मोदी की तारीफ ठुकराने वाली 8 साल की ऐक्टविस्ट की कहानी क्या फेक है?
#SheInspiresUs मुहिम में लिकिप्रिया कंजुगाम की तारीफ की गई थी.
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8 मार्च. महिला दिवस. सरकार की तरफ से #SheInspiresUs कैंपेन चल रहा है. प्रेरणा देने वाली महिलाओं के बारे में बात हो रही है. 5 मार्च को सरकार की तरफ से एक ट्वीट में 8 साल की एक बच्ची का ज़िक्र किया गया. नाम लिकिप्रिया कंगुजाम. मणिपुर की रहने वाली हैं. एनवायरमेंट एक्टिविस्ट हैं. क्लाइमेट चेंज पर काम करती हैं. पिछले कई दिनों से चर्चा में हैं.
लिकिप्रिया सरकार की तरफ से किए गए ट्वीट पर नाराज़ हो गईं. उन्होंने कहा,
डियर पीएम नरेंद्र मोदी जी, कृपया जश्न ना मनाएं अगर आप मेरी आवाज़ नहीं सुनने जा रहे हैं. आपकी पहल #SheInspiresUs के तहत देश की उन महिलाओं में मुझे चुनने के लिए शुक्रिया जो प्रेरित करती हैं. कई बार सोचने के बाद मैंने इस सम्मान को ना लेने का फैसला किया है.इसके बाद ट्विटर पर उनकी तारीफ होने लगी. ट्रोलिंग भी हुई. अब उनकी कहानी पर सवाल उठ रहे हैं. मणिपुर की राजनीतिक कार्यकर्ता एंजेलिका अरिबाम और पत्रकार चित्रा अहंतम सवाल उठा रही हैं कि लिकिप्रिया के दावों और हकीकत में अंतर है. सरकार को दिए जवाब पर आ रहीं प्रतिक्रियाओं पर लिकिप्रिया ने 7 मार्च को कहा,Dear @narendramodi
Thank you for selecting me amongst the inspiring women of the country under your initiative #SheInspiresUs
Ji, Please don’t celebrate me if you are not going to listen my voice.
. After thinking many times, I decided to turns down this honour. 🙏🏻
Jai Hind! pic.twitter.com/pjgi0TUdWa
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) March 6, 2020
प्रिय भाइयों, बहनों, सर, मैडम मुझे बुली करने के लिए प्रोपेगेंडा रोक दीजिए. मैं किसी के ख़िलाफ़ नहीं हूं. मैं क्लाइमेट चेंज नहीं सिस्टम में चेंज चाहती हूं. मैं किसी से कुछ नहीं चाहती, सिवाय इसके कि हमारे नेता मेरी बात सुनें. मुझे लगता है कि मेरी तरफ से रिजेक्ट (ऊपर वाली बात) करने से मेरी बात सुनी जाएगी.
कौन हैं लिकिप्रिया कंगुजामDear brothers/ sisters/ Sir/ Madam,
Stop all propaganda to bully me. I’m not against anyone. I just wants system change, not climate change.
I don’t expect anything from anyone except I want our leaders to listen my voice.
I believe my rejection will helps to listen my voice.
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) March 7, 2020
लिकिप्रिया कंगुजाम 8 साल की हैं. भारत में क्लाइमेट चेंज लॉ की मांग कर रही हैं. उनके ट्विटर बायो में लिखा है कि उन्हें वर्ल्ड चिल्ड्रन पीस प्राइज 2019 मिला हुआ है. इसके अलावा डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम अवॉर्ड, इंडिया पीस प्राइज भी उनके नाम हैं. उनका ट्विटर हैंडल उनके गार्जियन मैनेज करते हैं. उनका ट्विटर ऐक्टिविज़्म की तस्वीरों से भरा हुआ है. लिकिप्रिया कहती हैं कि कार्बन उत्सर्जन और ग्रीनहाउस गैसों पर रोक लगनी चाहिए. क्लाइमेट चेंज स्कूल के सिलेबस में अनिवार्य होना चाहिए. उन्होंने मांग रखी थी कि फाइनल परीक्षा पास करने के लिए 10 पौधे लगाना अनिवार्य कर देना चाहिए. लिकिप्रया बताती हैं कि उन्होंने 4 जुलाई, 2018 को मंगोलिया में UN इवेंट को संबोधित किया था. उनका कहना है कि 21 जुलाई, 2019 को जब उन्होंने भारत में संसद के सामने प्रोटेस्ट किया तब मीडिया ने उन पर ध्यान दिया.
'ग्रेटा ऑफ इंडिया' कहने से उन्हें आपत्ति है
पिछले दिनों एक नाम बड़ा चर्चित हुआ था. ग्रेटा थनबर्ग. 17 साल की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट. संयुक्त राष्ट्र (UN) की क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस में उनकी स्पीच बड़ी पॉपुलर हुई थी. लिकिप्रिया कंगुजाम का नाम भी उसी कड़ी में लिया जाता है. उन्हें कई लोगों ने 'ग्रेटा ऑफ इंडिया' माने 'भारत की ग्रेटा' भी कहा लेकिन लिकिप्रिया ने इस पर आपत्ति जताई. ग्रेटा थनबर्ग से वो मिल चुकी हैं. लेकिन ग्रेटा थनबर्ग से तुलना पर 27 जनवरी, 2020 को उनके ट्विटर हैंडल से कहा गया,
8 मार्च को महिला दिवस पर उन्होंने ग्रेटा के साथ एक तस्वीर भी पोस्ट की. उन्होंने कहा कि साहस से लड़ने के लिए दुनिया भर के सभी नौजवान क्लाइमेट ऐक्टिविस्ट दोस्तों को मेरी बधाई.डियर मीडिया, मुझे ग्रेटा ऑफ इंडिया कहना बंद करें. मैं अपना ऐक्टिविज्म ग्रेटा थनबर्ग की तरह दिखने के लिए नहीं करती हूं. हां वो हमारी प्रेरणाओं में एक हैं. हमारा लक्ष्य एक है. लेकिन मेरी अपनी पहचान है. मैंने ग्रेटा से पहले जुलाई 2018 से अपना मूवमेंट शुरू किया.Dear Media, Stop calling me “Greta of India”. I am not doing my activism to looks like Greta Thunberg. Yes, she is one of our Inspiration & great influencer. We have common goal but I have my own identity, story. I began my movement since July 2018 even before Greta was started. pic.twitter.com/3UEqCVWYM8
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) January 27, 2020
लिकिप्रिया का कहना है कि उन्होंने अब तक 51,000 पेड़ लगाए हैं, जो उनके जन्म से रोजाना 16 पेड़ लगाने के बराबर है. 8 मार्च को भी उन्होंने पेड़ लगाने का संदेश दिया.Today’s is #WomensDay2020
. My best wishes to everyone specially to all young Climate Activist friends across the globe to fight with courage.
No point in half-way trips; if we go, we go all the way!✊🏾#KeepFighting
#ClimateActionNow
pic.twitter.com/jZggKKyzyD
— Licypriya Kangujam (@LicypriyaK) March 8, 2020
लेकिन क्या लिकिप्रिया की कहानी में झोल है? लिकिप्रिया को लेकर लोग बंटे हुए हैं. 8 साल की इस बच्ची के कई दावों पर सवाल भी उठ रहे हैं. राजनीतिक कार्यकर्ता और NSUI की पूर्व महासचिव एंजेलिका अरिबाम ने ट्वीट कर कहा कि लिकिप्रिया के UN में बोलने का दावा झूठा है. इसके पीछे उनके पिता का हाथ है. उन्होंने कई ट्वीट्स किए. एक में लिखा,
पिछले साल लिकिप्रिया ने दावा किया कि वो जिनेवा में UN हेडक्वार्टर में 'डिजास्टर रिस्क रिडक्शन' के मुद्दे पर 'ग्लोबल UN सेशन' को संबोधित करने जा रही हैं. नॉर्थ-ईस्ट में बड़े न्यूज संस्थानों ने ये ख़बर उठाई. मणिपुर के सम्मानित अखबार 'इंफाल फ्री प्रेस' के लिए पत्रकार चित्रा अहंतम ने इसकी जांच की. उन्होंने पाया कि ये बात बोगस है. लड़की के पिता कंगुजाम कनरजित उर्फ डॉक्टर केके सिंह की तरफ से ये कहानी बनाई गई. 2015 में उन्हें एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया गया था. वो फरार चल रहे थे.
The news was carried by all major news organizations in the Northeast. @ChitraAhanthem
investigated it for Imphal Free Press, a respected newspaper of Manipur. She found the entire thing to be a sham. (2/n) — Angellica Aribam (@AngellicAribam) March 7, 2020
इंडिया पीस प्राइज पर सवाल इसके लिए एंजेलिका अरिबाम ने एक ख़बर का लिंक भी शेयर किया, जिसमें कहा गया कि लड़की को UN बुलाने का दावा फेक है. एंजेलिका ने एक और ख़बर शेयर करते हुए कहा कि एक और न्यूज संस्था ने इस झूठी स्टोरी का खुलासा किया, लेकिन तब तक फेक न्यूज फैल चुकी थी. उन्होंने कहा कि मुझे लिकिप्रिया की तरफ से ब्लॉक कर दिया गया है. एक और ट्वीट उन्होंने रीट्वीट किया, जिसमें दावा है कि लिकिप्रिया को इंडिया पीस प्राइज उनके पिता के ही संगठन की तरफ से दिया गया और मीडिया की तरफ से एक फेक पहाड़ खड़ा किया जा रहा है.
इस ट्वीट में दावा किया गया कि लिकिप्रिया को उनके पिता की संस्था की तरफ से ही इंडिया पीस प्राइज पर अवॉर्ड दिए. फोटो: ट्विटर
पत्रकार ने कहा- पिता को बचाने के लिए हो रहा बच्ची का इस्तेमाल पत्रकार चित्रा अहंतम की तरफ से किए गए एक ट्वीट में कहा गया,
उसके पिता ने घोटालेबाज के रूप में शुरुआत की. उन्होंने एक ग्लोबल यूथ समिट आयोजित की, ये कहते हुए कि इसे UNESCO प्रायोजित कर रहा है. लिकिप्रिया के गार्जियन या कहें तो पिता इंफाल मजिस्ट्रेट की तरफ से घोषित वॉन्टेड/भगोड़ा है. मैंने पहले भी एक दावे का खुलासा किया था कि बच्ची UN में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रही है. इस कहानी में बहुत कुछ है कि क्यों उसे (पिता को बचाने के लिए) इस्तेमाल किया जा रहा है.
The gaurdian/father is a declared wanted/absconder by the Magistrate in Imphal. I had exposed an earlier claim that the child was representing India as a speaker in a UN event. There is more to the story behind why the child is being used (to shield father) — Chitra Ahanthem (@ChitraAhanthem) March 7, 2020
उन्होंने आरोप लगाया कि UN में बोलने की फेक तस्वीरें पोस्ट की गईं. उन्होंने लिखा ,
जब UN कॉन्फ्रेंस टीम ने कन्फर्म किया कि वो (लिकिप्रिया) स्पीकर नहीं है, तब उसके सोशल मीडिया अकाउंट से पोडियम पर खड़े होकर तस्वीरें पोस्ट की गईं (जिसमें कोई जनता दिखाई नहीं दे रही है.) बच्ची के बोलने की कोई वीडियो क्लिप जारी नहीं की गई. कॉन्फ्रेंस में जाने वाले जानते हैं कि कॉन्फ्रेंस में जाना और स्पीकर की तरह जाना दो अलग चीजें होती हैं.
Even after this confirmation by UN conference team, social media accounts(where I am blocked) showed child posing as a speaker on a podium (no audience seen), no video clip of the child speaking was put up. Conference goers know: attending one is different from going as a speaker — Chitra Ahanthem (@ChitraAhanthem) March 7, 2020
चित्रा ने कहा कि बच्ची के बारे में ब्रेकिंग न्यूज एक प्रेस रिलीज से पैदा हुई, जिसे इंटरनेशनल यूथ कमिटी की तरफ से भेजा गया. इसमें किसी महासचिव डॉक्टर हिल्डा जैकब के साइन थे. इस व्यक्ति के बारे में ऑनलाइन खोजने पर भी पता नहीं चला. फिर इंटरनेशनल यूथ कमिटी के बारे में खोजा तो पता चला कि कंगुजाम कनरजित (पिता) इसके अगुआ हैं.
एपीजे अब्दुल कलाम अवॉर्ड को लेकर वो कहती हैं कि अगर आप चेक करें तो ये 'ख्वाब फाउंडेशन' की तरफ से दिया गया. इसके बारे में जांचें तो इसका कोई ऑनलाइन नामो-निशान नहीं मिलता है.
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