पाक फ़ौज को 'आतंकवादी' कहने पर जेल जाने वाली ईमान मज़ारी कौन हैं?
पाक फौज़ को देशद्रोही कहने वाली लड़की ने तहलका मचाया, इमरान ख़ान के साथ अब क्या कांड हुआ?

पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान में एक अनोखी परंपरा चल रही है. फौज़ या सरकार का विरोध करने वाले शख़्स को किसी आरोप में गिरफ़्तार किया जाता है. फिर कोर्ट में पेश किया जाता है. जैसे ही कोर्ट उस शख़्स को ज़मानत देती है, उसे किसी दूसरे मामले में पकड़ लिया जाता है. यहां से पूरा चक्र नए सिरे से शुरू हो जाता है.
28 और 29 अगस्त को इसके दो बड़े उदाहरण सामने आए.
- पहला मामला पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान का है. इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने इमरान को तोशाखाना मामले में मिली सज़ा पर रोक लगा दी. 05 अगस्त को ट्रायल कोर्ट ने उनको 03 बरस के लिए जेल भेजा था. तब से वो अटक की जेल में बंद हैं. हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें रिहा होना था. लेकिन हो नहीं सके. साइफ़र केस में वो जेल में ही बने रहेंगे. इस मामले में 30 अगस्त को कोर्ट में पेश किया जाएगा.
हालांकि,
- दूसरा मामला इमरान सरकार में मंत्री रहीं शिरीन मज़ारी की बेटी और वकील ईमान ज़ैनब मज़ारी-हाजिर से जुड़ा है. ईमान ने पाक फौज़ की आलोचना की थी. 20 अगस्त की तड़के सुबह घर का दरवाज़ा तोड़कर उन्हें अरेस्ट कर लिया गया. बदसलूकी की गई. कई दिनों तक जेल में रखा गया. 28 अगस्त को कोर्ट से ज़मानत मिली. जैसे ही वो जेल से बाहर आईं, उन्हें दूसरे केस में अरेस्ट कर लिया गया.
पाकिस्तान में मानवाधिकार संगठन और आम लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं. पाक फौज़ पर निशाना साधा जा रहा है. मगर कोई फर्क़ नहीं पड़ा. जानकारों का कहना है कि फौज़ संदेश देने की कोशिश कर रही है. Either fall in line or fall by the wayside. यानी, या तो हमारा साथ दो या फिर किनारे लगा दिए जाओगे.
तो आइए जानते हैं,
- ईमान मज़ारी कौन हैं?
- उन्हें बार-बार अरेस्ट क्यों किया जा रहा है?
- और, पाक फौज़ अपना मॉडस ऑपरेंडी क्यों नहीं बदल पा रही है?
पहले ये ट्वीट देखिए,
Unknown persons breaking down my home cameras banging gate jumped over
कुछ अज्ञात लोग मेरे घर का कैमरा तोड़ रहे हैं. वे दरवाज़ा फांदकर अंदर आ गए हैं
ईमान मज़ारी ने 20 अगस्त की सुबह तकरीबन 04 बजे ये ट्वीट किया था. इसके कुछ देर बाद ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. कपड़े बदलने तक का मौका नहीं दिया. ना ही उनकी मां को बताया कि वे उन्हें कहां ले जा रहे हैं. जाते-जाते गार्ड की पिटाई की. सीसीटीवी कैमरे की हार्ड ड्राइव और सबके फ़ोन भी ले गए.
सुबह के 04 बजकर 40 मिनट पर ईमान की मां शिरीन मज़ारी ने ट्वीट किया,
अभी-अभी महिला पुलिस और सादे कपड़ों में आए लोग घर का दरवाज़ा तोड़कर मेरी बेटी को अपने साथ ले गए. उन्होंने सिक्योरिटी कैमरा, लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन्स भी रख लिया. हमने पूछा कि वे क्यों आए हैं और वे ईमान को घसीटकर ले गए. पूरे घर में हंगामा किया. मेरी बेटी नाइट ड्रेस में थी. उसे कपड़ा नहीं बदलने दिया गया. कोई वॉरंट नहीं दिखाया गया और ना ही किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया. ये फ़ासीवाद है. याद रहे हमारे घर में सिर्फ दो महिलाएं रह रही हैं. ये अपहरण है.
अगले 06 घंटों तक किसी को नहीं पता था कि ईमान कहां हैं और उनके साथ क्या हुआ. इस्लामाबाद पुलिस ने भी चुप्पी साध रखी थी. फिर सुबह 10 बजे ख़बर आई कि उन्हें कोर्ट में पेश किया जा रहा है. उनके ऊपर पाकिस्तान पीनल कोड (PPC) की धारा 124-ए, 148, 149, 153, 153-ए और 506 में केस दर्ज किया गया था. इन धाराओं का मतलब भी जान लीजिए.
धारा 124-ए राजद्रोह से जुड़ी है.
148 का संबंध दंगा करने और ख़तरनाक हथियार रखने से है.
149 का संबंध अवैध गतिविधि में शामिल होने से है.
153 का संबंध दंगा भड़काने से है.
धारा 153-ए अलग-अलग समुदायों के बीच दुश्मनी फैलाने से जुड़ी है.
और, धारा 506 का संबंध आपराधिक किस्म की धमकी से है.
इन धाराओं के अलावा, ईमान पर एंटी-टेररिज्म ऐक्ट भी लगाया गया था. उन पर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था.
ईमान ने आख़िर किया क्या था?अरेस्ट से ठीक पहले वो पाकिस्तानी पंजाब के जरांवाला गईं थी. दरअसल, 16 अगस्त की सुबह जरांवाला में अफ़वाह फैली कि दो ईसाई भाइयों ने क़ुरान का अपमान किया. इसके बाद तहरीके तालिबान पाकिस्तान (TLP) ने भीड़ बुलाई. बदला लेने के लिए उकसाया. फिर गुस्साई भीड़ ने आसपास के गिरजाघरों और ईसाइयों के घरों में आग लगा दी. लूटपाट भी की. 19 अगस्त को ईमान मज़ारी पीड़ित परिवारों से मिलने गईं थी.
उससे एक दिन पहले यानी 18 अगस्त को इस्लामाबाद के एक्सप्रेस चौक पर एक रैली में हिस्सा लिया. इस रैली का आयोजन पश्तून तहाफ़ुज़ मूवमेंट (PTM) ने किया था. रैली का मकसद अराजकता, आतंकवाद, ज़बरन गुमशुदगी और सैन्य अदालत में आम नागरिकों के ट्रायल का विरोध करना था. PTM का आरोप है, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वाह के इलाकों में बारूदी सुरंगों के चलते आम लोगों की जान जा रही है. आतंकवाद बढ़ रहा है. लेकिन सरकार सुध नहीं ले रही. PTM की स्थापना 2014 में हुई थी. आठ स्टूडेंट्स के द्वारा. ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के डेरा इस्माइल ख़ान में.
उनकी तीन मुख्य मांगें हैं,
- नंबर एक. वज़ीरिस्तान और दूसरे पश्तून कबीलाई इलाकों में बिछी लैंडमाइंस को हटाया जाए. PTM का आरोप है कि उन इलाकों में आतंकवाद फैलाने में फौज़ की बड़ी भूमिका है.
उनका एक मशहूर नारा भी है,
ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है.
- दूसरी मांग गैर-न्यायिक हत्या और फर्ज़ी एनकाउंटर्स के दोषी पुलिसवालों और आर्मी अफ़सरों को सज़ा देने से जुड़ी है. उन्होंने इसकी सच्चाई बाहर लाने के लिए जांच आयोग बनाने की डिमांड भी की है.
- तीसरी मांग सामूहिक यातना बंद करने की है.
PTM का आरोप है कि पश्तून इलाकों में आर्मी आम लोगों को परेशान करती है. चेकपॉइंट्स पर अपमानित किया जाता है. किसी एक पर शक़ होने की स्थिति में पूरे परिवार या पूरे गांव को सज़ा दी जाती है. ये पूरी तरह बंद होना चाहिए.
इन मांगों के लिए PTM ने कई बार धरना दिया है. कई बार राजधानी तक लॉन्ग मार्च भी किया है. 18 अगस्त को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के बाहर धरना देने का ऐलान किया था. हालांकि, एक रात पहले ही सरकार से समझौता हो गया. और, उन्होंने धरने की जगह बदल दी.
ईमान मज़ारी इसी रैली में हिस्सा लेने पहुंची थीं. वो उन चुनिंदा वकीलों में से हैं, जो आर्मी की हिरासत में बंद या उनके द्वारा ग़ायब किए लोगों का केस लड़ती हैं.
विडंबना देखिए, जिस रैली में ईमान ने हिस्सा लिया, वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ में थी. और, उन्हीं के ऊपर एंटी-टेररिस्ट ऐक्ट लगा दिया गया. वजह, उन्होंने मिलिटरी एस्टैब्लिशमेंट पर ऊंगली उठाने की हिमाकत कर ली थी. कहा था,
‘आपको रोका जा रहा है, जैसे आप दहशतगर्द हैं, लेकिन असल दहशतगर्त तो पाकिस्तान के मिलिटरी हैडक्वाटर में बैठे हुए हैं.’
इसके दो दिन बाद ही रात के अंधेरे में उन्हें ख़तरनाक अपराधियों की तरह अरेस्ट कर लिया गया.
पाकिस्तान के नेशनल कमीशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स और एमनेस्टी इंटरनेशनल समेत दूसरे मानवाधिकार संगठनों ने ईमान की गिरफ़्तारी का विरोध किया. कहा कि ये अभिव्यक्ति के अधिकार पर हमला है.
डिजिटल राइट्स की वक़ालत करने वाले उस्मान खिलजी ने 27 अगस्त को पाकिस्तानी अख़बार डॉन में लिखा,
“ईमान का अपराध बस इतना है कि वो गुमशुदा लोगों के लिए अदालत का चक्कर लगाने वाली चुनिंदा वकीलों में से हैं. उनका गुनाह यातना झेल रहे लोगों के प्रति सहानुभूति रखना है. हमदर्दी उनके लिए मुसीबत गई है. उन्हें पता होना चाहिए था कि बोलने से बेहतर चुप्पी का पालन करना था. जब उनके सामने चुप कराए गए लोगों के इतने सनसनीखेज उदाहरण मौजूद थे, उन्होंने अपना मुंह कैसे खोला? बोलने की आज़ादी का इस्तेमाल करने की हिमाकत कैसे हुई? उन्हें पता होना चाहिए था कि शांति और अधिकारों की मांग करना दंगे भड़काने की केटेगरी में आता है, ये देशद्रोह है, गद्दारी है और घनघोर अपराध है.’
उस्मान खिलजी ने तंजिया लहजे में ईमान की गिरफ़्तारी की निंदा की थी. लेकिन वो पाकिस्तान और पाक हुक्मरान ही क्या, जो निंदा और आलोचना की परवाह कर ले. जाहिराना तौर पर ईमान के साथ बदला लिया जा रहा था. उन्हें चुप कराने की कोशिश चल रही थी. आम लोगों ने सोशल मीडिया पर विरोध भी जताया. केस की चर्चा देश-दुनिया की मीडिया में भी हुई. लेकिन हुक्मरानों के तय कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं हुआ. घटनाक्रम से समझ सकते हैं.
ईमान के ऊपर एक साथ दो केस चलाए गए. डकैती और दंगे के आरोप में मजिस्ट्रेट कोर्ट में और राजद्रोह के मामले में एंटी-टेररिज्म कोर्ट (ATC) में.
- 20 अगस्त की सुबह मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 03 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा. 22 को इसमें बेल मिल गई.
- लेकिन एक दिन पहले ही उन्हें ATC में पेश किया गया. ATC ने तीन दिनों की फ़िजिकल रिमांड में भेज दिया. इसलिए, 22 अगस्त को बेल मिलने के बावजूद वो रिहा नहीं हो पाईं.
- फिर आई 24 अगस्त की तारीख़.
ATC ने फ़िजिकल रिमांड हटाकर ज्युडिशियल रिमांड में भेजा. बेल की अपील पर सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख़ तय की.
26 अगस्त को ATC के जज छुट्टी पर चले गए. तारीख़ बढ़ाकर 28 अगस्त की कर दी गई.
- 28 अगस्त को कोई और खेल हो गया.
ATC ने हिरासत की अवधि बढ़ाने से मना कर दिया. रिहा करने के लिए कहा. जैसे ही ईमान जेल से बाहर निकलीं, उन्हें किसी तीसरे केस में अरेस्ट कर लिया गया.
ईमान कौन हैं?
जैसा कि हमने पहले भी बताया, ईमान पेशे से वकील हैं. उनकी मां शिरीन मज़ारी इमरान सरकार में मानवाधिकार मामलों की मंत्री रह चुकी हैं. 09 मई को पाक रेंजर्स ने इमरान ख़ान को अरेस्ट किया था. इसका भारी विरोध हुआ. हिंसा भी भड़की. शिरीन मज़ारी ने पाक फौज़ और तत्कालीन शहबाज़ सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था. 12 मई को उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया. आरोप लगाया गया कि उन्होंने पब्लिक आर्डर को बिगाड़ा है. बाद में उन्हें बेल मिली. लेकिन फिर दूसरे केस में फंसा दिया गया. जेल जाने और बेल मिलने का ये सिलसला 5 बार चला. जब तक उन्होंने हार नहीं मान ली. कैसी हार? जब तक कि उन्होंने पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ (PTI) की सदस्यता से इस्तीफ़ा नहीं दे दिया. सबको पता था कि ये सब पाक फौज़ के इशारे पर हो रहा है. मगर शिरीन ने इस मामले में कोई बात नहीं रखी. शायद उन्हें लगा हो कि इस्तीफे के बाद उनकी परेशानी खत्म हो जाएगी. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.
शिरीन तो चुप हो गईं. मगर उनकी बेटी ईमान नहीं रुकी. वो हमेशा से इमरान खान की वोकल सपोर्टर रही हैं. 9 मई वाले कांड के बाद भी जब PTI के नेताओं को प्रताड़ित किया जा रहा था, तब भी उन्होंने बिना डरे विरोध किया था. तभी से वो फौज़ के निशाने पर थीं.
ईमान ने स्कॉटलैंड की एडिनबरा यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की है. पाकिस्तान आने के बाद वो बतौर मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और वकील के रूप में काम कर रही हैं. वो मेनस्ट्रीम पोलिटिक्स में नहीं हैं.
जानकारों का कहना है कि लंबे समय से उन पर फौज़ की नज़र थी.
इससे पहले मई 2022 में भी तत्कालीन आर्मी चीफ़ क़मर जावेद बाजवा और सीनियर कमांडर्स पर निशाना साधा था. उस वक़्त फौज़ ने केस भी दर्ज कराया था. तब ईमान ने माफ़ी मांग ली थी. वो केस बंद हो गया था.
मई 2023 के बाद से वो फिर से मुखर हुईं. इसके अलावा, वो कबीलाई इलाकों में फौज़ के द्वारा सताए लोगों का केस लड़ती हैं. इससे उनके अत्याचारों पर जमी धूल हटने का ख़तरा बढ़ जाता है. इसी वजह से फौज़ उन्हें सबक सिखाने की कोशिश कर रही थी. जानकारों का कहना है कि 18 अगस्त की स्पीच के बाद उन्हें बहाना मिल गया.
हाल ही में पाकिस्तान में केयरेटकर सरकार का गठन हुआ है. इसी केयरटेकर सरकार की निगरानी में अगला आम चुनाव होना है. इस सरकार ने हर कदम पर मिलिटरी एस्टैब्लिशमेंट का साथ देने का वादा किया है. ऐसी स्थिति में ईमान मज़ारी को हाल-फिलहाल किसी राहत की उम्मीद नहीं दिखती.
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