The Lallantop
Advertisement

'फेसबुक पै जय हरियाणा की फोटू लगाणे तै कुछ नहीं होणा जाणा'

हरियाणा की असल 'जय' तब होगी, जब लोग अपनी पुरुषवादी सोच से बाहर आएंगे.

Advertisement
Img The Lallantop
Photo: Jyoti
pic
लल्लनटॉप
30 जून 2016 (Updated: 30 जून 2016, 01:59 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
ये आर्टिकल हमें ज्योति ने लिख भेजा है. जैसा कि ये आगे खुद बताने वाली हैं, ये हरियाणा के एक गांव से आती हैं. स्कूल के बाद दिल्ली आ गईं. दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया है. स्टूडेंट पॉलिटिक्स में खूब हिस्सा लिया. इन्हें अंग्रेजी के अलावा आप हिंदी और हरियाणवी में लिखता हुआ पाएंगे. खासकर फेसबुक पर. और हां, गांव की मिट्टी और मां के हाथ के की रोटी को रोमैंटिसाइज करते हुए नहीं, हरियाणा के रूढ़िवादी समाज पर हमला करते हुए. 
मेरा नाम ज्योति है. मैं हरियाणा के एक छोटे से गांव रसूलपुर से हूं. दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी मे एमए किया है. फिलहाल घर पर बैठ कर ये लिख रही हूं.
jyoti हरियाणा का नाम सुनते ही आपके दिमाग में खाप पंचायत ही आता होगा. खाप पंचायत तो जैसे हरियाणा का पर्यायवाची ही बन गया है. खाप पंचायतें तो बड़े-बड़े मामलों में फरमान सुनाती हैं. हमारे घर में बैठी खाप, रोडवेज मे बैठी खाप, कॉलेजों मै बैठी खाप. चूंकि हम हरियाणा आले हैं, हमणै परोगरैसिव लोग फूटी आंख नहीं सुहाते. के बात कर रहे हो? हमनै छोरियों की जींस बंद कराई? हम्बे. (चूंकि हम हरियाणा वाले हैं, हमें प्रोग्रेसिव लोग फूटी आंख नहीं सुहाते. क्या बात कर रहे हो? हमने लड़कियों की जींस बंद कराई. ना.)
म्हारी छोरी खेलां मै आगै रही हैं. हम तो आगै बडण आले के साथी हां. पर ये जींस के चोंचले? (हमारी बेटी खेलों में आगे रही है. हम तो आगे बढ़ने वालों के साथी हैं. लेकिन जींस क्यों पहननी है?)
महेंद्रगढ़ जिले में एक कनीना तहसील है. मेरे गांव से थोड़ी ही दूर है. चार-पांच साल पहले पीकेएसडी कॉलेज में लड़कियों का पायजामी पहनना बंद करवा दिया गया. कहा गया कि लड़कियों की टांगे दिखती हैं. छोरों का पढ़ाई से ध्यान हटता है. पर कोई नहीं बोलता कि 'थारे छोरो नै घर नै क्यूं नहीं बैठा लेते जब इतने डिस्ट्रैक्ट होरे हैं तो.'पर नहीं, हम हरियाणा आलो नै कती धरती मां की कसम खा राखी सै, इन छोरियां नै छोरियों की तरह रखना. सर पै नहीं चढाणी. दो तीन साल पहले एक मैगजीन मे पढ़ा था के भिवानी के किसी कॉलेज में लड़कियों का मोबाइल फोन भी बैन हुआ था. लड़कियां फोन से बिगड़ रही हैं. लड़कों से फोन पर बातें करती हैं. इनको लाइन पर नहीं लाया गया तो म्हारा कलचर खराब हो जाएगा जी. इब्ब छोरै तो जवान खून हैं. इक आधी छोरी तै फोन करकै छेड भी दिया तो के होगया? काल इनणै फौज मै जाणा सै, आज छोरी छेडण की छूट है. (ये लड़के तो जवान खून हैं. एक-आधी लड़की छेड़ भी दी तो क्या हो गया? कल इन्हें फ़ौज में जाना है . आज इन्हें लड़की छेड़ने की छूट है.) दूर भी क्यूं जाऊं मैं, अपने गांव की ही बताती हूं ना. एक लड़की के पास फोन पकड़ लिया घरवालों ने. फिर फोन तो छीना ही, कॉलेज भी छुड़ा दिया. दो चार महीने बाद ब्याह कर दिया.
ब्याह कर आगले घर भेज देणा, म्हारा अलटीमेट सोलूसन है, समाज सुधारण का.
ऐसे ही एक बार रसूलपूर और पाथेरा गांव के कॉलेज जाने वाले लड़कों में झगड़ा हो गया किसी लड़की को लेकर. हमारे रसूलपुर गांव के छोरे पिट कर आ गए. किसी एक का सर फूट गया. बस अगले दिन जो लुगाईयां उसके घर से आ रही थीं, लड़की का ही कसूर निकालती आ रही थीं--"ऐ बिरा, बताय फौज मे लागण बरगा छोरा, कित छोरी कै चक्कर मे सिर फुडा लिया, इसी छोरियां का कै करै." (लड़का फ़ौज में जाने वाला था. कहां लड़की के पीछे सर फोड़ लिया. इन लड़कियों का क्या करें.)
अरे! मक्खा, अपणे पूतां नै तो समझा लयो, उस छोरी का दोस निकालने से पहले! (अरे! सुनो, अपने लड़कों को समझा लो, उस लड़की का दोष निकालने के पहले)
अब अगर ये सब बातें सोशल मीडिया पर लिख दो तो गुड़गांव, सोनीपत, या दूसरे शहरों में बैठे आदमियों को हर्ट हो जाता है. डिफेंड करते फिरेंगे कि अब ऐसा ना है. यै सब तो होया ही ना करै. जनाब आप जिस हरियाणा की बात कर रहे हो वो तो गुडगामा के पबों पर ही खत्म हो जाता है. और मै जिन जगहों की बात कर रही हूं, वो उन गांवों की हैं जहां ये सब अब तक चल रहा है. टाईम आ गया है कि अब आप थोड़ा कम्फर्ट जोन से बाहर निकलें और कुछ करें.
या फेसबुक पै जय हरियाणा की फोटू लगाणे तै कुछ नहीं होणा जाणा. (ये फेसबुक पर जय हरियाणा की फोटो लगाने से कुछ नहीं होने वाला)

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement