैं. सौरभ 20 साल से जर्मेन बाखमान के साथ हैं. बाखमान एक स्विस मानवाधिकार कार्यकर्ता और राजनयिक हैं. सरकार ने पहले तो इसी बात का हवाला देते हुए ये उनका नाम वापस किया था कि उनके पार्टनर विदेशी हैं और ये देश के लिए थ्रेट हो सकते हैं.

इस बीच हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में सौरभ कृपाल ने कहा,

मीडिया रिपोर्ट्स से लगता है कि मेरे पार्टनर का स्विस नागरिक होना मेरे नाम के अनुमोदन के आड़े आ रहा है. अगर मैं एक स्ट्रेट शख्स होता, जिसकी पत्नी विदेशी नागरिक होती, तो कोई समस्या नहीं होती. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के जजों की विदेशी पत्नियां रही हैं. लेकिन मैं स्ट्रेट नहीं हूं, इसीलिए ये बात मुद्दा बन रही है.

लेकिन मार्च, 2021 तत्कालीन CJI एसए बोबडे ने केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा कि उसे सौरभ को लेकर कैसी चिंताएं हैं. तब केंद्र ने सौरभ के पार्टनर वाली बात को ही रेखांकित किया था.

अप्रैल 2021 में कानून मंत्रालय ने एक चिट्ठी में लिखा कि भारत में होमोसेक्शुएलिटी अब अपराध नहीं रहा. लेकिन सेम सेक्स मैरिज को लेकर अब भी कोई कानून नहीं है. केंद्र ने तब ये भी संकेत किया था कि सौरभ का गे राइट्स आंदोलन से जुड़ाव के चलते ये संभव है कि वो पूर्वाग्रही हों. लेकिन नवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने सौरभ के नाम पर अपनी मुहर लगाते हुए उसे केंद्र के पास भेज दिया.

कोलेजियम का रुख

18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी बयान में कहा गया कि कोलेजियम की सिफारिश को लेकर दो आपत्तियां आई थीं. पहली सौरभ के साथी का एक स्विस नागरिक होना. और दूसरी - अपनी यौन पसंद को लेकर उनका खुला इज़हार. लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम का मत है कि इन बिंदुओं का राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंध नहीं है. कोलेजियम ने ये भी कहा कि,

ये दर्ज किया जाए कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों से भारत के संविधान का मत स्थापित होता है. इसके अनुसार हर व्यक्ति को अपनी यौन पसंद के मुताबिक गरिमा से जीने का अधिकार है.

कोलेजियम ने खुले तौर पर गे होने को लेकर सौरभ की तारीफ भी की. साथ ही ये जोड़ा कि उनके पास क्षमता, ईमानदारी और बुद्धि है.

इन्हीं सारी बातों के आधार पर कोलेजियम ने कहा कि सौरभ कृपाल का नाम पांच वर्षों से लंबित है और अब इस बाबत अनुशंसा पर जल्द अमल किया जाना चाहिए. लेकिन कोलेजियम ने ये भी कहा कि कृपाल को अपने नाम के अनुमोदन के मामले में प्रेस से बात न करने की सलाह दी जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने सौरभ कृपाल को लेकर अपना संकल्प दोहरा दिया है. अब केंद्र के पास एक ही विकल्प है. कि वो इसपर रज़ामंदी दे दे. वो चाहे तो इसमें वक्त लगा सकता है, लेकिन सौरभ का नाम वापस नहीं भेज सकता.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: सुप्रीम कोर्ट और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच कोलेजियम पर बहस में कौन सही, कौन गलत?

thumbnail

Advertisement