पुतिन ने बाग़ी का इंतज़ाम कर दिया!
पुतिन से विद्रोह की ऐसी सज़ा!

रूस में हुई असफ़ल बग़ावत के दो सबसे बड़े किरदार वापस लौट आए हैं.
पहला है, वैग्नर ग्रुप का मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन. 23 जून को उसी ने रूसी सेना को धमकी दी थी और फिर अपने लड़ाकों को लेकर मॉस्को की तरफ़ बढ़ा. हालांकि, राजधानी से 200 किलोमीटर पहले ही डील हो गई. जिसके बाद वैग्नर के लड़ाके वापस लौट गए और दावे के मुताबिक, प्रिगोझिन बेलारूस चला गया. निर्वासन में.

दूसरे किरदार हैं, रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन.

24 जून को विद्रोह के बीच पुतिन ने संबोधन दिया. वैग्नर से हथियार रखने की अपील की. कहा, हमारी पीठ में छुरा घोंपा गया है. गद्दारों से सख्ती से निपटा जाएगा.
उसी शाम बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेन्को ने मध्यस्थता कराई. विद्रोह थम गया. उसके बाद एक अजीब संयोग देखने को मिला. डील के बाद दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया. लेकिन संबोधन के बाद पुतिन और रोस्तोव ऑन-दॉन से निकलने के बाद प्रिगोझिन, दोनों पब्लिक डोमेन से लापता हो चुके थे. कोई भाषण नहीं, कोई बधाई संदेश नहीं, कोई सफ़ाई नहीं.
रूस और बेलारूस में कायम चुप्पी के बरक्स पश्चिमी देशों में हंगामा मचा था. वहां अलग-अलग थ्योरीज़ पक रहीं थीं.
कोई कह रहा था, अमेरिका को बग़ावत के बारे में 15 दिन पहले से पता था.
किसी का दावा था, पुतिन की सत्ता ढह चुकी है. किसी भी समय उनकी कुर्सी जा सकती है.
एक थ्योरी ये भी थी कि डिफ़ेंस मिनिस्टर शोइगु और आर्मी चीफ़ गेरासिमोव नज़रबंद हैं. उन्हें बर्ख़ास्त किया जा सकता है.
फिर 26 जून को इन कयासों पर बिजली गिरी. शाम में प्रिगोझिन ने टेलीग्राम पर एक ऑडियो मेसेज जारी किया. कहा, हम पुतिन का तख़्तापलट नहीं चाहते थे. हम वैग्नर को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे. प्रिगोझिन ने और भी बहुत सारी बातें गिनाईं. मसलन, वैग्नर को पूरे रास्ते सपोर्ट मिला. रूस के सैन्य अधिकारी धांधली कर रहे हैं. पुतिन को जो बताया जा रहा है, वो ज़मीनी हक़ीक़त नहीं है.
इस ऑडियो के बाद रूस के बयान का इंतज़ार होने लगा. फिर देर रात ख़बर आई कि पुतिन देश को संबोधित करने वाले हैं. पुतिन आए. पहले लोगों का शुक्रिया कहा. फिर बोले, विद्रोह की साज़िश रचने वालों को नतीजा भुगतना होगा. पुतिन ने प्रिगोझिन का नाम तो नहीं लिया. लेकिन इशारा उसी की तरफ़ था. यानी, भले ही वो बेलारूस पहुंच गया हो, लेकिन उसकी मुश्किलें कम नहीं हुईं हैं. उसके साथ क्या होगा? इसको लेकर अभी स्थिति साफ़ नहीं है.
तो, आइए जानते हैं,
- क्या वैग्नर को भंग किया जाएगा?
- येवगेनी प्रिगोझिन के साथ क्या हो सकता है?
- और, क्या वैग्नर के विद्रोह ने पुतिन के वर्चस्व को मज़बूत कर दिया है?
जहां आज कहानी वैग्नर और प्रिगोझिन के भविष्य की.
26 जून की शाम प्रिगोझिन ने 11 मिनट लंबा ऑडियो मेसेज जारी किया. इसमें विद्रोह का कारण और अपना मकसद बताया. शॉर्ट में समझ लेते हैं.
बग़ावत क्यों की?
- वैग्नर के अस्तित्व पर ख़तरा था. हमें 01 जुलाई तक कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के लिए कहा गया था. हमने इस पर मीटिंग की. 1-2 प्रतिशत को छोड़कर हमारा कोई भी लड़ाका इस पर साइन करने के लिए तैयार नहीं था. हमें पता था कि इससे हमारी क्षमता घट जाएगी.
दरअसल, 10 जून को रूस की डिफ़ेंस मिनिस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वाला नियम लेकर आई थी. इसके मुताबिक, यूक्रेन में रूसी सेना की मदद कर रहीं वॉलंटियर फ़ोर्सेस को लीगल स्टेटस हासिल करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन करना होगा. उसके बाद ही उन्हें कोई सपोर्ट मिलेगा.
अमेरिकी अख़बार न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक, यूक्रेन में ऐसी 40 से अधिक फ़ोर्सेस हैं. वैग्नर भी उन्हीं में से एक है.
डिफ़ेंस मिनिस्ट्री ने डेडलाइन 01 जुलाई 2023 की रखी. प्रिगोझिन ने पहले ही कॉन्ट्रैक्ट साइन करने से मना कर दिया था. कहा था, हम शोइगु के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे. फिर भी जब कभी रूसी सरकार हमें लड़ने के लिए बुलाएगी, हम जाएंगे. हमारे लड़ाके राष्ट्रपति पुतिन के प्रति वफ़ादार हैं.
प्रिगोझिन को उम्मीद थी कि पुतिन इस टकराव में उसकी मदद करेंगे. वैग्नर को छूट दिलाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पुतिन चुप रहे. 23 जून को प्रिगोझिन के सब्र का बांध टूट गया. तब उसने मॉस्को मार्च करने का ऐलान किया. उसका एक मकसद वैग्नर की अहमियत दिखाना और पुतिन का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करना था. लेकिन उसका प्लान फ़ेल रहा.
वैग्नर ने रूस के शहरों पर क़ब्ज़ा क्यों किया?
- प्रिगोझिन ने ऑडियो मेसेज में कहा कि हमारा रोस्तोव ऑन-दॉन पर क़ब्ज़े का कोई इरादा नहीं था.
ये शहर रूस और यूक्रेन की सीमा पर है. यहां से राजधानी मॉस्को की दूरी लगभग 11 सौ किलोमीटर है. रोस्तोव ऑन-दॉन में यूक्रेन में अभियान चला रही रूसी सेना का मुख्यालय भी है. यहीं से सेना के गोला-बारुदों की सप्लाई होती है. ये रूस से यूक्रेन में घुसने का सबसे अहम रास्ता भी है. यानी, इस शहर पर क़ब्ज़े से सीधे-सीधे रूस-यूक्रेन युद्ध पर असर पड़ता.
प्रिगोझिन ने कहा, अगर 30 जून तक कोई रास्ता नहीं निकलता तो हम ख़ुद ब ख़ुद रोस्तोव छोड़ देते. हम अपने हथियार भी जमा करा देते. लेकिन हमारे ऊपर मिसाइल हमला हुआ. फिर हेलिकॉप्टर्स से गोलियां बरसाई गईं. इसके बाद ही हमारे कमांडर्स ने मॉस्को चलने पर ज़ोर दिया.
लेकिन मॉस्को ही क्यों?बकौल प्रिगोझिन, ‘हम वैग्नर को बचाना चाहते थे. हम ये भी चाहते थे कि ग़लती करने वालों को सज़ा मिले. (उसका इशारा शोइगु और गेरासिमोव की तरफ़ था.)
हमें रास्ते में भरपूर सपोर्ट मिला. 24 घंटों के अंदर हमने लगभग 08 सौ किलोमीटर का सफ़र पूरा कर लिया था. ज़मीन पर एक भी रूसी सैनिक नहीं मारा गया. हमारे ऊपर हेलिकॉप्टर्स से हमला हुआ. हमें उसका जवाब देना पड़ा.’
दरअसल, भले ही बग़ावत थम गई हो, लेकिन वैग्नर के मार्च के दौरान जो कुछ हुआ, उसने पुतिन की प्रभुसत्ता पर सवालिया निशान ज़रूर लगा दिए हैं. मसलन, मॉस्को के रास्ते में पब्लिक ने वैग्नर को पूरा सपोर्ट दिया. वैग्नर के लड़ाके रास्ते में पड़ने वाले सैन्य अड्डों पर क़ब्ज़ा करने में सफ़ल रहे. और तो और, एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगा कि रूसी सेना वैग्नर को थाम सकती है. इसी वजह से वे अपने रास्ते पर आगे बढ़ते गए. अगर वे मॉस्को पहुंच जाते तो भयानक ख़ून-ख़राबा होता. सेना वैग्नर से कई गुणा ताक़तवर है. फिर भी उन्हें रोकना आसान नहीं हुआ होता.
लेकिन वैग्नर ने उससे पहले ही क़ाफ़िला रोक दिया. क्यों? प्रिगोझिन ने इसकी चार वजहें गिनाईं.
- पहली, वैग्नर के लड़ाके रूसी सैनिकों का ख़ून नहीं बहाना चाहते थे.
- दूसरी, हमारा मकसद सरकार का ध्यान खींचना था. हम उसमें कामयाब हुए.
- तीसरी, हम तख़्तापलट के इरादे से नहीं आए थे.
- और चौथी, उसी समय पर लुकाशेन्को ने अपना हाथ बढ़ा दिया था.
ये तो हुआ प्रिगोझिन का पक्ष.
पुतिन क्या बोले?पुतिन ने रूस की जनता, आर्मी, सीक्रेट सर्विस और अलेक्जेंडर लुकाशेन्को को शुक्रिया कहा.
बोले, मेरे आदेश पर रक़्तपात रोकने की हरसंभव कोशिश की गई.
तीन विकल्प दिए. बेलारूस में बस जाएं, डिफ़ेंस मिनिस्ट्री के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन करें या अपने घरवालों के पास लौट जाएं. पुतिन ने कहा कि वो अपने कहे का मान रखेंगे. मीडिया रपटों के मुताबिक, डील में तय हुआ है कि वैग्नर के लड़ाकों पर कोई मुकदमा नहीं चलेगा.
पुतिन ने आरोप लगाया कि ये सारा कांड पश्चिमी देशों के इशारे पर हुआ है. रूस के दुश्मनों को उम्मीद थी कि वो विद्रोह के जरिए देश को बांट देंगे. लेकिन उनका अनुमान ग़लत साबित हुआ.
अमेरिका ने इस आरोप से इनकार किया है. उसने कहा कि रूस का विद्रोह आंतरिक कलह की उपज है. इसमें हमारी या नेटो की कोई भूमिका नहीं है.
खैर, पुतिन के संबोधन में सबसे ज़्यादा फ़ोकस प्रिगोझिन के भविष्य पर था. उन्होंने नाम तो नहीं लिया, लेकिन चेतावनी ज़रूर दी. बोले, मुल्क में 'ब्लैकमेल या आंतरिक अशांति' की कोशिश कभी सफ़ल नहीं होगी. साज़िश करने वालों को कड़ी सज़ा दी जाएगी.
इस बयान से संकेत मिल रहा है कि प्रिगोझिन को माफ़ी नहीं मिलेगी. मॉस्को टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबित, 27 जून की सुबह प्रिगोझिन का विमान रोस्तोव से मिंस्क पहुंचा. लेकिन उसमें प्रिगोझिन था या नहीं, ये साफ़ नहीं है. 24 जून के बाद से उसका कोई वीडियो भी बाहर नहीं आया है. सिर्फ एक ऑडियो आया है, जिसमें उसने विद्रोह पर नरम रुख में सफ़ाई दी है. अफ़वाह उड़ रही है कि या तो उसे जेल में बंद कर दिया जाएगा या उसे ठिकाने लगा दिया जाएगा. उसका पोलिटिकल कैरियर डूब चुका है. पुतिन के रहते उसका उभार नामुमकिन है.
रूसी मीडिया में छपी रपटों के मुताबिक, रूस की जांच एजेंसी FSB ने प्रिगोझिन पर लगे चार्जेज़ हटा लिए हैं. रूस ने कहा था कि निर्वासन में जाते ही प्रिगोझिन को क्षमादान दे दिया जाएगा. सबसे बड़ा आरोप सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाने का था. इसमें उसे 12 से 20 बरसों तक की जेल हो सकती थी. आधिकारिक जांच से छूट मिलने के बावजूद प्रिगोझिन का भविष्य ख़तरे में दिखता है. पुतिन ने एक दफ़े कहा भी था, मैं सब कुछ भूल सकता हूं. लेकिन विश्वसघात के लिए कोई माफ़ी नहीं है. वो खुले तौर पर हालिया विद्रोह को विश्वासघात का नाम दे रहे हैं. इसलिए, प्रिगोझिन के लिए आगे की राह कतई आसान नहीं होने वाली है. बेलारूस, रूस का एक पिट्ठू देश बनकर रह गया है. वहां उसका भविष्य पूरी तरह से पुतिन पर निर्भर करता है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने कहा कि उन्हें प्रिगोझिन के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हमें ये भी नहीं पता कि वो कहां पर है.
इस मामले में क्या नए अपडेट्स आए हैं?
- 26 जून को संबोधन के बाद पुतिन ने नेशनल सिक्योरिटी पर मीटिंग में हिस्सा लिया. इसमें डिफ़ेंस मिनिस्टर शोइगु भी थे. यानी, उनका और पुतिन का रिश्ता टूटा नहीं है. ये प्रिगोझिन के लिए एक और झटका है.
- वैग्नर ग्रुप से जुड़े टेलीग्राम चैनलों पर प्रिगोझिन की लानत-मलानत हो रही है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वे प्रिगोझिन पर अपने लोगों को धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं.
एक और सवाल आपके मन में उठ रहा होगा. वैग्नर ग्रुप का क्या? उनका क्या होगा?वैग्नर एक प्राइवेट मिलिटरी ग्रुप है. पैसा लेकर सुरक्षा देने का काम करती है. 2014 में स्थापना हुई. इसमें रूसी सेना के रिटायर्ड सैनिक शामिल हुए. उन्होंने सबसे पहले क्रीमिया में रूसी सेना की मदद की. फिर पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों को सपोर्ट दिया. उसके बाद उन्हें अफ़्रीका के अलग-अलग हिस्सों में भेजा गया. कहीं पर रूसी सेना का साथ देने के लिए तो कहीं पर अपनी मर्ज़ी से प्राइवेट बिजनेस चलाने के लिए. ये गुट इस समय सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक (CAR), मैडागास्कर, माली, सीरिया, लीबिया और सूडान में मौजूद है. 26 जून को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि इन देशों से वैग्नर को वापस नहीं बुलाया जाएगा. वे पहले की तरह काम करते रहेंगे.
वीडियो: पुतिन के ख़िलाफ़ विद्रोह का रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर पड़ेगा?