फूलन देवी पर बनी फिल्म बैंडिट क्वीन के वो 4 सीन झूठे थे!
बैंडिट क्वीन बनाने वाले शेखर कपूर ने ये फिल्म फूलन देवी को दिखाई ही नहीं थी.
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फोटो - thelallantop
10 साल की एक बच्ची. मल्लाह जाति की. उसके चाचा ने खेतों पर कब्ज़ा कर लिया था. मां-बाप सहमे हुए थे. लेकिन वो बच्ची बहुत लड़ाका थी. बैठ गई धरना देकर. चचेरे भाई ने उसके बाल पकड़कर उसको बेरहमी से बहुत मारा. लेकिन वो बच्ची इतनी नाज़ुक नहीं थी. चचेरे भाई के सिर पर ईंट फेंक कर मार दी. वो लड़की थी फूलन देवी. 10 अगस्त को फूलन देवी का जन्मदिन है.फूलन की जिंदगी में बहुत सारे उतार-चढ़ाव रहे. इतने किस्से थे उसकी छोटी सी जिंदगी में कि शेखर कपूर ने उस पर फिल्म बना डाली. बैंडिट क्वीन (1994). फिल्म बहुत हिट हुई. 7 फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले. लेकिन फिल्म बनने के बाद डायरेक्टर शेखर कपूर ने फूलन को वो फिल्म दिखाई तक नहीं थी. उस फूलन देवी को, जिसकी जिंदगी पर ये फिल्म बनी थी. फूलन के जन्मदिन से ठीक एक दिन पहले 9 अगस्त 1994 को बैंडिट क्वीन सिरीफोर्ट में दिखाई गई. फूलन बार-बार ये फिल्म देखने की मांग करती रहीं. लेकिन उनको ये फिल्म नहीं दिखाई गई. जब फूलन बहुत जिद करती रही, तो शेखर कपूर ने उनसे कहा था, 'अच्छा है तू ये फिल्म ना देखे. देखेगी तो पागल हो जाएगी'.
फूलन को लोगों से फिल्म की कहानी पता चल गई. 6 सितम्बर 1994 को फूलन ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी कि इस फिल्म पर रोक लगाई जानी चाहिए. तीन दिनों बाद कोर्ट ने फिल्म के प्रदर्शन पर बैन लगा दिया. सेंसर बोर्ड ने फिल्म में बहुत सारी काट-छांट भी कर दी. फिल्म की शुरुआत में एक डिस्क्लेमर आता था - 'ये एक सच्ची कहानी है.' कोर्ट ने कहा कि ये भी हटाना होगा. लेकिन फिल्म के प्रोड्यूसर एम एस बेदी ने कहा था - हम इस डिस्क्लेमर के आगे जोड़ देंगे कि इन सीन्स की स्वीकृति फूलन ने नहीं दी थी. लेकिन मीडिया और अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर ये फिल्म बनाई है. ये भी लिख देंगे, ये फिल्म माला सेन की किताब पर आधारित है. और फूलन की जिंदगी को पूरा-पूरा दिखाने का कोई दावा नहीं करती.
फूलन का कहना था कुछ सीन बिलकूल झूठे हैं

बाप ने फूलन को बेचा नहीं था
फूलन का कहना था कि इस फिल्म में उनके पिता को एक विलेन दिखाया गया है. जो पैसे के लिए अपनी लड़की को बेच देते हैं. जबकि असल जिंदगी में उनके मां-बाप ने उनको बेचा नहीं था. उनकी शादी करवाई गई थी. उस वक़्त फूलन की उम्र सिर्फ 11 साल थी. उनके पति 35 साल के थे. उनके मां-बाप ने शादी में 10,000 रुपए खर्चे थे. फूलन का कहना था कि चाहे उनका रेप हुआ हो या ना हुआ हो. शेखर कपूर को उसको इस तरह से फिल्म में दिखाने का कोई हक नहीं था.
विक्रम के साथ वाला लव सीन झूठा था
फिल्म में फूलन और विक्रम मल्हार का लव सीन दिखाया गया है. ये कानपुर का किस्सा है. इस सीन के हिसाब से वो दोनों एक होटल में रुके थे. विक्रम पीठ के बल लेटा था और फूलन उसके ऊपर लेटी थीं. लेकिन फूलन ने इस पूरी कहानी को बकवास बताया था. फूलन के हिसाब से जब वो लोग कानपुर में थे. विक्रम की पीठ पर गोली लगी थी. और उन लोगों के साथ विक्रम के दोस्त भी वहां मौजूद थे. उस दौरान फूलन और विक्रम के बीच कुछ नहीं हुआ था.
फूलन हमेशा शर्ट और लुंगी पहनकर नहाती थीं
फिल्म के एक सीन में फूलन को नदी किनारे नहाते हुए दिखाया गया था. जहां उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी और विक्रम मल्लाह उनको घूर रहा था. फूलन इस सीन पर भी बहुत भड़की थीं. कहा था, मैं कभी साड़ी नहीं पहनती थी. हमेशा पुलिस की वर्दी पहनती थी. गैंग के 4-4 डाकू एक साथ नहाने जाते थे. दो लोग पहरा दिया करते थे. मैं हमेशा शर्ट और लुंगी पहने रहती थी. और किसी की भी औकात नहीं थी कि कोई मुझे घूर सके.
ठाकुर नहीं, चाचा और चचेरा भाई फूलन की तबाही के ज़िम्मेदार थे
फिल्म में फूलन के चचेरे भाई मय्यादीन का भी कोई ज़िक्र नहीं था. फिल्म में ठाकुरों की 'ऊंची जाति'
और मल्लाहों की 'पिछड़ी जाति'
के बीच की लड़ाई दिखाई गई थी. फूलन को 'पिछड़ी जाति'
का बताया-दिखाया गया था. फिल्म के हिसाब से ठाकुरों ने फूलन पर शुरू से अत्याचार किए. उनका रेप किया. खेत लूट लिए. लेकिन फूलन का कहना था. मय्यादीन और उसके बाप ने फूलन के परिवार के खेत लूटे थे. फूलन को बेरहमी से पीटा था. और उनका रेप किया था. उनकी सारी मुसीबतों की जड़ मय्यादीन और उसका बाप था. फिल्म में जाति की लड़ाई दिखाए जाने से फूलन परेशान थीं. उनको डर था कि इस वजह से दंगे ना भड़क जाएं. फिल्म की रिलीज़ के दिनों में भी मय्यादीन उनके परिवार को धमकी देता था.
शेखर कपूर ने कहा था, मैंने फिल्म में वो किस्से भी तो नहीं दिखाए जो फूलन को खतरे में डाल सकते थे

फिल्म में फूलन देवी के रोल में सीमा बिस्वास
फूलन ने खुद से हुई ज्यादतियों का बदला लेने के लिए फूलन और उनके गैंग ने बहमई में एक साथ लाइन में खड़ा कर 22 ठाकुरों को मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि बाद में फूलन ने दावा किया कि उन्होंने खुद एक भी गोली नहीं चलाई थी. फूलन ने जब फिल्म में बहुत सारे झूठ दिखाने का इल्जाम लगाया. शेखर कपूर ने भी अपनी सफाई दी थी. कहा था,
''रेप का सीन दिखाने के पीछे मेरा सिर्फ एक मकसद था. जो लोग ये फिल्म देखने आएं, वो कम से कम ढाई घंटे एक पिछड़ी जाति की औरत की जिंदगी जी सकें. उसकी परेशानियां महसूस कर सकें. रेप के सीन का मतलब था कि कोई भी औरत रेप से शर्मिंदा ना हो. बल्कि उसके बाद हिम्मत से जीना सीख सके. हर किसी की कहानी के अपने-अपने पक्ष हैं. फूलन ने बाद में कहा था कि उसने बेहमई में ठाकुरों को नहीं मारा था. लेकिन वहां की औरतों ने कहा था कि फूलन ने ही मारा था.''
''फूलन के पति ने दोबारा शादी कर ली थी. जब फूलन अपने पति से बदला लेने गई थी. उसने अपने पति की दूसरी पत्नी विद्या को भी बहुत पीटा था. बहुत सारे ऐसे पक्ष मैंने इस फिल्म में उठाए ही नहीं हैं जो फूलन के खिलाफ जा सकते थे. क्योंकि उससे हमारी फिल्म की कहानी हल्की पड़ जाती. वैसे भी अगर किसी की ज़िन्दगी को ढाई घंटे में दिखाना हो तो क्रिएटिव फ्रीडम चाहिए ही होती है.''
माला सेन की किताब से बहुत अलग थी शेखर कपूर की फिल्म

इस फिल्म की रिलीज़ के दौरान बार-बार माला सेन की किताब का नाम आ रहा था. इंडियाज़ बैंडिट क्वीन: द ट्रू स्टोरी ऑफ फूलन देवी. पहले कहा जा रहा था कि फिल्म उस किताब पर आधारित है. लेकिन फिल्म उस किताब से काफी अलग थी. जिसको शेखर कपूर ने क्रिएटिव फ्रीडम का नाम दे दिया था. जब माला सेन अपनी किताब लिख रही थीं. फूलन ने उनको अपनी डायरी के लीगल अधिकार सौंप दिए थे. इस डायरी और किताब के ऊपर बनने वाली फिल्म के लिए भी हामी भर दी थी. लेकिन बाद में शेखर कपूर ने कहा था कि ये फिल्म इस किताब पर नहीं बल्कि सच्ची घटनाओं पर आधारित है.
फूलन की इस फिल्म से सबसे बड़ी चिंता थी बेहमई वाला सीन. बेहमई कांड को मिला कर फूलन पर कुल 53 मुक़दमे दर्ज थे. जेल से तो फूलन बाहर आ चुकी थीं. पॉलिटिक्स में करियर शुरू करने वाली थीं. उस फिल्म के रेप सीन और बेहमई कांड की वजह से उनको डर था कि कहीं उसका पॉलिटिकल करियर शुरू होने से पहले ही ख़त्म ना हो जाए.https://www.youtube.com/watch?v=ssfYBYf6QR8
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