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अली बाबा के फाउंडर जैक मा कहां छिपे हुए थे?

जैक मा अपनी फ़ैमिली के साथ टोक्यो में छिपकर रह रहे हैं.

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चीनी अरबपति और अलीबाबा के संस्थापक जैक मा। (फोटो: रॉयटर्स)
Chinese billionaire and Alibaba founder Jack Ma. (Photo: Reuters)
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30 नवंबर 2022 (Updated: 30 नवंबर 2022, 20:41 IST)
Updated: 30 नवंबर 2022 20:41 IST
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'सलीम फ़राज़ का एक शेर है,
सभी ख़ुश हैं कि सारे गुम-शुदा फिर मिल गए हैं
मुझे ग़म है कि अब तेरी कमी गुम हो गई है.'

ये शेर आज के दिन आई एक रिपोर्ट पर बिल्कुल मौज़ू बैठ रहा है. रिपोर्ट ये कि, एक बरस से भी ज़्यादा समय से गुमशुदा दिग्गज उद्योगपति और अलीबाबा के फ़ाउंडर जैक मा का पता चल गया है. रिपोर्ट के अनुसार, जैक मा अपनी फ़ैमिली के साथ टोक्यो में छिपकर रह रहे हैं. उनके बारे में आख़िरी जानकारी जुलाई 2022 की है. तब वो नीदरलैंड्स की एक यूनिवर्सिटी में नज़र आए थे. हालांकि, उनकी रिहाइश के बारे में पता नहीं चल पा रहा था. अब फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने उनके करीबियों के हवाले से कुछ खुलासे किए हैं.

24 अक्टूबर 2020 के दिन शंघाई में एक बिजनेस समिट बुलाई गई. इसमें अलीबाबा के फ़ाउंडर जैक मा को भी बुलावा भेजा गया था. एग्जीक्युटिव चेयरमैन की पोस्ट छोड़ने के बाद से वो इस तरह के कार्यक्रमों में खूब हिस्सा ले रहे थे. जैक मा चीन के उन चुनिंदा बिजनेस लीडर्स में गिने जाते थे, जो खुले तौर पर अपनी बात रखते थे. इस वजह से चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) उनसे खफ़ा रहा करती थी. शंघाई वाले कार्यक्रम में जैक मा ने जो बोला, वो नाराज़गी का क्लाइमैक्स साबित हुआ. उस दिन जैक मा ने लगभग 20 मिनट लंबा भाषण दिया था. इसमें उन्होंने चीनी बैंकों और नीति-निर्माताओं को खूब खरी-खोटी सुनाई. उन्होंने कहा था,

- चीन के बैंकों को चलाने वाले पुराने ज़माने के रुढ़िवादी लोग हैं. चीनी बैंकों की मानसिकता सूदखोर महाजनों जैसी बन गई है. ये नए उद्यमियों को प्रभावित कर रहा है.
- जैक मा ने बिजनेस में सरकार के हस्तक्षेप पर भी निशाना साधा. बोले, आनेवाला समय इनोवेशन का है, जटिल सरकारी नियमों का नहीं.
- हमें एयरपोर्ट को ऑपरेट करने में रेलवे स्टेशन वाला दिमाग नहीं लगाना चाहिए. हम भविष्य को इतिहास के तरीकों के सहारे नहीं चला सकते.

जैक मा अपनी शर्तों पर चाइनीज़ सिस्टम में सुधार चाहते थे. लेकिन सरकार ये नहीं चाहती थी कि कोई उसकी खामियां खुले मंच से गिनाए. जैक ये काम पहले भी कई बार कर चुके थे. शंघाई वाले भाषण के बाद मामला राष्ट्रपति शी जिनपिंग तक पहुंचा. उन्होंने जैक मा की कंपनियों अलीबाबा और ऐन्ट ग्रुप की जांच का आदेश जारी कर दिया. ऐन्ट ग्रुप हॉन्ग कॉन्ग और चीन के स्टॉक मार्केट में एंट्री की तैयारी कर रही थी. ये इतिहास का सबसे बड़ा आईपीओ होता. लेकिन सरकार ने उसपर भी रोक लगा दी. अलीबाबा के शेयर धड़ाधड़ गिरने लगे. कंपनी को भारी नुकसान हुआ.

सबसे दिलचस्प चीज़ जैक मा के साथ हुई. वो अचानक से गायब हो गए. उनके बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चल रहा था. चीन सरकार ने भी चुप्पी साध ली थी. अतरंगी जीवन जीने के लिए मशहूर जैक मा का गुम हो जाना किसी को पच नहीं रहा था. इसको लेकर चीनी सरकार की ख़ूब आलोचना हुई.
फिर जनवरी 2021 में वो अचानक से प्रकट हुए. वीडियो के ज़रिए. इसमें वो टीचर्स को संबोधित कर रहे थे.
‘मैं अपने साथियों के साथ चिंतन-मनन कर रहा हूं. और, हम शिक्षा और लोगों के कल्याण के प्रति अधिक समर्पित हुए हैं.’
इस वीडियो में जैक मा का हाव-भाव देखकर ऐसा लग रहा था कि उनसे सारी बातें ज़बरदस्ती बुलवाई जा रहीं है.

जैक मा की जिस छवि को दुनिया जानती है, उसमें वो मस्तमौला नज़र आते रहे हैं. वो कभी म्युजिकल प्रोग्राम में गाना गाते, कभी टीवी शो में गेस्ट बनते, सेलिब्रिटीज़ के साथ पार्टियां करते दिखते थे. अचानक से उनका गांव में जाकर टीचर बन जाना बहुत सारे लोगों को नहीं जंचा. जानकारों का कहना है कि ये सरकार का सबक सिखाने और बाकियों को संदेश देने का तरीका था.

ऑनलाइन वीडियो के बाद जैक मा को एक बार गोल्फ़ खेलते और एक बार खेतों का दौरा करते देखा गया. फिर अक्टूबर 2021 में न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने दावा किया कि वो हॉन्ग कॉन्ग में हैं. हॉन्ग कॉन्ग में उनकी कई प्रॉपर्टीज़ हैं और उनके बिजनेस भी चलते हैं. इसके बाद कभी उनका लग्जरी याट यूरोप के समंदर में दिखता, तो कभी उनको लेकर कोई अफवाह उड़ने लगती. लेकिन ये पता नहीं चल पा रहा था कि जैक मा आख़िर कर क्या रहे हैं?

29 नवंबर को इस राज़ से थोड़ा पर्दा उठ गया है. ब्रिटिश अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने जैक मा के करीबियों के हवाले से एक रिपोर्ट छापी है. इसमें दावा किया गया है कि जैक मा पिछले छह महीने से जापान की राजधानी टोक्यो में रह रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जैक मा ने ख़ुद को मीडिया की नज़र से छिपाकर रखा है. उनका अधिकतर समय रिजॉर्ट्स और प्राइवेट क्लब्स में बीतता है. टोक्यो में रहते हुए वो कई बार अमेरिका और इज़रायल भी जा चुके हैं. इन ट्रिप्स को जान-बूझकर सीक्रेट रखा गया.

जैक मा एक समय चीन के सबसे अमीर व्यक्ति थे. उनके पास लगभग चार लाख करोड़ रुपये की संपत्ति थी. क्रैकडाउन के बाद ये संपत्ति घटकर आधी रह गई. उससे भी बड़ी चीज़ ये हुई कि जैक मा की चेतना को खत्म कर दिया गया. उनकी अभिव्यक्ति पर ताला लगा दिया गया.

जैक मा ने एक बार कहा था,

Among the richest men in China, few have good endings.
चीन में कुछ ही अमीर लोगों की कहानी सुखांत पर खत्म होती है.

जैक उस लिस्ट में शामिल नहीं हो पाए और आगे हो पाएंगे, इसकी संभावना कम ही है. उन्होंने एक शिक्षक से लेकर चीन के सबसे अमीर व्यक्ति बनने तक का सफ़र तय किया. लेकिन इस सफ़र में उनसे उनके ख़यालों की आज़ादी छिन गई. क्या जैक मा को मुखर होने की सज़ा भुगनती पड़ी? आपको क्या लगता है? हमें कमेंट कर ज़रूर बताएं.

बात चीन की हुई है तो एक अपडेट और जान लीजिए.

30 नवंबर को चीन के पूर्व राष्ट्रपति और CCP के पूर्व जनरल-सेक्रेटरी जियांग ज़ेमिन का निधन हो गया. 96 बरस के ज़ेमिन ल्यूकेमिया से पीड़ित थे. इलाज के दौरान उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. CCP ने बयान जारी कर ज़ेमिन को श्रद्धांजलि दी है.

जियांग ज़ेमिन को आधुनिक चीन के सबसे प्रभावशाली नीति-निर्माता के तौर पर देखा जा सकता है. उनके शासन के दौरान चीन ने कई ऐतिहासिक पड़ाव पार किए. ज़ेमिन तियानमेन स्क़्वायर में हुए नरसंहार के तुरंत बाद पार्टी के जनरल-सेक्रेटरी बने थे. उस घटना के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट रही थी. ज़ेमिन ने उन्हें एकजुट किया. उन्हीं के समय में चीन वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजे़शन (WTO) का मेंबर बना. उन्हीं के कार्यकाल में ब्रिटेन ने हॉन्ग कॉन्ग को चीन के हवाले किया था.

ज़ेमिन चीन के निरंकुश शासकों से बहुत अलग नहीं थे. उन्होंने भी विरोध को कुचला, अख़बारों पर ताले लगवाए, आलोचकों को साइडलाइन किया. हालांकि, निजी तौर पर वे खुले मिजाज के रहे. उन्हें रंगारंग कार्यक्रमों में हिस्सा लेते, तैराकी करते और पब्लिक में घूमते देखा जाता था. चीन के कम्युनिस्ट नेताओं में इसका अभाव रहा है.

2004 में मिलिटरी कमीशन से उतरने के बाद जियांग ज़ेमिन लगभग गायब हो गए. इसके बाद उन्हें सीधे 2008 के बीजिंग ओलंपिक्स में देखा गया. फिर वो कम्युनिस्ट पार्टी के चुनिंदा कार्यक्रमों में ही नज़र आए. अक्टूबर 2022 में आयोजित पार्टी कांग्रेस में ज़ेमिन नहीं आ पाए. तब ये कयास लगाया गया था कि उनकी हालत बहुत गंभीर है.

अब उनकी मौत की ख़बर आई है. CCP के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ेमिन की अंतिम यात्रा में विदेशी नेताओं को नहीं बुलाया जाएगा. अख़बार ने लिखा कि बुलावा भेजना चीन की परंपरा के ख़िलाफ़ है.

चीन का चैप्टर यहीं तक. अब रूस-यूक्रेन युद्ध की तरफ़ चलते हैं.

पिछले 09 महीनों से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध अभी तक बेनतीजा रहा है. जिस तरह के हालात हैं, इसके हाल-फिलहाल में खत्म होने के आसार कम ही दिखाई देते हैं. इन सबके बीच दोनों देश एक-दूसरे के ऊपर बढ़त लेने की कोशिश कर रहे हैं.
इसी क्रम में यूक्रेन ने वीडियो वॉर की शुरुआत की है. इस वीडियो के बैकग्राउंड में भारी-भरकम म्युजिक बजता है. बम धमाकों की फुटेज दिखती है. फिर एक आवाज़ सुनाई देती है. वो आवाज़ रूसी सैनिकों से सवाल करती है, ‘अपने आप से पूछिए, आप किसके लिए लड़ रहे हैं?’ सवाल खत्म होने के बाद रूसी सैनिकों की सरेंडर वाली तस्वीर नज़र आती है. फिर दो फ़ोन नंबर फ्लैश होते हैं.

दरअसल, ये वीडियो यूक्रेन के ‘I Want to Live’ प्रोजेक्ट के तहत रिलीज किया गया है. ये क्या है?

ये प्रोजेक्ट रूसी सैनिकों को हथियार छोड़कर सरेंडर करने के लिए शुरू किया गया है. वीडियो के ज़रिए उन्हें मुहिम का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. आख़िर में कॉन्टैक्ट नंबर्स दिए गए हैं. जिनपर संपर्क करके सरेंडर किया जा सकता है. संपर्क करने के दो तरीके हैं - या तो कॉल कर लो या ऐप में डिटेल्ट भरक सब्मिट कर दो.
एक बार डिटेल मिलने के बाद प्रोजेक्ट में काम करने वाले लोग सरेंडर का सही तरीका बताते हैं. यूक्रेन का दावा है कि अब तक 35 सौ से अधिक रूसी सैनिक और उनके घरवालों ने कॉन्टैक्ट किया है. जबसे यूक्रेन ने खेरसॉन को रूस के चंगुल से छुड़ाया है, तबसे फ़ोन करने वालों की संख्या बढ़ी है.

प्रोजेक्ट में काम करने वाली एक महिला ने बीबीसी को बताया,

‘हमारे पास सबसे ज़्यादा कॉल्स शाम को आते हैं. क्योंकि उसी वक्त सैनिकों को फ्री टाइम मिलता है. वे छिपकर हमसे संपर्क करते हैं. जब हम कॉल रिसीव करते हैं तो निराशा भारी आवाज़ें सुनाई देती है. कईयों के पास तो चुप्पी के सिवा कुछ नहीं होता. वे अपने भविष्य को लेकर हताश हो चुके हैं.’

मीडिया रपटों में ये बात सामने आ रही है कि युद्ध में शामिल सैनिक उबते जा रहे हैं. युद्ध की वीभीषिका उन्हें शारीरिक से ज़्यादा मानसिक तौर पर बीमार बना रही है. इसका नुकसान अभी वाली पीढ़ी तो भुगत ही रही है, आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ये कम पीड़ादायक नहीं होगा. जो इस आपदा को टाल सकते हैं या जो ज़िम्मेदार हैं, वे आरामदायक कमरों में नाक की लड़ाई लड़ रहे हैं. बातों से.

रूस-यूक्रेन युद्ध के चैप्टर को यहीं विराम देते हैं. फिलहाल, हम आगे बढ़ते हैं. इज़रायल-फ़िलिस्तीन की तकरार में फिर से उबाल आ गया है.
वेस्ट बैंक में दो अलग-अलग घटनाओं में पांच फ़िलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई है. पांचों लोग इज़रायली सेना की कार्रवाई में मारे गए. मरनेवालों में दो सगे भाई भी हैं. उनकी उम्र 21-22 साल के बीच थी. फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी वफ़ा के मुताबिक, रमल्ला के काफ़र इन गांव के पास एक मुठभेड़ में उनकी जान गई. इज़रायली आर्मी ने कहा है कि गांव के लोग उनके सैनिकों पर पत्थर और पेट्रोल बम फेंक रहे थे, जिसके बाद उन्हें जवाब देना पड़ा. सगे भाईयों की मौत मौत के बाद इलाके में तनाव बना हुआ है. उनके जनाज़े में सैंकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए. लोगों ने अपने हाथों में प्ले कार्ड भी रखे हुए थे.

इसके अलावा तीन और घटनाएं सामने आईं है.

29 नवंबर को फ़िलिस्तीन के हेब्रोन में इज़रायल के सैनिकों ने छापेमारी की. इस दौरान एक व्यक्ति मारा गया. उसकी पहचान मुफ़ीद ख़लील के तौर पर हुई है. फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय का आरोप है कि ख़लील को सिर में गोली मारी गई. इस रेड के दौरान आठ अन्य लोग घायल हुए.
रमल्ला में ही एक और मिलिटरी रेड में रायद गाज़ी अल-नासन की मौत हो गई. फ़िलिस्तीन का कहना है कि रायद को सीने में गोली मारी गई.
हिंसा की अगली घटना यहूदी बस्ती कोचाव याकव में घटी. इज़रायली सेना के मुताबिक, रानी अबू अली नाम के एक शख्स ने उनके एक सैनिक को कार से टक्कर मार दी और भाग निकला. इज़रायली सैनिकों ने उसका पीछा किया और फिर उसे मुठभेड़ में मार गिराया.

इज़रायल आर्मी पिछले कुछ महीनों से हर रात वेस्ट बैंक में सर्च ऑपरेशन चला रही है. इन ऑपरेशंस के दौरान लगभग 140 फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. इसी दौरान इज़रायल में आम नागरिकों पर हुए हमलों में 30 की मौत हो चुकी है. 25 नवंबर को एक बस में हुए धमाके में दो इज़रायली नागरिकों की मौत हुई थी. इसके बाद से इज़रायल आर्मी ने अपना ऑपरेशन तेज़ किया है.

29 नवंबर को ही यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में ये बात सामने आई है कि इज़रायल-फ़िलिस्तीन विवाद चरम पर पहुंच रहा है. अगर इस मसले का स्थायी हल नहीं खोजा गया तो आने वाले दिनों में बेहिसाब तबाही हो सकती है.

इज़रायल की सत्ता में बेंजामिन नेतन्याहू की वापसी हो रही है. उनके गठबंधन में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों का दबदबा बढ़ा है. ये पार्टियां फ़िलिस्तीन को मिटाने की बात करती रहीं है. जानकारों का कहना है कि हाल की हिंसा ने आग में घी डालने का काम किया है. अगर इसे नहीं बुझाया गया तो ये बहुतों के घर तबाह कर सकती है.

इज़रायल-फ़िलिस्तीन का चैप्टर यहीं पर रोकते हैं. अब चलते हैं पाकिस्तान की तरफ़.
जिस बात का अंदेशा जताया जा रहा था, वही हुआ. पाकिस्तान में रक़्तपात की सीरीज़ फिर से शुरू हो चुकी है. पूरा मामला जानने से पहले बैकग्राउंड समझ लीजिए.
हमने 29 नवंबर के दुनियादारी में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के ऐलान के बारे में विस्तार से बताया था. TTP पाकिस्तान का घरेलू तालिबान है. ये अफ़ग़ानिस्तान में सरकार चला रहे तालिबान से अलग है. हालांकि, दोनों एक-दूसरे को सपोर्ट देते रहते हैं. पाकिस्तान सरकार ने TTP को आतंकी संगठन बताकर प्रतिबंधित कर रखा है. सरकार इस संगठन के साथ समय-समय पर बातचीत करती रहती है. 2007 से 2022 के बीच दोनों पक्षों के बीच पांच से अधिक दफा संघर्षविराम समझौता हो चुका है. आख़िरी बार संघर्षविराम समझौता अप्रैल 2022 में हुआ था. 28 नवंबर को TTP ने इस समझौते से बाहर होने का ऐलान कर दिया. उनका आरोप था कि पाक आर्मी और खुफिया एजेंसी ISI शर्तों का मान नहीं रख रही है. TTP ने अपने लड़ाकों से पूरे पाकिस्तान में हमला करने के लिए भी कहा था. 

आज हम ये रिकैप क्यों करवा रहे हैं?

TTP के ऐलान के बाद हमने पाकिस्तान में मौजूद कुछ सूत्रों से बात की. हमें ये जानकारी मिली कि 29 नवंबर को पाक आर्मी की कमान जनरल आसिम मुनीर के पास आई है. इसी समय इंग्लैंड की टीम पाकिस्तान में टेस्ट सीरीज़ खेलने भी पहुंची है. इसलिए, TTP इस मौके का फायदा उठाना चाहती है. हालांकि, शहबाज़ शरीफ़ की सरकार इतने संकटों से घिरी हुई है कि वो फिलहाल TTP पर उतना ध्यान नहीं देगी. मगर आज सुबह जो घटना हुई, उसने पूरा फ़ोकस शिफ़्ट कर दिया है.

30 नवंबर की सुबह बलोचिस्तान की राजधानी क़्वेटा में एक आत्मघाती बम विस्फोट हुआ. इसमें चार लोगों की मौत हो गई और 23 घायल बताए जा रहे हैं. डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, मरनेवालों में एक बच्चा, एक महिला और एक पुलिस का जवान भी शामिल है. इस हमले की ज़िम्मेदारी TTP ने ली है.

स्थानीय अधिकारियों ने जानकारी दी कि बम पुलिस की गाड़ी के पास फटा. दो और गाड़ियां धमाके की चपेट में आईं. पुलिस की गाड़ी पोलियो वर्कर्स को सुरक्षा देने जा रही थी. पाकिस्तान दुनिया के उन गिनती के देशों में हैं, जहां अभी तक पोलियो पूरी तरह खत्म नहीं हुआ. पोलियो की खुराक को लेकर धार्मिक कट्टरता आड़े आती है. आतंकी संगठन इसे इस्लाम के लिए गुनाह की तरह पेश करते हैं. वे इसे रोकने की धमकी देते रहते हैं. इसके बावजूद पाकिस्तान में कुछ लोग साहस दिखाकर पोलियो उन्मूलन की मुहिम चलाते हैं. पाकिस्तान सरकार उनके लिए सुरक्षा मुहैया कराती है. TTP इन पोलियो वर्कर्स और उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिसवालों पर जानलेवा हमले के लिए कुख्यात है.

क़्वेटा में हुए बम विस्फोट पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने शोक जताया है. उन्होंने मामले की जांच के आदेश दिए हैं. पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ने भी घटना की निंदा की है.

कठोर निंदा और आलोचना की आदत दुनियाभर के नेताओं में पाई जाती है. वे इस तरह की घटनाओं के बाद एक और बयान की तैयारी में जुट जाते हैं. काश! वे समस्या की जड़ पर फ़ोकस कर पाते.

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